पितृपक्ष : पूर्वजों के प्रति श्रद्धा का महापर्व
पितृपक्ष में क्या करें!
पूर्वजों के प्रति श्रद्धा का महापर्व पितृपक्ष 12 सितंबर से भाद्रपक्ष पूर्णिमा से शुरू हो गया है। आश्विन कृष्णपक्ष की प्रतिपदा से अमावस्या तक पितरों का श्राद्ध करने की परंपरा है। पितृपक्ष अपने पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता प्रकट करने, उनका स्मरण करने और उनके प्रति श्रद्धा अभिव्यक्ति करने का महापर्व है। इस अवधि में पितृगण अपने परिजनों के समीप विविध रूपों में मंडराते हैं और अपने मोक्ष की कामना करते हैं। परिजनों से संतुष्ट होने पर पूर्वज आशीर्वाद देकर हमें अनिष्ट घटनाओं से बचाते हैं। वास्तुविद डॉ. दीपक शर्मा ने बताया कि जिस तिथि में माता-पिता का देहांत हुआ है, उस तिथि में श्राद्ध करना चाहिए। पिता के जीवित रहते हुए यदि माता की मृत्यु हो गई हो तो उनका श्राद्ध मृत्यु तिथि को न कर नवमीं तिथि को करना चाहिए। इस वर्ष मातृ नवमीं श्राद्ध 21 सितंबर को है। ज्योतिष मान्यताओं के आधार पर सूर्यदेव जब कन्या राशि में गोचर करते हैं तब हमारे पितर अपने पुत्र-पौत्रों के यहां विचरण करते हैं। विशेष रूप से वे तर्पण की कामना करते हैं। श्राद्ध से पितृगण प्रसन्न होते हैं और श्राद्ध करने वालों को सुख-समृद्धि, सफलता, आरोग्य और संतानरूपी फल देते हैं। पितृपक्ष में क्या करें :- * पशु-पक्षियों को भोजन कराएं।* गरीबों और ब्राह्मणों को अपने सामर्थ्यनुसार दान करें।* शुभ और कोई नए कार्य की शुरुआत न करें।* पितृस्त्रोत का पाठ करें।