शिव का सबसे कल्याणकारी रूप है अघोर
वडोदरा। अघोरी कोई पंथ नहीं अपितु एक पथ है, जो सहज चलते हुए ही पार किया जा सकता है। श्मशान का महत्व मात्र एक अघोरी के लिए मृत्यु के भय को दूर भर करने के लिए होता है और सभी धर्मों में अघोर पथ पर चलने वाले लोग उपलब्ध है। कई ईसाई, यहूदी और सूफी महात्माओं ने भी इस पथ पर चलकर अपने गंतव्य को प्राप्त किया।
सोमवार को सिटी क्लब द्वारा आयोजित पुस्तक व्याख्यान कार्यक्रम में हिस्सा लेते हुए पुस्तक 'अघोरी' के लेखक मनोज ठक्कर एवं जयेश राजपाल ने कहा कि हमारी सबसे बड़ी पूंजी हमारे शास्त्र हैं। चूंकि शास्त्र उपेक्षित हो रहे हैं और युवा वर्ग का इस ओर ध्यान नहीं है। इसलिए कहीं ऐसा न हो कि हमारी शास्त्र रूपी पूंजी हमसे खो जाए।
उन्होंने कहा कि अघोर के बारे में जितनी भ्रांतियां हैं, शायद ही किसी और के बारे में हों। श्मशान, शव, चिता इत्यादि एक अघोरी की साधना में एक प्रतिशत हिस्सा भी नहीं रखते। अघोरी कण-कण में शिव नहीं अपितु हर कण को शिव देखता है। इसीलिए वह समाज के लिए घृणित ऐसे स्थानों पर साधना करता है ताकि उसे घृणा से भी घृणा ना हो।
उन्होंने कहा कि एक सच्चा अघोरी कभी तंत्र-मंत्र, जादू-टोने का उपयोग नहीं करता। यहां तक कि गृहस्थी में रहकर भी इस मार्ग को अपनाया जा सकता है क्योंकि शिव का सबसे शांत एवं कल्याणकारी रूप ही अघोर है।