यौगिक आहार को जानें
यदि आप योग करते हों या न करते हों, दोनों ही स्थिति में यौगिक आहार को जानना आवश्यक है। हिंदू धर्मग्रंथ वेद में कहा गया है कि अन्न ही ब्रह्म अर्थात ईश्वर है। अन्न को अच्छी भावदशा, ऊर्जावान, साफ-सुथरी तथा शांतिमय जगह पर ग्रहण किया जाए तो वह अमृत समान होता है।
अन्न में कई तरह के रोग उत्पन्न करने की शक्ति है और यही हर तरह के रोग और शोक मिटा भी सकता है। योग में अन्न के कुछ प्रकार बताते हुए कहा गया है कि क्या खाना चाहिए और क्या नहीं। मूलत: इसके तीन प्रकार हैं- मिताहार, पथ्यकारक और अपथ्यकारक। मिताहार : मिताहार का अर्थ सीमित आहार। जितना भोजन लेने की क्षमता है, उससे कुछ कम ही भोजन लेना और साथ ही भोजन में इस्तेमाल किए जाने वाले तत्व भी सीमित हैं तो यह मिताहार है।
मिताहार के अंतर्गत भोजन अच्छी प्रकार से घी आदि से चुपड़ा हुआ होना चाहिए। मसाले आदि का प्रयोग इतना हो कि भोजन की स्वाभाविक मधुरता बनी रहे।
भोजन करते समय ईश्वर के प्रति आभार प्रकट करें। इस प्रकार के मिताहार से योगाभ्यास में स्फूर्ति बनी रहती है। साधक शीघ्र ही अपने अभ्यास में सफलता पाने लगता है।
अपथ्यकारक भोजन : यदि आप योगाभ्यास कर रहे हैं तो निम्नलिखित प्रकार के भोजन का सेवन नहीं करें। यदि करते हैं तो इससे अभ्यास में बाधा उत्पन्न होती है।
ये भोजन हैं: कड़वा, खट्टा, तीखा, नमकीन, गरम, खट्टी भाजी, तेल, तिल, सरसों, दही, छाछ, कुलथी, बेर, खल्ली, हींग, लहसुन और मद्य, मछली, बकरे आदि का माँस। ये सभी वस्तुएँ अपथ्यकारक हैं।
इसके अलावा बने हुए खाने को पुन: गरम करके भी नहीं खाना चाहिए। अधिक नमक, खटाई आदि भी नहीं खाना चाहिए।
पथ्यकारक भोजन : योग साधकों द्वारा योगाभ्यास में शीघ्र सफलता प्राप्त करने के लिए कहा गया है कि भोजन पुष्टिकारक हो, सुमधुर हो, स्निग्ध हो, गाय के दूध से बनी चीजें हों, सुपाच्य हो तथा मन को अनुकूल लगने वाला हो। इस प्रकार के भोजन योग के अभ्यास को आगे बढ़ाने में सहायक तत्व होते हैं। योगियों ने निम्नलिखित प्रकार के भोजन बताए हैं-
ये भोजन हैं- गेहूँ, चावल, जौ जैसे सुंदर अन्न। दूध, घी, खाण्ड, मक्खन, मिसरी, मधु जैसे फल-दूध। जीवन्ती, बथुआ, चौलाई, मेघनाद एवं पुनर्नवा जैसे पाँच प्रकार के शाक। मूँग, हरा चना आदि।
ध्यान रखने योग्य: ध्यान में रखना चाहिए कि भोजन तरल, सुपाच्य, पुष्टिकारक और सुमधुर हो। गाय के दूध से बनी चीजें हों। इस प्रकार के भोजन से योग के अभ्यास में सहायता मिलती है तथा व्यक्ति आजीवन निरोगी बना रहता है।