रविवार, 28 अप्रैल 2024
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Written By ND

लव-कुश की जन्म भूमि उपेक्षा का शिकार

धार्मिक स्थल तुरतुरिया

Luv Kush Birthplace | लव-कुश की जन्म भूमि उपेक्षा का शिकार
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रामायण कालीन महर्षि वाल्मिकी की महान धरा एवं माता सीता के पुत्र लव-कुश का जन्मस्थल कहे जाने वाला धार्मिक स्थल तुरतुरिया आज बदहाली का दंश झेलने के लिए विवश है। इस तीर्थस्थल को विकसित करने के लिए शासन द्वारा किसी तरह के प्रयास नहीं किए जा रहे। गौरतलब है कि यहाँ हर साल छेरछेरा पुन्नी के पावन पर्व पर तीन दिवसीय भव्य मेला का आयोजन किया जाता है जिसमें हजारों श्रद्धालु हिस्सा लेते हैं।

सनातन धर्म से जुड़ी धरती : सनातन धर्म की आस्था इस धरती से जुड़ी है रामायण कालीन महर्षि वाल्मिकी आश्रम एवं वैदेही विहार के रूप में माता सीता तथा लव-कुश की यादों को सहेजे यह धरती शांत मन को प्रफुल्लित करने वाली है। यहां शक्तिस्वरूपा मां काली की प्रतिमा सघन वृक्षों एवं पहाड़ों में विराजित है, जहां क्षेत्रवासी अपनी मुरादें पूरी करने प्रति वर्ष छेरछेरा पुन्नी मेले में आते हैं और इन्हें तुरतुरिया माता के नाम से पुकारते हैं।

जनपद पंचायत के अधीन देख-रेख : तुरतुरिया मेला की व्यवस्था स्थानीय जनपद पंचायत के अधीन है। बताया जाता है कि मेला के तीन दिन लाखों श्रद्घालुओं का रेलमपेल लगा रहता है लेकिन अभी वर्तमान समय में इस पावन भूमि के प्रति लोगों की आस्था दिन-प्रतिदिन बढ़ने के साथ-साथ बारहों महीने लोगों का आवागमन लगा रहता है।

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सुविधाओं का अभाव : स्थानीय लोगो का कहना है कि मेला परिसर में जनपद पंचायत द्वारा व्यापारियों को सुविधा देने के एवज में राशि ली जाती है लेकिन मेले में न तो पेयजल की व्यवस्था होती है और न ही सफाई की। यहां आए श्रद्धालु डिस्पोजल, पत्तल, प्लास्टिक की वस्तुओं को जहां-तहां फेंक कर चले जाते हैं जिसके चलते यहां गंदगी का आलम सा बना रहता है। जनपद इसकी सफाई की सुध नहीं लेता।

कसडोल के जनपद पंचायत सीईओ प्रताप सिंह ठाकुर के अनुसार तुरतुरिया में तीन दिन का मेला लगता है जिसमें मेला समितियों के द्वारा व्यवस्था की जाती है लेकिन अब वर्षभर श्रद्घालु आते रहते हैं। इसके चलते जल्द ही श्रद्घालुओं को समुचित व्यवस्था प्रदान करने के लिए आगामी मेला समिति की बैठक में प्रस्ताव रखा जाएगा।

पुराना रास्ता ही था सुरक्षित : ग्राम ठाकुर दिया से तुरतुरिया पहुंचने के 4 किमी. मार्ग पर जान-लेवा घाटियों से होकर गुजरना पड़ता है। लोगों का कहना है कि तुरतुरिया जाने के लिए पुराना मार्ग ही सही था, लेकिन स्टाप डेम बनाने के कारण पुराने रास्ते को बंद कर दिया गया है। जिसके चलते श्रद्घालु इस जानलेवा ढलान वाली घाटी से अंजान रहते हैं जिसके कारण हमेशा दुर्घटना होने की आशंका बनी रहती है। स्थानीय लोगों की मांग है कि शासन यहां सुविधाएं बढ़ाए और उक्त घाटी की ढलान को कम करें ताकि गंभीर दुर्घटनाओं को टाला जा सके।