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क्या आप जानते हैं मां बगलामुखी की पौराणिक कथा

क्या आप जानते हैं मां बगलामुखी की पौराणिक कथा - Maa baglamukhi Katha
काली तारा महाविद्या षोडसी भुवनेश्वरी।
बाग्ला छिन्नमस्ता च विद्या धूमावती तथा।।
मातंगी त्रिपुरा चैव विद्या च कमलात्मिका।
एता दश महाविद्या सिद्धिदा प्रकीर्तिता।।
 
मां बगलामुखी की 3 मई 2017 को जयंती है। इस दिन उनकी पूजन करने वाले साधक को संसार के हर कष्ट से मुक्ति मिलती है। उनकी पौराणिक कथा का श्रवण करने से हजारों पापों का नाश होता है। प्रस्तुत है कथा.... 
 
एक बार सतयुग में महाविनाश उत्पन्न करने वाला ब्रह्मांडीय तूफान उत्पन्न हुआ, जिससे संपूर्ण विश्व नष्ट होने लगा इससे चारों ओर हाहाकार मच गया। कई लोग संकट में पड़ गए और संसार की रक्षा करना असंभव हो गया। यह तूफान सब कुछ नष्ट भ्रष्ट करता हुआ आगे बढ़ता जा रहा था, जिसे देख कर भगवान विष्णु जी चिंतित हो गए। 
इस समस्या का कोई हल न पा कर वह भगवान शिव को स्मरण करने लगे तब भगवान शिव ने कहा शक्ति के अतिरिक्त अन्य कोई इस विनाश को रोक नहीं सकता अत: आप उनकी शरण में जाएं। तब भगवान विष्णु ने हरिद्रा सरोवर के निकट पहुंच कर कठोर तप किया। भगवान विष्णु के तप से देवी शक्ति प्रकट हुईं। उनकी साधना से महात्रिपुरसुंदरी प्रसन्न हुईं। सौराष्ट्र क्षेत्र की हरिद्रा झील में जलक्रीड़ा करती महापीतांबरा स्वरूप देवी के हृदय से दिव्य तेज उत्पन्न हुआ। इस तेज से ब्रह्मांडीय तूफान थम गया। 
उस समय रात्रि को देवी बगलामुखी के रूप में प्रकट हुई, त्रैलोक्य स्तम्भिनी महाविद्या भगवती बगलामुखी ने प्रसन्न हो कर विष्णु जी को इच्छित वर दिया और तब सृष्टि का विनाश रूक सका। देवी बगलामुखी को वीर रति भी कहा जाता है क्योंकि देवी स्वयं ब्रह्मास्त्र रूपिणी हैं। इनके शिव को महारुद्र कहा जाता है। इसी लिए देवी सिद्ध विद्या हैं। तांत्रिक इन्हें स्तंभन की देवी मानते हैं। गृहस्थों के लिए देवी समस्त प्रकार के संशयों का शमन करने वाली हैं। 

 
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