संकलन : अनिरुद्ध जोशी 'शतायु' अंग्रेज इतिहासकार यह लिखते रहे हैं कि अंग्रेजों को छोड़कर किसी भारतीय या मुगल राजा ने कभी संपूर्ण भारत पर शासन नहीं किया। इसीलिए शायद वे युधिष्ठिर के बाद उज्जैन के राजा विक्रमादित्य की कहानी से लोगों को अनभिज्ञ रखना चाहते हैं। उनके योगदान और उनकी शौर्यगाथा को भारतीय इतिहास में कभी शामिल नहीं किया गया। उनकीदृष्टि में सिकंदर, चंगेज खां, सम्राट अकबर महान और हत्यारा औरंगजेब महान थे, विम्रमादित्य या गुप्त वंश के राजा महान नहीं थे। उनकी दृष्टि में महानता का मतलब क्रूरता, हिंसा, छल-कपट और धर्मान्तरण होता है।
हिन्दूकुश से लेकर अरुणाचल तक और कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक युधिष्ठिर और उसके पूर्ववर्ती राजाओं के अलावा राजा विक्रमादित्य, चंद्रगुप्त मौर्य सहित आदि कुछ राजाओं ने संपूर्ण भारत पर शासन किया था।
मुगलकाल में तो विजयनगर साम्राज्य, मराठा साम्राज्य, राजपूत साम्राज्य सहित पूर्वोत्तर भारत के क्षेत्र अपनी स्वतंत्र सत्ता रखता थे। और जब अंग्रेजों ने शासन प्रारंभ किया तब अफगानिस्तान (कंबोज और गंधार) अपनी अलग सत्ता रखते थे। ऐसे में अंग्रेजों ने जिस भारत पर शासन किया, वह एक खंडित भारत था। अंग्रेजों ने सिर्फ मुगलों से नहीं- सिखों, मराठों और राजपूतों से सत्ता छीनी थी।
सन् 187 ईपू में मौर्य साम्राज्य के पतन के बाद भारतीय इतिहास की राजनीतिक एकता बिखर गई। इस खंडित एकता के चलते देश के उत्तर-पश्चिमी मार्गों से कई विदेशी आक्रांताओं ने आकर अनेक भागों में एक ओर जहां लूटपाट की, वहीं दूसरी ओर उन्होंने अपने-अपने राज्य स्थापित कर लिए। इन आक्रांताओं और लुटेरों में से कुछ तो महाक्रूर और बर्बर हत्यारे थे जिन्होंने भारतीय जनता को बेरहमी से कुचला। आओ जानते हैं ऐसे ही 10 बर्बर लुटेरों के बारे में...
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मिहिरकुल : मिहिरकुल एक हूण शासक था। हूण कौन थे इस पर इतिहाकारों में विवाद है। अधिकतर इतिहाकार हूणों को चीन का मानते हैं। हालांकि मिहिरकुल एक शिवभक्त शासक था। शिव के अलावा वह किसी भी धर्म या संस्कृति में विश्वास नहीं रखता था। भारत में उससे सबसे क्रूर शासक माना गया है। मिहिरकुल का प्रबल विरोधी राजा यशोधर्मन था।
मिहिरकुल हूण सम्राट तोरमाण और उसके पुत्र मिहिरकुल भारतीय इतिहास में अपनी खूँखार और ध्वंसात्मक प्रवृत्ति के लिये प्रसिद्ध हैं। 450 ईस्वी के लगभग, हूण गांधार इलाके के शासक थे, जब उन्होंने वहां से सारे सिन्धु घाटी प्रदेश को जीत लिया था। कुछ समय बाद ही उन्होंने मारवाड़ और पश्चिमी राजस्थान के इलाके भी जीत लिए। 495 ईस्वी के लगभग हूणों ने तोरमाण के नेतृत्व में गुप्तों से पूर्वी मालवा छीन लिया। एरण, सागर जिले में वराह मूर्ति पर मिले तोरमाण के अभिलेख से इस बात की पुष्टि होती हैं। जैन ग्रन्थ कुवयमाल के अनुसार तोरमाण चंद्रभागा नदी के किनारे स्थित पवैय्या नगरी से भारत पर शासन करता था। यह पवैय्या नगरी ग्वालियर के पास स्थित थी।
तोरमाण के बाद उसका पुत्र मिहिरकुल हूणों का राजा बना जिसने शकों और कुषाणों की सत्ता को उखाड़ कर फेंक दिया था। मिहिरकुल ने पंजाब स्थित स्यालकोट को अपनी राजधानी बनाया। मिहिकुल हूण एक कट्टर शैव था। सने अपने शासन काल में हजारों शिव मंदिर बनवाए। मिहिरकुल के सिक्कों पर 'जयतु वृष' लिखा है जिसका अर्थ है- जय नंदी।
