हमने आपको अब तक बताया कि हिन्दू धर्म के 90 हजार से भी ज्यादा वर्षों के लिखित इतिहास में लगभग 20 हजार वर्ष पूर्व नए सिरे से वैदिक धर्म की स्थापना हुई और नए सिरे से सभ्यता का विकास हुआ। विकास के इस प्रारंभिक क्रम में हिमयुग की समाप्ति के बाद घटनाक्रम तेजी से बदला।
प्रारंभिक जातियां : वेद और महाभारत पढ़ने पर हमें पता चलता है कि आदिकाल में प्रमुख रूप से ये जातियां थीं- देव, दैत्य, दानव, राक्षस, यक्ष, गंधर्व, भल्ल, वसु, अप्सराएं, रुद्र, मरुदगण, किन्नर, नाग आदि। देवताओं को सुर तो दैत्यों को असुर कहा जाता था। देवताओं की अदिति, तो दैत्यों की दिति से उत्पत्ति हुई। दानवों की दनु से तो राक्षसों की सुरसा से, गंधर्वों की उत्पत्ति अरिष्टा से हुई। इसी तरह यक्ष, किन्नर, नाग आदि की उत्पत्ति मानी गई है।
धरती का हाल : प्रारंभ में सभी महाद्वीप आपस में एक-दूसरे से जुड़े हुए थे। इस जुड़ी हुई धरती को प्राचीनकाल में 7 द्वीपों में बांटा गया था- जम्बू द्वीप, प्लक्ष द्वीप, शाल्मली द्वीप, कुश द्वीप, क्रौंच द्वीप, शाक द्वीप एवं पुष्कर द्वीप। इसमें से जम्बू द्वीप सभी के बीचोबीच स्थित है। जम्बू द्वीप के 9 खंड थे : इलावृत, भद्राश्व, किंपुरुष, भारत, हरिवर्ष, केतुमाल, रम्यक, कुरु और हिरण्यमय। इसी क्षेत्र में सुर और असुरों का साम्राज्य था।
प्रारंभ में ब्रह्मा और उनके पुत्रों ने धरती पर विज्ञान, धर्म, संस्कृति और सभ्यता का विस्तार किया। इस दौर में शिव और विष्णु सत्ता, धर्म और इतिहास के केंद्र में होते थे। देव और दैत्यों का साथ देने के लिए देवताओं की ओर से बृहस्पति और दैत्यों की ओर से शुक्राचार्य होते थे। तब ब्रह्मर्षि, देवर्षि, महर्षि, परमर्षि, काण्डर्षि, श्रुतर्षि और राजर्षि ये ऋषियों की 7 श्रेणियां होती थीं। देवता और असुरों का काल अनुमानित 20 हजार ईसा पूर्व से लगभग 7 हजार ईसा पूर्व तक चला। फिर धरती के जल में डूब जाने के बाद वैवस्वत मनु के काल की शुरुआत हुई।
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बाद में समय बदला तो फिर सूर्यवंश और चंद्रवंश की पुरोहिताई के लिए वशिष्ठ और विश्वामित्र में टक्कर होने लगी। यह लगभग अनुमानित 6,000 ईसा पूर्व की बात है। देवताओं और दैत्यों की लड़ाई सूर्यवंश और चंद्रवंश की लड़ाई में बदल गई। यह वैवस्वत मनु का काल था जबकि वशिष्ठ, विश्वामित्र, अत्रि, कण्व, भारद्वाज, मार्कंडेय, अगस्त्य आदि ऋषिगण हुआ करते थे। इसके बाद राम का काल 5,114 ईसा पूर्व शुरू हुआ। खैर, यह तो इतिहास के काल-क्रम की बात हुई। बहुत से लोग कहते हैं कि आर्य बाहर से आए तो उनको यह कहना होगा कि संपूर्ण जम्बूद्वीप ही आर्यों का स्थान था। फिर भी एक शोध पढ़ लें...
भारतीय इतिहास की पृष्ठभूमि एवं अविर्भाव के लेखक डॉ. प्रभाकर चावरे ‘तंत्राज्ञ’ ने अपने शोध द्वारा यह निष्कर्ष निकाला कि प्रारंभिक मानव का जन्म भारत के दण्डकारण्य प्रदेश में हुआ और वहीं से सोमवंशी ऐल वंशी दक्षिण अफ्रीका एवं यूरोप, ईरान, मिस्र, स्पेन, रशिया, चीन आदि विश्व के विभिन्न भागों में गए।
उन्हीं में से एक दल उत्तर कुरु प्रदेश (उत्तरी ध्रुव के पास रशिया का एक क्षेत्र) गया और हिमयुग की शुरुआत होने पर वापस भूमध्य सागर, काला सागर होता हुआ हिन्दूकुश पर्वत को पार करता हुआ सिन्धु घाटी में आया। वह दल मोहनजोदड़ो एवं हड़प्पा सभ्यता के निवासियों के साथ यहीं बस गया। इसे ही विश्व इतिहास में 'आर्य' नाम दिया गया।
अभी तक यह माना जाता था कि आधुनिक मानव ने सभ्यता का अपना सफर अफ्रीका से शुरू किया लेकिन पेइचिंग के पास एक गुफा से मिले आधुनिक मानव के कंकाल से यह गुत्थी एक बार सभ्यता की राह पर फिर उलझती नजर आई।
सभ्यता की राह पर आदमी के बनते-मिटते पदचिह्नों को तलाशने और इधर-उधर बिखरे पन्नों को जोड़कर सभ्यता का नया अध्याय तैयार करने में जुटे चीनी और अमेरिकी शोधकर्ताओं ने इस क्रम में शुरुआती आधुनिक मानव के करीब 40 हजार साल पुराने कंकाल का अध्ययन किया है। पेइचिंग के उपनगरीय स्थित तियानयुआन गुफा में 2003 में मिले कंकाल ये संकेत दे रहे हैं कि एशिया से पहुंचे थे प्रारंभिक मानव।
मित्रो, हम यहां आपको हिन्दू धर्म की कहानी से परिचय करा रहे हैं। इस कहानी में हमने अभी तक इतिहास के शुरुआती तथ्यों को बताने का प्रयास किया। आगे हम क्रमश: वैवस्वत मनु के काल की कहानी बताएंगे। पढ़ते रहिए hindi.webdunia.com