जानिए, कौन से व्रत और उपवास का क्या है लाभ...
व्रत और उपवास में सबसे श्रेष्ठ प्रत्येक माह की एकादशी और श्रावण माह के प्रत्येक दिन को पवित्र और व्रत लायक माना गया है। प्रत्येक हिन्दू को उक्त दिन खुद को पवित्र रखकर इनका पालन करना चाहिए।
हिन्दु्ओं के 10 प्रमुख कर्तव्य है:- 1.संध्योपासन, 2.व्रत, 3.तीर्थ, 4.उत्सव, 5.सेवा, 6.दान, 7.यज्ञ, 8.संस्कार 9. वेद पाठ, धर्म प्रचार। इन 10 में से जानिए व्रत या उपवास के बारे में संपूर्ण जानकारी। जानिए एकादशी व्रतों के बारे में संपूर्ण जानकारीउपवास को हम यहां अनाहार के अर्थ में लेते हैं। उपवास एक प्रकार की शक्ति है जिसके बल से जहां रोगों को दूर कर सेहतमंद रहा जा सकता है, वहीं इसके माध्यम से सिद्धि और समृद्धि भी हासिल की जा सकती है। उपवास के अभ्यास से व्यक्ति कई-कई महीनों तक भूख और प्यास से मुक्त रह सकता है।
आप समझते हैं कि भोजन न करना ही उपवास या व्रत है तो आपकी यह समझ अधूरी है। उपवास या व्रत का अर्थ बहुत व्यापक है। शास्त्रों में मुख्यत: 4 तरह के व्रत और 13 तरह के उपवास बताए गए हैं। बहुत से तपस्वी अपने तप की शुरुआत उपवास से ही करते हैं।
तो आओ जानते हैं अगले पन्ने पर कि व्रत और उपवास क्या है...
संकल्पपूर्वक किए गए कर्म को व्रत कहते हैं। किसी उद्देश्य की प्राप्ति के लिए दिनभर के लिए अन्न या जल या अन्य तरह के भोजन या इन सबका त्याग व्रत कहलाता है। व्रत धर्म का साधन माना गया है। उपवास का अर्थ होता है ऊपर वाले का मन में निवास। उपवास को व्रत का अंग भी माना गया है।व्रतों के प्रकार : व्रत और उपवास के कई प्रकार हैं। वेदों में अलग और पुराणों में अलग। सूर्य और चंद्र तिथि अनुसार व्रतों के कई प्रकार बताए गए हैं। हालांकि सभी तरह के व्रतों को मुख्यत: 3 भागों में बांटा जा सकता है और उपवास को 13...।व्रत के तीन प्रकार- 1.नित्य, 2.नैमित्तिक और 3.काम्य
अगले पन्ने पर तीनों व्रतों का खुलासा...
1.
नित्य व्रत उसे कहते हैं जिसमें ईश्वर भक्ति या आचरणों पर बल दिया जाता है, जैसे सत्य बोलना, पवित्र रहना, इंद्रियों का निग्रह करना, क्रोध न करना, अश्लील भाषण न करना और परनिंदा न करना, प्रतिदिन ईश्वर भक्ति का संकल्प लेना आदि नित्य व्रत हैं। इनका पालन नहीं करते से मानव दोषी माना जाता है।2.
नैमिक्तिक व्रत उसे कहते हैं जिसमें किसी प्रकार के पाप हो जाने या दुखों से छुटकारा पाने का विधान होता है। अन्य किसी प्रकार के निमित्त के उपस्थित होने पर चांद्रायण प्रभृति, तिथि विशेष में जो ऐसे व्रत किए जाते हैं वे नैमिक्तिक व्रत हैं।3.
काम्य व्रत किसी कामना की पूर्ति के लिए किए जाते हैं, जैसे पुत्र प्राप्ति के लिए, धन- समृद्धि के लिए या अन्य सुखों की प्राप्ति के लिए किए जाने वाले व्रत काम्य व्रत हैं।
अगले पन्ने पर जानिए क्या है उपवास और प्रमुख उपवासों के नाम...
उपवास के प्रकार- 1.प्रात: उपवास, 2.अद्धोपवास, 3.एकाहारोपवास, 4.रसोपवास, 5.फलोपवास, 6.दुग्धोपवास, 7.तक्रोपवास, 8.पूर्णोपवास, 9.साप्ताहिक उपवास, 10.लघु उपवास, 11.कठोर उपवास, 12.टूटे उपवास, 13.दीर्घ उपवास।1.
प्रात: उपवास- इस उपवास में सिर्फ सुबह का नाश्ता नहीं करना होता है और पूरे दिन और रात में सिर्फ 2 बार ही भोजन करना होता है।2.
अद्धोपवास- इस उपवास को शाम का उपवास भी कहा जाता है और इस उपवास में सिर्फ पूरे दिन में एक ही बार भोजन करना होता है। इस उपवास के दौरान रात का भोजन नहीं खाया जाता।3.