अत्तिला हूण (406-453) : वैसे हूणों में सबसे क्रूर अत्तिला हूण था। अत्तिला के नाम से पूरा पश्चिमी-दक्षिणी एशिया के साथ ही पूरा यूरोप कांपता था। जर्मनी से यूराल नदी और औरडैन्यूब नदी से बाल्टिक सागर तक फैले हूण साम्राज्य का यह शक्तिशाली सम्राट था। अत्तिला ने रोमनों को सेन नदी के नजदीक त्राय मैदान पर बुरी तरह हराया और पूरे नगर को नष्ट कर दिया था। अत्तिला के सैनिकों ने भारत में गुप्त वंश की जड़े हिला दी थी। उसके सैनिक भारत में लगातर लूटापाट करते रहे। दुनिया में मंगोलों के बाद हूणों को सबसे ज्यादा निर्दयी माना जाता है।
अगले पन्ने पर दूसरा क्रूर शासक... मुहम्मद बिन कासिम: 7वीं सदी के बाद अफगानिस्तान और पाकिस्तान भारत के हाथ से जाता रहा। भारत में इस्लामिक शासन का विस्तार 7वीं शताब्दी के अंत में मोहम्मद बिन कासिम के सिन्ध पर आक्रमण और बाद के मुस्लिम शासकों द्वारा हुआ। लगभग 712 में इराकी शासक अल हज्जाज के भतीजे एवं दामाद मुहम्मद बिन कासिम ने 17 वर्ष की अवस्था में सिन्ध और बलूच पर के अभियान का सफल नेतृत्व किया।
इस्लामिक खलीफाओं ने सिन्ध फतह के लिए कई अभियान चलाए। 10 हजार सैनिकों का एक दल ऊंट-घोड़ों के साथ सिन्ध पर आक्रमण करने के लिए भेजा गया। सिन्ध पर ईस्वी सन् 638 से 711 ई. तक के 74 वर्षों के काल में 9 खलीफाओं ने 15 बार आक्रमण किया। 15वें आक्रमण का नेतृत्व मोहम्मद बिन कासिम ने किया।
मुहम्मद बिन कासिम अत्यंत ही क्रूर यौद्धा था। सिंध के दीवान गुन्दुमल की बेटी ने सर कटवाना स्वीकर किया, पर मीर कासिम की पत्नी बनना नहीं। इसी तरह वहां के राजा दाहिर (679ईस्वी में राजा बने)और उनकी पत्नियों और पुत्रियों ने भी अपनी मातृभूमि और अस्मिता की रक्षा के लिए अपनी जान दे दी। सिंध देश के सभी राजाओं की कहानियां बहुत ही मार्मिक और दुखदायी हैं। आज सिंध देश पाकिस्तान का एक प्रांत बनकर रह गया है। राजा दाहिर अकेले ही अरब और ईरान के दरिंदों से लड़ते रहे। उनका साथ किसी ने नहीं दिया बल्कि कुछ लोगों ने उनके साथ गद्दारी की।
अगले पन्ने पर तीसरा क्रूर शासक... महमूद गज़नवी (977 से) : अरबों के बाद तुर्कों ने भारत पर आक्रमण किया। अलप्तगीन नामक एक तुर्क सरदार ने गजनी में तुर्क साम्राज्य की स्थापना की। 977 ई. में अलप्तगीन के दामाद सुबुक्तगीन ने गजनी पर शासन किया। सुबुक्तगीन ने मरने से पहले कई लड़ाइयां लड़ते हुए अपने राज्य की सीमाएं अफगानिस्तान, खुरासान, बल्ख एवं पश्चिमोत्तर भारत तक फैला ली थीं। सुबुक्तगीन की मुत्यु के बाद उसका पुत्र महमूद गजनवी गजनी की गद्दी पर बैठा। महमूद गजनवी ने बगदाद के खलीफा के आदेशानुसार भारत के अन्य हिस्सों पर आक्रमण करना शुरू किए।
उसने भारत पर 1001 से 1026 ई. के बीच 17 बार आक्रमण किए। उसने प्रत्येक वर्ष भारत के अन्य हिस्सों पर आक्रमण करने की प्रतिज्ञा की। अपने 13वें अभियान में गजनवी ने बुंदेलखंड, किरात तथा लोहकोट आदि को जीत लिया। 14वां आक्रमण ग्वालियर तथा कालिंजर पर किया। अपने 15वें आक्रमण में उसने लोदोर्ग (जैसलमेर), चिकलोदर (गुजरात) तथा अन्हिलवाड़ (गुजरात) पर आक्रमण कर वहां खूब लूटपाट की।
