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Written By Author डॉ. प्रकाश हिन्दुस्तानी

मैं, मेरा स्मार्ट फोन और मेरा नेटवर्क

मैं, मेरा स्मार्ट फोन और मेरा नेटवर्क - Smart phone network
# माय हैशटैग
आजकल स्मार्ट फोन सब लोगों के साथी हैं। कुछ लोगों के लिए वे दोस्त हैं, कुछ लोगों के लिए वे ब्वॉयफ्रेंड या गर्लफ्रेंड की तरह है और कुछ लोगों के लिए गुरु की तरह। अब स्मार्ट फोन के विज्ञापन भी हो सकते हैं- ‘हम है तीन दीवाने : मैं, मेरा स्मार्ट फोन और मेरा नेटवर्क’। 
 
गूगल कंपनी के पूर्व प्रोडक्ट मैनेजर ट्रॉयस्टन हैरिस का कहना है कि अब एप्पल, फेसबुक, गूगल, यू-ट्यूब, स्नैपचेट, ट्विटर, इंस्टाग्राम जैसे प्रोडक्ट उपभोक्ताओं का अधिकतम समय खाने लगे हैं। अब सोशल मीडिया के यूजर्स के पास समय की कमी है। इसीलिए हैरिस ने एक नॉन प्रोफिट संगठन बनाया है, जिसका नाम है ‘टाइम वेल स्पेंट’। हैरिस का कहना है कि यह कंपनियां अपने यूजर्स के दिमाग में घुस गई है और अब उन्हें बताने लगी है कि वे क्या करें? हैरिस ने पिछले दिनों एक घंटे का भाषण ‘टेड टॉक’ प्रोग्राम में दिया था। इस मशहूर टॉक शो में दिया गया उनका भाषण इंटरनेट पर बहुत ज्यादा लोकप्रिय हुआ। हैरिस का कहना है कि ये वेबसाइट्स एप्स विज्ञापनदाता और नोटिफिकेशन मिलकर यूजर को झंझोड़ते रहते हैं। दिलचस्प बात यह है कि लोग इंटरनेट के इस जाल को समझ नहीं पा रहे है और फंसे हुए हैं। 
 
दुनिया के दो अरब लोग अब उसी तरह सोचने लगे हैं, जिस तरह इंटरनेट उन्हें सोचने के लिए प्रेरित करता है। इतने ज्यादा लोगों पर इतना प्रभाव धर्म, राजनीति और सरकारों का भी नहीं रहा। सबसे खतरनाक बात यह है कि इन वेबसाइट्स का भी इस बात पर कोई नियंत्रण नहीं है कि वे लोगों के सामने क्या चीज परोसने जा रही हैं? न्यूज फीड में जो कुछ आता है, लोग उसे पढ़ने लगते हैं और जो वीडियो दूसरे लोग शेयर करते हैं, वही देखने भी लग जाते हैं। कहने को सोशल मीडिया पर इंसानों का कंट्रोल है, लेकिन असलियत यह है कि सोशल मीडिया ही इंसानों पर कंट्रोल करने लगा है। 
 
हैरिस का मानना है कि अगर आप कुछ समय के लिए इंटरनेट से कट जाएं और फिर लोगों से मिलें, तो आप पाएंगे कि लोग वैसे बिल्कुल नहीं हैं, जैसे सोशल मीडिया पर नजर आते हैं। जिन लोगों को आप सोशल मीडिया पर एक खास छवि के साथ देखते थे, वे कुछ अलग ही नजर आते हैं। ये लोग आपके दिमाग को पढ़ नहीं रहे, इसलिए आप इनकी बात खुलकर सुन और समझ सकते हैं।
 
यू-ट्यूब ने सैकड़ों आईटी इंजीनियरों की एक फौज लगा रखी है, जो यह तय करती है कि आपके सामने कौन-कौन से वीडियो ऑटोमैटिक रूप से नेक्स्ट्स वीडियो के रूप में आए। इसमें तकनीक का भी सहारा है और जब आप एक वीडियो देखना शुरू करते हैं, तब आपके सामने न चाहते हुए भी कतारबद्ध वीडियो आ जाते है। न चाहते हुए भी आप किसी न किसी वीडियो को देखना शुरू करते हैं और फिर यह क्रम लंबा चलता है। कई बार तो घंटों निकल जाते है, जब आप यू-ट्यूब बंद करते हैं, तब अपने आप से पूछते है कि आप क्या यह सब करने के लिए यू-ट्यूब विजिट कर रहे थे।
 
हैरिस का कहना है कि हम वह सबकुछ कर रहे हैं, जो करने का इरादा नहीं रखते। इसका मतलब यह हुआ कि हमने अपने आप के प्रति जागृति का भाव नहीं है। आप अपने स्मार्ट फोन में कुछ नोटिफिकेशन पाते हैं और उन्हें पढ़ने बैठ जाते हैं। कुछ नोटिफिकेशन चंद सेकंड्स में ही खत्म हो जाते हैं और कुछ ऐसे होते हैं, जो आपके कई मिनिट खा जाते हैं। इससे बचने का एक ही तरीका है कि हम अपने प्रति सतर्क रहें और पूरी अफेयरनेस रखें कि हमें अपने स्मार्ट फोन को कितना समय देना है और क्या चीज देखनी है। ऐसा भी होता है कि हम मैसेज बॉक्स में जाकर कुछ ऐसी चीज टाइप कर बैठते हैं, जिसके बारे में हमने 5-10 मिनिट पहले भी कुछ सोचा नहीं था। इसका मतलब यह हुआ कि हम क्या टाइप करने वाले हैं यह भी हम तय नहीं करते। 
 
इंटरनेट की ये कंपनियां मानती हैं कि हर व्यक्ति तकनीक के जरिये सोशल होना चाहता है। वह अपने दोस्तों को डिनर पर बुलाना चाहता है, तो वह भी सोशल मीडिया के प्लेटफार्म पर। इंटरनेट के न्यौते पर वह अपेक्षा करता है कि उसका मेहमान खुद चलकर आए। अगर आप यह चाहते हैं कि लोगों से मिलें-जुलें तो पहले इंटरनेट की दुनिया से बाहर निकले और व्यक्तिगत रूप से जाकर मित्रों से मिलें और उन्हें न्योता दें।
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