एकाहारोपवास- एकाहारोपवास में एक समय के भोजन में सिर्फ एक ही चीज खाई जाती है, जैसे सुबह के समय अगर रोटी खाई जाए तो शाम को सिर्फ सब्जी खाई जाती है। दूसरे दिन सुबह को एक तरह का कोई फल और शाम को सिर्फ दूध आदि।4.
रसोपवास- इस उपवास में अन्न तथा फल जैसे ज्यादा भारी पदार्थ नहीं खाए जाते, सिर्फ रसदार फलों के रस अथवा साग-सब्जियों के जूस पर ही रहा जाता है। दूध पीना भी मना होता है, क्योंकि दूध की गणना भी ठोस पदार्थों में की जा सकती है।5.
फलोपवास- कुछ दिनों तक सिर्फ रसदार फलों या भाजी आदि पर रहना फलोपवास कहलाता है। अगर फल बिलकुल ही अनुकूल न पड़ते हो तो सिर्फ पकी हुई साग-सब्जियां खानी चाहिए।
अगले पन्ने पर जारी...
6.
दुग्धोपवास- दुग्धोपवास को 'दुग्ध कल्प' के नाम से भी जाना जाता है। इस उपवास में सिर्फ कुछ दिनों तक दिन में 4-5 बार सिर्फ दूध ही पीना होता है।7.
तक्रोपवास- तक्रोपवास को 'मठाकल्प' भी कहा जाता है। इस उपवास में जो मठा लिया जाए, उसमें घी कम होना चाहिए और वो खट्टा भी कम ही होना चाहिए। इस उपवास को कम से कम 2 महीने तक आराम से किया जा सकता है।8.
पूर्णोपवास- बिलकुल साफ-सुथरे ताजे पानी के अलावा किसी और चीज को बिलकुल न खाना पूर्णोपवास कहलाता है। इस उपवास में उपवास से संबंधित बहुत सारे नियमों का पालन करना होता है।9.
साप्ताहिक उपवास- पूरे सप्ताह में सिर्फ एक पूर्णोपवास नियम से करना साप्ताहिक उपवास कहलाता है।10.
लघु उपवास- 3 से लेकर 7 दिनों तक के पूर्णोपवास को लघु उपवास कहते हैं।
अगले पन्ने पर बचे हुए उपवास और सभी तरह के उपवासों का लाभ...
11.
कठोर उपवास- जिन लोगों को बहुत भयानक रोग होते हैं यह उपवास उनके लिए बहुत लाभकारी होता है। इस उपवास में पूर्णोपवास के सारे नियमों को सख्ती से निभाना पड़ता है।12.
टूटे उपवास- इस उपवास में 2 से 7 दिनों तक पूर्णोपवास करने के बाद कुछ दिनों तक हल्के प्राकृतिक भोजन पर रहकर दोबारा उतने ही दिनों का उपवास करना होता है। उपवास रखने का और हल्का भोजन करने का यह क्रम तब तक चलता रहता है, जब तक कि इस उपवास को करने का मकसद पूरा न हो जाए।13.
दीर्घ उपवास- दीर्घ उपवास में पूर्णोपवास बहुत दिनों तक करना होता है जिसके लिए कोई निश्चित समय पहले से ही निर्धारित नहीं होता। इसमें 21 से लेकर 50-60 दिन भी लग सकते हैं। अक्सर यह उपवास तभी तोड़ा जाता है, जब स्वाभाविक भूख लगने लगती है अथवा शरीर के सारे जहरीले पदार्थ पचने के बाद जब शरीर के जरूरी अवयवों के पचने की नौबत आ जाने की संभावना हो जाती है।*सावधानी : उक्त सभी उपवास का लक्ष्य शरीर के अलग-अलग भागों में इकट्ठे हुए जहरीले पदार्थों को बाहर निकालकर मन और शरीर को मजबूत करने से है। कुछ लोग उपवास किसी सिद्धि को प्राप्त करने के लिए करते हैं तो कुछ लोग कठित तप, साधना और मोक्ष के लिए करते हैं।प्रत्येक उपवास अलग-अलग मकसद के लिए किया जाता है और सभी के लाभ भी अलग-अलग होते हैं। आम जनता को उपवास के महत्व और मकसद को समझकर ही उपवास करना चाहिए। बिना तैयारी किए तथा बिना उपवास के बारे में पूरी जानकारी प्राप्त किए उक्त उपवास नहीं करना चाहिए।*उपवास योग का लाभ : किसी भी प्रकार का गंभीर रोग इस योग द्वारा समाप्त किया जा सकता है। शरीर सहित मन और मस्तिष्क को हमेशा संतुलित और स्वस्थ बनाए रखा जा सकता है। इससे व्यक्ति की आयु बढ़ती है तथा व्यक्ति जीतेंद्रिय कहलाता है।