माना जाता है कि महमूद गजनवी ने अपना 16वां आक्रमण (1025 ई.) सोमनाथ पर किया। उसने वहां के प्रसिद्ध मंदिरों को तोड़ा और वहां अपार धन प्राप्त किया। इस मंदिर को लूटते समय महमूद ने लगभग 50,000 ब्राह्मणों एवं हिन्दुओं का कत्ल कर दिया। इसकी चर्चा पूरे देश में आग की तरह फैल गई। 17वां आक्रमण उसने सिन्ध और मुल्तान के तटवर्ती क्षेत्रों के जाटों के पर किया। इसमें जाट पराजित हुए।
अगले पन्ने पर चौथा क्रूर शासक... मुहम्मद गोरी : मुहम्मद बिन कासिम के बाद महमूद गजनवी और उसके बाद मुहम्मद गोरी ने भारत पर आक्रमण कर अंधाधुंध कत्लेआम और लूटपाट मचाई। इसका पूरा नाम शिहाबुद्दीन उर्फ मुईजुद्दीन मुहम्मद गोरी था। भारत में तुर्क साम्राज्य की स्थापना करने का श्रेय मुहम्मद गोरी को ही जाता है। गोरी गजनी और हेरात के मध्य स्थित छोटे से पहाड़ी प्रदेश गोर का शासक था।
उसने पहला आक्रमण 1175 ईस्वी में मुल्तान पर किया, दूसरा आक्रमण 1178 ईस्वी में गुजरात पर किया। इसके बाद 1179-86 ईस्वी के बीच उसने पंजाब पर फतह हासिल की। इसके बाद उसने 1179 ईस्वी में पेशावर तथा 1185 ईस्वी में स्यालकोट अपने कब्जे में ले लिया। 1191 ईस्वी में उसका युद्ध पृथ्वीराज चौहान से हुआ। इस युद्ध में मुहम्मद गोरी को बुरी तरह पराजित होना पड़ा। इस युद्ध में गौरी को बंधक बना लिया गया, लेकिन पृथ्वीराज चौहान ने उसे छोड़ दिया। इसे तराइन का प्रथम युद्ध कहा जाता था।
इसके बाद मुहम्मद गोरी ने अधिक ताकत के साथ पृथ्वीराज चौहान पर आक्रमण कर दिया। तराइन का यह द्वितीय युद्ध 1192 ईस्वी में हुआ था। अबकी बार इस युद्ध में पृथ्वीराज चौहान हार गए और उनको बंधक बना लिया गया। ऐसा माना जाता है कि बाद में उन्हें गजनी लेजाकर मार दिया गया। गोरी भारत में गुलामवंश का शासन स्थापित करके पुन: अपने राज्य लौट गया।
अगले पन्ने पर पांचवां क्रूर शासक... चंगेज खान : (मंगोलियाई नाम चिंगिस खान, सन् 1162 से 18 अगस्त, 1227)। चंगेज खान ने मुस्लिम साम्राज्य को लगभग नष्ट ही कर दिया था। वह एक मंगोल शासक था। वह बौद्ध धर्म का अनुयायी था। हलाकू खान भी बौद्ध था। चंगेज अपनी संगठन शक्ति, बर्बरता तथा साम्राज्य विस्तार के लिए कुख्यात रहा। भारत सहित संपूर्ण रशिया, एशिया और अरब देश चंगेज खान के नाम से ही कांपते थे।
चंगेज खान का जन्म 1162 के आसपास आधुनिक मंगोलिया के उत्तरी भाग में ओनोन नदी के निकट हुआ था। उसका वास्तविक या प्रारंभिक नाम तेमुजिन (या तेमूचिन) था। उसके पिता का नाम येसूजेई था जो कियात कबीले का मुखिया था।
चंगेज खान ने अपने अभियान चलाकर ईरान, गजनी सहित पश्चिम भारत के काबुल, कन्धार, पेशावर सहित उसने कश्मीर पर भी अधिकार कर लिया। इस समय चंगेज खान ने सिंधु नदी को पार कर उत्तरी भारत और असम के रास्ते मंगोलिया वापस लौटने की सोची। लेकिन वह ऐसा नहीं कर पाया। इस तरह उत्तर भारत एक संभावित लूटपाट और वीभत्स उत्पात से बच गया।
एक नए अनुसंधान के अनुसार इस क्रूर मंगोल योद्धा ने अपने हमलों में इस कदर लूटपाट की और खूनखराबा किया कि एशिया में चीन, अफगानिस्तान सहित उजबेकिस्तान, तिब्बत और बर्मा आदि देशों की बहुत बड़ी आबादी का सफाया हो गया था। मुसलमानों के लिए तो चंगेज खान और हलाकू खान अल्लाह का कहर था।
अगले पन्ने पर छठा क्रूर शासक...
