दैत्यों की उत्पत्ति का रहस्य जानिए  
					
					
                                       
                  
				  				 
								 
				  
                  				  श्रीमद्भागवत के अनुसार दक्ष प्रजापति ने अपनी 60 कन्याओं में से 13 का विवाह ऋषि कश्यप के साथ किया था।				   कश्यप की पत्नियां : इस प्रकार ऋषि कश्यप की अदिति, दिति, दनु, काष्ठा, अरिष्टा, सुरसा, इला, मुनि, क्रोधवशा, ताम्रा, सुरभि, सुरसा, तिमि, विनता, कद्रू, पतांगी और  यामिनी आदि पत्नियाँ बनीं। मान्यता है कि 13 के अलावा उनकी और भी पत्नियाँ  थीं।अदिति के गर्भ से देवता और दिति के गर्भ से दैत्यों की उत्पत्ति हुई, बाकी अन्य पत्नियों से गंधर्व, अप्सरा, राक्षस, पशु-पक्षी, सांप, बिच्छु, जलचर जंतु आदि  जीव-जंतु जगत की उत्पत्ति हुई।दैन्यों को असुर और राक्षस भी कहा गया है। दैत्यों की प्रवृत्तियाँ आसुरी थीं। आगे चलकर उनका देवताओं या सुरों से युद्ध भी हुआ। देवता दैत्यों के सौतेले भाई थे और कश्यप ऋषि की दूसरी पत्नी अदिति के पुत्र थे।				  																	
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									  भागवत पुराण के अनुसार एक बार दक्ष पुत्र दिति ने कामातुर होकर अपने पति मरीचिनंदन कश्यपजी से प्रार्थना की। उस समय कश्यपजी खीर की आहुतियों द्वारा  अग्निजिह्व भगवान यज्ञपति की आराधना कर सूर्यास्त के समय अग्निशाला में  ध्यानस्थ बैठे थे, लेकिन दिति कामदेव के वेग से अत्यंत बैचेन हो बेबस हो रही  थी। यह वक्त संध्यावंदन का था, लेकिन लाख समझाने पर भी वह नहीं मानी। कश्यपजी ने के कहा- तुम एक मुहूर्त ठहरो यह अत्यंत घोर समय चल रहा है  जबकि राक्षसादि प्रेत योनि की आत्माएं सक्रिय हैं, ऐसे में यह वक्त ईश्वर भक्ति का  वक्त है। इस वक्त महादेवजी अपने तीसरे नेत्र से सभी को देखते रहते हैं। यह वक्त उन्हीं का है। यह समय तो संध्यावंदन और भगवत् पूजन आदि के लिए ही है।  इस समय जो पिशाचों जैसा आचरण करते हैं, वे नरकगामी होते हैं।				  				  आगे पढ़ें, दिति ने किया समागम तब क्या 'अमंगल' हुआ...
				  																													
								 
 
 
  
														
																		 							
																		
									  पति के इस प्रकार समझाने पर भी दिति नहीं मानी और निर्लज्ज होकर उसने कश्यपजी का वस्त्र पकड़ लिया। तब विवश होकर उन्होंने इस 'शिव समय' में देवों को नमस्कार किया और एकांत में दिति के साथ समागम किया।समागम बाद कश्यपजी ने निर्मल जल से स्नान किया और फिर से ब्रह्म का ध्यान  करने लगे लेकिन दिति को बाद में इसका पश्चाताप हुआ और लज्जा आई। तब वह  ब्रह्मर्षि के समक्ष सिर नीचा करके कहने लगी- 'भूतों के स्वामी भगवान रुद्र का  मैंने अपराध किया है, किंतु वह भूतश्रेष्ठ मेरे इस गर्भ को नष्ट न करें। मैं उनसे  क्षमा मांगती हूं।'बाद में कश्यपजी जब ध्यान से उठे तो उन्होंने देखा की दिति भय से थर-थर  कांपते हुए प्रार्थना कर रही है। कश्यपजी बोले, 'तुमने देवताओं की अवहेलना करते  हुए अमंगल समय में काम की कामना की इसलिए तुम्हारी कोख से दो बड़े ही  अमंगल और अधम पुत्र जन्म लेंगे और वे धरती पर बार-बार अपने अत्याचारों से  लोगों को रुलाएंगे। तब उनका वध करने के लिए स्वयं जगदीश्वर को अवतार लेना  होगा। चार पौत्रों में से एक भगवान हरि का प्रसिद्ध भक्त होगा, तीन दैत्य होंगे।'दिति को आशंका थी कि उसके पुत्र देवताओं के कष्ट का कारण बनेंगे अत: उसने  100 वर्ष तक अपने शिशुओं को उदर में ही रखा। इससे सब दिशाओं में अंधकार  फैल गया।				  																	
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									  इस अंधकार को देख सभी देवता ब्रह्मा के पास पहुंचे और कहने लगे इसका  निराकरण कीजिए। ब्रह्मा ने कहा कि पूर्वकाल में सनकादि मुनियों को बैकुंठ धाम  में जाने से विष्णु के पार्षदों ने अज्ञानतावश रोक दिया था। वे लोग विष्णु के दर्शन  करना चाहते थे। उन्होंने क्रुद्ध होकर उन दोनों पार्षदों को श्राप दे दिया कि वे  अपना पद छोड़कर पापमय योनि में जन्म लेगें। ये दोनों पार्षद थे- जय और  विजया। ये दोनों बैकुंठ से पतित होकर दिति के गर्भ में बड़े हो रहे हैं। सृष्टि में भयानक उत्पात और अंधकार के बाद दिति के गर्भ से सर्वप्रथम दो जुड़वां  पुत्र जन्मे हिरण्यकशिपु तथा हिरण्याक्ष। जन्म लेते ही दोनों पर्वत के समान दृढ़  तथा विशाल हो गए। ये दोनों ही आदि दैत्य कहलाए।दिति के पुत्र : कश्यप ऋषि ने दिति के गर्भ से हिरण्यकश्यप और हिरण्याक्ष  नामक दो पुत्र एवं सिंहिका नामक एक पुत्री को जन्म दिया। श्रीमद्भागवत् के  अनुसार इन तीन संतानों के अलावा दिति के गर्भ से कश्यप के 49 अन्य पुत्रों का  जन्म भी हुआ, जो कि मरुन्दण कहलाए। कश्यप के ये पुत्र नि:संतान रहे जबकि  हिरण्यकश्यप के चार पुत्र थे- अनुहल्लाद, हल्लाद, भक्त प्रह्लाद और संहल्लाद।-
संदर्भ : भागवत पुराण/ विष्णु पुराण