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Written By Naidunia
Last Modified: मंदसौर , बुधवार, 28 दिसंबर 2011 (22:44 IST)

'मैं प्रतिभाशाली हूँ, संपादन मेरा धर्म है'

''मैं प्रतिभाशाली हूँ, संपादन मेरा धर्म है'' -
तुलसीदासजी द्वारा लिखी गई रामचरित मानस का मैंने संपादन किया है, उसमें कोई संशोधन नहीं किया। मानस का अभी तक 50 बार संपादन हो चुका है। किसी भी लेख में संपादन करना प्रतिभाशाली का धर्म है और मैं प्रतिभाशाली हूंॅ।


यह बात चित्रकूट पीठाधीश्वर स्वामी रामभद्राचार्यजी महाराज ने कही। वे बुधवार को माहेश्वरी धर्मसभा में पत्रकारों से चर्चा कर रहे थे। उन्होंने कहा कि श्री रामचरित मानस के संपादन को लेकर शिव आसरे अस्थाना द्वारा उप्र उच्च न्यायालय इलाहाबाद की लखनऊ खंडपीठ में याचिका दायर कर आरोप लगाए थे कि रामचरित मानस के तथ्यों के साथ छेड़छाड़ की गई है।


बाद में न्यायालय ने भी इन आरोपों को मनगढ़ंत पाते हुए 19 मई 2011 को याचिका खारिज कर दी थी और साथ ही उस पर 20 हजार रुपए का जुर्माना भी किया था। उन्होंने कहा कि 2003 में मैंने रामचरित मानस के 27 पृष्ठों का संपादन किया, इसके बाद गीता के कुछ लेख का भी संपादन किया। किसी भी प्रकार से शास्त्र में छेड़छाड़ नहीं की गई।