- तैमूर : तैमूल लंग भी चंगेज खान जैसा शासक बनना चाहता था। सन् 1369 ईस्व में समरकंद का शासक बना। उसके बाद उसने अपनी विजय और क्रूरता की यात्रा शुरू की। मध्य एशिया के मंगोल लोग इस बीच में मुसलमान हो चुके थे और तैमूर खुद भी मुसलमान था।
क्रूरता के मामले में वह चंगेज खान की तरह ही था। कहते हैं, एक जगह उसने दो हजार जिन्दा आदमियों की एक मीनार बनवाई और उन्हें ईंट और गारे में चुनवा दिया।
जब तैमूर ने भारत पर आक्रमण किया तब उत्तर भारत में तुगलक वंश का राज था। 1399 में तैमूर लंग द्वारा दिल्ली पर आक्रमण के साथ ही तुगलक साम्राज्य का अंत माना जाना चाहिए। तैमूर मंगोलों की फौज लेकर आया तो उसका कोई कड़ा मुकाबला नहीं हुआ और वह कत्लेआम करता हुआ मजे के साथ आगे बढ़ता गया।
तैमूर के आक्रमण के समय वक्त हिन्दू और मुसलमान दोनों ने मिलकर जौहर की राजपूती रस्म अदा की थी, यानी युद्ध में लड़ते-लड़ते मर जाने के लिए बाहर निकल पड़े थे। दिल्ली में वह 15 दिन रहा और उसने इस बड़े शहर को कसाईखाना बना दिया। बाद में कश्मीर को लूटता हुआ वह समरकंद वापस लौट गया। तैमूर के जाने के बाद दिल्ली मुर्दों का शहर रह गया था।
अगले पन्ने पर सातवां क्रूर शासक... बाबर : मुगलवंश का संस्थापक बाबर एक लूटेरा था। उसने उत्तर भारत में कई लूट को अंजाम दिया। मध्य एशिया के समरकंद राज्य की एक बहुत छोटी सी जागीर फरगना (वर्तमान खोकन्द) में 1483 ई. में बाबर का जन्म हुआ था। उसका पिता उमर शेख मिर्जा, तैमूरशाह तथा माता कुनलुक निगार खानम मंगोलों की वंशज थी।
बाबर ने चगताई तुर्की भाषा में अपनी आत्मकथा 'तुजुक ए बाबरी' लिखी इसे इतिहास में बाबरनामा भी कहा जाता है। बाबर का टकराव दिल्ली के शासक इब्राहिम लोदी से हुआ। बाबर के जीवन का सबसे बड़ा टकराव मेवाड़ के राणा सांगा के साथ था। बाबरनामा में इसका विस्तृत वर्णन है। संघर्ष में 1927 ई. में खन्वाह के युद्ध में, अन्त में उसे सफलता मिली।
बाबर ने अपने विजय पत्र में अपने को मूर्तियों की नींव का खण्डन करने वाला बताया। इस भयंकर संघर्ष से बाबर को गाजी की उपाधि प्राप्त की। गाजी वह जो काफिरों का कत्ल करे। बाबर ने अमानुषिक ढंग से तथा क्रूरतापूर्वक हिन्दुओं का नरसंहार ही नहीं किया, बल्कि अनेक हिन्दू मंदिरों को भी नष्ट किया। बाबर की आज्ञा से मीर बाकी ने अयोध्या में राम जन्मभूमि पर निर्मित प्रसिद्ध मंदिर को नष्ट कर मस्जिद बनवाई, इसी भांति ग्वालियर के निकट उरवा में अनेक जैन मंदिरों को नष्ट किया। उसने चंदेरी के प्राचित और ऐतिहासिक मंदिरों को भी नष्ट करवा दिया था, जो आज बस खंडहर है।
अगले पन्ने पर आठवां क्रूर शासक... औरंगजेब : भारत में मुगल शासकों में सबसे क्रूर औरंगवेब था। मुहीउद्दीन मुहम्मद औरंगजेब का जन्म 1618 ईस्वी में हुआ था। उसके पिता शाहजहां और माता का नाम मुमताज था।
