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Written By Author दिनेश 'दर्द'
Last Updated : बुधवार, 16 अगस्त 2017 (20:27 IST)

देवताले सर से पहली मुलाकात...

देवताले सर से पहली मुलाकात... - Chandrakant Devtale famous poet
बहुत काम किया सर (चंद्रकांत देवताले) के साथ। शायद 2003 के उत्तरार्ध या 2004 के पूर्वार्ध में पहली भेंट हुई थी सर से। जन शिक्षण संस्थान उज्जैन में।
 
वो डायरेक्टर के केबिन में बैठे थे और मैं सामने के कमरे में, एक मुलाज़िम की हैसियत से। तारीख़ और दिन वगैरह तो याद नहीं। हां, इतना ज़रूर याद है कि उस रोज़ "गुरु पूर्णिमा" थी शायद। लिहाज़ा, ख़ाली हाथ मिलना नहीं चाहता था। फौरन एक नज़्म लिक्खी। उनवान (शीर्षक) दिया, "ऐ संगतराश"
 
"क्या नसीब
उस संग का
कि जिसके आहनी जिस्म से
मचल कर बेताब हैं कई-कई
चश्मे फूट पड़ने को
 
जिसकी शक़्ल अब मुहताज नहीं
किसी ख़ुदाई करिश्मे की
एक बदनुमा, बेशक्ल जिस्म को
अपने हाथों का हुनर देने वाले
ऐ संगतराश !
बता, तुझे आज़र* कहूँ ?
या ख़ुदा कहूँ अपना ??
             
*आज़र = एक प्रसिद्ध मूर्तिकार था।    
      
बहुत ख़ुश हुए थे सर ये नज़्म पढ़ कर। पूछा, कि क्या तुमने लिक्खी है ? मैंने कहा, जी सर। अभी हाल ही लिक्खी है आपके लिए। आपसे पहली मुलाक़ात थी और संयोग से आज गुरु पूर्णिमा भी है। सो, ख़ाली हाथ नहीं आना चाहता था आपके पास। बस, फिर तो सर उनकी कविताएं फेयर करने के लिए अक्सर बुला लिया करते थे। शुरू-शुरू में ऑफिस में ही, फिर उसके बाद घर पर। बहुत काम किया फिर सर के साथ। श्रद्धांजलि।