आध्यात्मिक सेल्फी लीजिए, ध्यान कीजिए...
वर्तमान समय में स्वदर्शन अर्थात् 'सेल्फी' लेने का बड़ा फ़ैशन है। युवाओं से लेकर बुज़ुर्गों व महिलाओं तक पर इसका नशा सर चढ़कर बोल रहा है। लोग अपनी 'सेल्फी' लेकर सोशल मीडिया पर साझा करते हैं। मुझे लगता है कि 'सेल्फी' का प्रचलन तो हमारे देश में; हमारी आध्यात्मिक परम्परा में सदियों से है किन्तु इस रूप में नहीं।
मेरा मानना है कि ध्यान आध्यात्मिक जगत की सेल्फी है। जिसमें आप वास्तविक व प्रामाणिक रूप में अपना आत्मदर्शन करते हैं। उसमें आपका शरीर ही आपका उपकरण अर्थात् डिवाइस होता है और जब वह 'सेल्फी' ली जाती है तो उसे किसी भी मंच पर साझा नहीं करना पड़ता वह तो स्वयमेव ही प्रत्येक व्यक्ति को दृष्टव्य होने लगती है। किन्तु इस प्रकार की सेल्फी आज की सेल्फी की तरह कुछ पलों में नहीं ली जा सकती, उसके लिए तो धैर्य व शान्ति के साथ निर्विचार होकर अपने शरीर रूपी मोबाइल को अनुकूलित अर्थात् "कस्टमाईज़" करना पड़ता है।
आज की सेल्फी तो बस शरीर का ही प्रतिबिम्ब हैं किन्तु ध्यान रूपी सेल्फी में वह दिखाई देता है जो है, जिसे शास्त्रों में कहा गया है "एकोऽहम् द्वितीयो नास्ति" या फ़िर "सर्वं खल्विदं ब्रह्म" अर्थात् "चैतन्य"। आइए प्रयास करें कि हम कभी न कभी आध्यात्मिक जगत् की सेल्फी लेने में सक्षम हो सकें क्योंकि आध्यात्मिक जगत् की सेल्फी आवागमन के इस दुष्चक्र से मुक्ति प्रदान करती है।
-ज्योतिर्विद् पं. हेमन्त रिछारिया