बाबर का बेटा नासिरुद्दीन मुहम्मद हुमायूं दिल्ली के तख्त पर बैठा। हुमायूं के बाद जलालुद्दीन मुहम्मद अकबर, अकबर के बाद नूरुद्दीन सलीम जहांगीर, जहांगीर के बाद शाहबउद्दीन मुहम्मद शाहजहां, शाहजहां के बाद मुहीउद्दीन मुहम्मद औरंगजेब ने तख्त संभाला।
हिन्दुस्तान के इतिहास के सबसे जालिम शासक जिसने, अपने पिता को कैद किया, अपने सगे भाइयों और भतीजों की बेरहमी से ह्त्या की, गुरु तेग बहादुर का सर कटवाया, गुरु गोविन्द सिंह के बच्चो को जिंदा दीवार में चुनवाया, जिसने सैकड़ों मंदिरों को तुडवाया, जिसने अपनी प्रजा पर वे-इन्तहा जुल्म किए और अपने शासन क्षेत्र में गैर-मुस्लिमों के लिए मुनादी करावा दी थी कि या तो आप इस्लाम कबूल कर लें या फिर मरने के लिए तैयार रहें। औरंगजेब एक तुर्क था। उसके काल में ही उत्तर भारत का तेजी से इस्लामिकरण हुआ। अधिकतर ब्राह्मणों को या तो मुसलमान बनना पड़ा या उन्होंने प्रदेश को छोड़कर महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश के गांवों में शरण ली।
उत्तर प्रदेश के प्रसिद्ध इतिहासकार राधाकृष्ण बुंदेली अनुसार मुगल शासक औरंगजेब ने अपनी सेना को सन् 1669 में जारी अपने एक हुक्मनामे पर हिंदुओं के सभी मंदिर ध्वस्त करने का आदेश दिया था। इस दौरान सोमनाथ मंदिर, वाराणसी का मंदिर, मथुरा का केशव राय मंदिर के अलावा कई हिंदू देवी-देवताओं के प्रसिद्ध मंदिर तोड़ दिए गए थे।
औरंगजेब ने हिन्दू त्योहारों को सार्वजनिक तौर पर मनाने पर प्रतिबन्ध लगाया और उसने हिन्दू मंदिरों को तोड़ने का आदेश दिया. औरंगजेब दारुल हर्ब (काफिरों का देश भारत) को दारुल इस्लाम (इस्लाम का देश) में परिवर्तित करने को अपना महत्त्वपूर्ण लक्ष्य बनाया था। 1669 ई. में औरंगजेब ने बनारस के विश्वनाथ मंदिर एवं मथुरा के केशव राय मदिंर को तुड़वा दिया था।
अगले पन्ने पर नौवां क्रूर शासक... नादिर शाह (जन्म 6 अगस्त, 1688 मृत्यु 17 जून, 1747): नादिरशाह का पूरा नाम नादिर कोली बेग था। यह ईरान का शासक था। उसने भारत पर आक्रमण कर कई तरह की लूटपाट और कत्लेआम को अंजाम दिया। दिल्ली की सत्ता पर आसीन उस वक्त के मुगल बादशाह मुहम्मदशाह को हराने के बाद उसने वहां से अपार सम्पत्ति अर्जित की, जिसमें कोहिनूर हीरा भी शामिल था।
मुगल बादशाह मुहम्मदशाह और नादिरशाह के मध्य करनाल का युद्ध 1739 ई. में लड़ा गया। काबुल पर कब्ज करने के बाद उसने दिल्ली पर आक्रमण किया। करनाल में मुगल राजा मोहम्मद शाह और नादिर की सेना के बीच लड़ाई हुई। इसमें नादिर की सेना मुगलों के मुकाबले छोटी थी पर अपने बारूदी अस्त्रों के कारण फारसी सेना जीत गई।
