क्यों रमाते हैं भोलेनाथ अपने तन पर भस्म, पढ़ें रहस्य  
					
					
                                       
                  
				  				 
								 
				  
                  				  भगवान भोलेनाथ को विचित्र सामग्री ही प्रिय हैं। चाहे वह जहरीला धतूरा हो, या नशीली भांग। इसी तरह वे अपने तन पर भस्म रमाए रहते हैं। लेकिन इसके पीछे राज क्या है बहुत कम लोग जानते हैं। 
				  
	 भगवान शिव ने अपने तन पर जो भस्म रमाई है वह उनकी पत्नी सती की चिता की भस्म थी जो कि अपने पिता द्वारा भगवान शिव के अपमान से आहत हो वहां हो रहे यज्ञ के हवनकुंड में कूद गई थी। भगवान शिव को जब इसका पता चला तो वे बहुत बेचैन हो गये। जलते कुंड से सती के शरीर को निकालकर प्रलाप करते हुए ब्रह्माण्ड में घूमते रहे। उनके क्रोध व बेचैनी से सृष्टि खतरे में पड़ गई। जहां जहां सती के अंग गिरे वहां शक्तिपीठ की स्थापना हो गई। पिर भी शिव का संताप जारी रहा। तब श्री हरि ने सती के शरीर को भस्म में परिवर्तित कर दिया। शिव विरह की अग्नि में भस्म को ही उनकी अंतिम निशानी के तौर पर तन पर लगा लिया।
				  																	
									  
	 
	पहले भगवान श्री हरि ने देवी सती के शरीर को छिन्न भिन्न कर दिया था। जहां जहां उनके अंग गिरे वहीं शक्तिपीठों की स्थापना हुई। लेकिन पुराणों में भस्म का विवरण भी मिलता है। 
				  				  
	 
	भगवान शिव के तन पर भस्म रमाने का एक रहस्य यह भी है कि राख विरक्ति का प्रतीक है। भगवान शिव चूंकि बहुत ही लौकिक देव लगते हैं। कथाओं के माध्यम से उनका रहन-सहन एक आम सन्यासी सा लगता है। एक ऐसे ऋषि सा जो गृहस्थी का पालन करते हुए मोह माया से विरक्त रहते हैं और संदेश देते हैं कि अंत काल सब कुछ राख हो जाना है। 
				  						
						
																							
									  
	 
	एक रहस्य यह भी हो सकता है चूंकि भगवान शिव को विनाशक भी माना जाता है। ब्रह्मा जहां सृष्टि की निर्माण करते हैं तो विष्णु पालन-पोषण लेकिन जब सृष्टि में नकारात्मकता बढ़ जाती है तो भगवान शिव विध्वंस कर डालते हैं। विध्वंस यानि की समाप्ति और भस्म इसी अंत इसी विध्वंस की प्रतीक भी है। शिव हमेशा याद दिलाते रहते हैं कि पाप के रास्ते पर चलना छोड़ दें अन्यथा अंत में सब राख ही होगा। 
				  																													
								 
 
 
  
														
																		 							
																		
									  
	 
	महाकाल की भस्मार्ती 
	 
	 
	उज्जैन स्थित महाकालेश्वर की भस्मार्ती विश्व भर में प्रसिद्ध है। ऐसी मान्यता है कि वर्षों पहले श्मशान भस्म से भूतभावन भगवान महाकाल की भस्म आरती होती थी लेकिन अब यह परंपरा खत्म हो चुकी है और अब कंडे की भस्म से आरती-श्रृंगार किया जा रहा है। वर्तमान में महाकाल की भस्म आरती में कपिला गाय के गोबर से बने औषधियुक्त उपलों  में शमी, पीपल, पलाश, बड़, अमलतास और बेर की लकड़ियों को जलाकर  बनाई भस्म का प्रयोग किया जाता है।
				  