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Written By विशेष प्रतिनिधि
Last Updated :भोपाल , मंगलवार, 4 सितम्बर 2018 (20:48 IST)

एससी-एसटी एक्ट : मध्यप्रदेश की 148 सीटों पर खतरे में भाजपा उम्मीदवार

एससी-एसटी एक्ट : मध्यप्रदेश की 148 सीटों पर खतरे में भाजपा उम्मीदवार - madhya pradesh election
भोपाल। एससी-एसटी एक्ट में केंद्र सरकार के संशोधन के खिलाफ सामान्य वर्ग के विरोध ने अब एक आंदोलन का रूप ले लिया है। राज्य के कई जिलों में मंत्रियों को अब विरोध का सामना करना पड़ा है। सामान्य वर्ग के विरोध का अधिकतर शिकार बीजेपी के मंत्री, सांसद और विधायक को होना पड़ा है।


विरोध का सामना करने वाले बीजेपी के दिग्गज नेताओं में केंद्रीय मंत्री नरेंद्रसिंह तोमर, थावरचंद गहलोत, राष्ट्रीय उपाध्यक्ष प्रभात झा, सांसद रीति पाठक के नाम शामिल है। सीधी में जन आशीर्वाद यात्रा के दौरान मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान को भी इस विरोध का सामना करना पड़ा है। जिस तरह राज्य में भाजपा के विरोध में चुनाव से ठीक पहले सामान्य वर्ग उतर आया है। उसको देखते हुए भाजपा की चुनावी डगर आसान नहीं लग रही है।

मध्यप्रदेश में इस बार 200 पारा का नारा देने वाली बीजेपी के सामने अब सबसे बड़ी चुनौती अपने पिछले प्रदर्शन को दोहराना है। अगर राज्य में सीटों के चुनावी गणित की बात करें तो विधानसभा की कुल 230 सीटों में सामान्य वर्ग की 148 सीटें हैं वहीं आरक्षित वर्ग की कुल 82 सीटें हैं।

अगर 2013 के विधानसभा चुनाव नतीजों की बात करें तो भाजपा ने सामान्य वर्ग की 148 सीटों में से 102 सीटों पर कब्जा जमाया था, जो राज्य में सामान्य बहुमत के आंकड़े से मात्र 14 सीटें दूर था। आमतौर पर अगड़ी जातियों या कहें सामान्य वर्ग के मतदाताओं को भाजपा का  वोट बैंक माना जाता है, लेकिन चुनाव से ठीक पहले राज्य में एससी, एसएसटी एक्ट के विरोध में सामान्य वर्ग का सड़क पर उतरकर विरोध करने के बाद चुनावी विश्लेषक ये मान रहे हैं कि विधानसभा चुनाव में ये बीजेपी के जनाधार वाला ये वोट बैंक खिसक सकता है, जिसका सीधा असर राज्य की 148 सीटों पर पड़ेगा।

माना जा रहा है कि आगामी विधानसभा चुनाव में बीजेपी उम्मीदवारों को विरोध का सामना करना पड़ सकता है। वेबदुनिया से बातचीत में पहले ही सामान्य वर्ग के कई संगठन चुनाव में बीजेपी को हराने का एलान कर चुके हैं। यानी सामान्य वर्ग चुनाव में इस बार तीसरे विकल्प की तलाश में रहेगा, जो राज्य में सामान्य वर्ग के संगठन के रूप में उभरे सपाक्स जैसे संगठन के राजनीतिक दल के तौर पर चुनाव लड़ने की घोषणा के बाद पूरी हो सकती है।

वर्तमान घटनाक्रम को देखते हुए लगता है कि राज्य में बीजेपी के सामने हालात कुछ उसी तरह होते दिख रहे हैं जैसे 2003 के विधानसभा चुनाव में दिग्विजय सिंह के सामने थे। 2003 के चुनाव से पहले दिग्विजय ने दलित एजेंडा का कार्ड खेला था जिसके विरोध में सामान्य वर्ग ने चुनाव में कांग्रेस का विरोध किया और दलितों ने भी कांग्रेस का साथ नहीं दिया।

शायद शिवराज सरकार ने मौके की नजाकत को भांप लिया है। इसके चलते भाजपा ओबीसी वोट बैंक को साधने के लिए खासा फोकस करने जा रही है। ओबीसी वर्ग को साधने की जिम्मेदारी पार्टी ने अपने बड़े नेता प्रहलाद पटेल को सौंपी है, जो सपाक्स को भी साधने का काम करेंगे।