हरने के बाद दिल्ली के सुल्तान मोहम्मद शाह ने संभवत मार्च 1739 में दिल्ली पहुंचने पर यह अफवाह फैली कि नादिर शाह मारा गया। इससे दिल्ली में भगदड़ मच गई और फारसी सेना का कत्ल शुरू हो गया। नादिर को जब यह पता चला तो उसने इस का बदला लेने के लिए दिल्ली पर आक्रमण कर दिया। उसने दिल्ली में भयानक खूनखराबा किया और एक दिन में कोई हजारों लोगों को मौत के घाट उतार दिया। इसके अलावा उसने शाह से भारी धनराशि भी लूट ली। मोहम्मद शाह ने सिंधु नदी के पश्चिम की सारी भूमि भी नादिरशाह को दान में दे दी। हीरे जवाहरात का एक जखीरा भी उसे भेंट किया गया जिसमें कोहिनूर (कूह-ए-नूर), दरियानूर और ताज-ए-मह नामक विख्यात हीरे शामिल थे।
अगले पन्ने पर दसवां क्रूर शासक... अहमद शाह अब्दाली : अहमदशाह अब्दाली को अहमदशाह दुर्रानी भी कहते हैं। सन 1747 में नादिर शाह की मौत के बाद वह अफगानिस्तान का शासक बना। अपने पिता की तरह अब्दाली ने भी भारत पर सन् 1748 से 1758 तक कई बार आक्रमण किए और लूटपाट करके अपार धन संपत्ति को इकट्ठा किया।
सन 1757 में जनवरी के माह में दिल्ली पर किया। उसने अब्दाली से बहुत ही शर्मनाक संधि की, जिसमें एक शर्त दिल्ली को लूटने की अनुमति देना भी था। अहमदशाह एक माह तक दिल्ली में ठहरकर लूटमार और कत्लेआम करता रहा। वहां की लूट में उसे करोड़ों की संपदा हाथ लगी।
दिल्ली लूटने के बाद अब्दाली का लालच बढ़ गया। वहां से उसने आगरा पर आक्रमण किया। आगरा के बाद बल्लभगढ़ पर आक्रमण किया। वल्लभगण में उसने जाटों को हराया और बल्लभगढ़ और उसके आस-पास लूटा और व्यापक जन−संहार किया।
उसके बाद अहमदशाह ने अपने पठान सैनिकों को मथुरा लूटने और हिन्दुओं के सभी पवित्र स्थलों को तोड़ने के साथ ही हिन्दुओं का व्यापक पैमाने पर कत्लेआम करने का आदेश दिया। उसने अपने सिपाहियों से कहा प्रत्येक हिन्दू के एक कटे सिर के बदले इनाम दिया जाएगा। मथुरा के इस जनसंहार के विस्तृत ब्योरा आज भी मथुरा के इतिहास में दर्ज है। अब्दाली द्वारा मथुरा और ब्रज की भीषण लूट बहुत ही क्रूर और बर्बर थी।
अगले पन्ने पर अंत में एक क्रूर अंग्रेज... जनरल डायर : जनरल डायर, ब्रिटिश भारतीय सरकार का एक सेनाधिकारी था। वह अप्रैल 1919 ई. में अमृतसर पंजाब में तैनात था। जालियावाला बाग में जो कुछ भी हुआ उसे कभी भुलाया नहीं जा सकता। जनरल डायर ने सभी को गोली मारने के आदेश दे दिए थे।
हालांकि अंग्रेज काल में भारतीयों पर कई तरह के अत्याचार होते रहे। उनका एक ओर तो धर्मान्तरण किया जाता रहा तो दूसरी ओर लाखों भारतीयों को जेल में डालकर यातनाएं देते रहे। लेकिन जनरल डायर ने जो किया वह दुनिया की नजर में आ गया।
जलियावाला बाग में एक सभा चल रही थी। उसी दौरान निहत्थे लोगों पर जनरल डायर ने गोली चलवा दी थी। 1919 में ब्रिटिश सिपाहियों की गोली के सैकड़ों लोग शिकार हो गए थे। इसमें सैकड़ों बेगुनाह मारे गए थे। अंग्रेजों के इस कायरतापूर्ण कार्रवाई ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया था। इस घटना के बाद ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ देश में विरोध बेहद तेज हो गया था।
पंजाब के प्रमुख क्रान्तिकारी सरदार उधम सिंह ने इस हत्या का बदला लिया था।