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गाय और बछड़ों की सेवा का पर्व गोवत्स द्वादशी, होगा गाय-बछड़े का पूजन, पढ़ें कथा..

गाय और बछड़ों की सेवा का पर्व गोवत्स द्वादशी, होगा गाय-बछड़े का पूजन, पढ़ें कथा..। Govatsa Dwadashi 2018 - Govatsa Dwadashi 2018
जनमानस में प्रचलित है गोवत्स द्वादशी की यह पौराणिक कथा
 
जनमानस में प्रचलित गोवत्स द्वादशी की पौराणिक कथा के अनुसार प्राचीन समय में भारत में सुवर्णपुर नामक एक नगर था। वहां देवदानी नाम का राजा राज्य करता था। उसके पास एक गाय और एक भैंस थी। 
 
उनकी दो रानियां थीं, एक का नाम 'सीता' और दूसरी का नाम 'गीता' था। सीता को भैंस से बड़ा ही लगाव था। वह उससे बहुत नम्र व्यवहार करती थी और उसे अपनी सखी के समान प्यार करती थी। 
 
राजा की दूसरी रानी गीता गाय से सखी-सहेली के समान और बछडे़ से पुत्र समान प्यार और व्यवहार करती थी। 
 
यह देखकर भैंस ने एक दिन रानी सीता से कहा- गाय-बछडा़ होने पर गीता रानी मुझसे ईर्ष्या करती है। इस पर सीता ने कहा- यदि ऐसी बात है, तब मैं सब ठीक कर लूंगी। 
 
सीता ने उसी दिन गाय के बछडे़ को काट कर गेहूं की राशि में दबा दिया। इस घटना के बारे में किसी को कुछ भी पता नहीं चलता। किंतु जब राजा भोजन करने बैठा तभी मांस और रक्त की वर्षा होने लगी। महल में चारों ओर रक्त तथा मांस दिखाई देने लगा। राजा की भोजन की थाली में भी मल-मूत्र आदि की बास आने लगी। यह सब देखकर राजा को बहुत चिंता हुई। 
 
उसी समय आकाशवाणी हुई- 'हे राजा! तेरी रानी ने गाय के बछडे़ को काटकर गेहूं की राशि में दबा दिया है। इसी कारण यह सब हो रहा है। कल 'गोवत्स द्वादशी' है। इसलिए कल अपनी भैंस को नगर से बाहर निकाल दीजिए और गाय तथा बछडे़ की पूजा करें। 
 
इस दिन आप गाय का दूध तथा कटे फलों का भोजन में त्याग करें। इससे आपकी रानी द्वारा किया गया पाप नष्ट हो जाएगा और बछडा़ भी जिंदा हो जाएगा। अत: तभी से गोवत्स द्वादशी के दिन गाय-बछड़े की पूजा करने का महत्व माना गया है तथा गाय और बछड़ों की सेवा की जाती है।
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