शुक्रवार, 26 अप्रैल 2024
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Written By अनिरुद्ध जोशी 'शतायु'

प्रणाम मुद्रा का महत्व

pranam mudra of yoga | प्रणाम मुद्रा का महत्व
सूर्य उदय काल में नमस्कार होता है और अस्त काल में नमस्ते। दोनों ही शब्द का उपयोग सूर्य और ईश्वर के लिए किए जाता है किंतु प्रणाम शब्द का उपयोग सभी के लिए किया जा सकता है।
 
प्रणाम विनय का सूचक है। समूचे भारतवर्ष में इसका प्रचलन है। प्रणाम मुद्रा को करने के अनेकों फायदे हैं। योगासन या अन्य कार्य की शुरुआत के पूर्व इसे करना चाहिए। इसको करने से मन में अच्छा भाव उत्पन्न होता है और कार्य में सफलता मिलती है।
 
विधि : दोनों हाथों को जोड़कर जो मुद्रा बनाते हैं, उसे प्रणाम मुद्रा कहते हैं। सर्व प्रथम आँखें बंद करते हुए दोनों होथों को जोड़कर अर्थात हथेलियों को हथेलियों से मिलाते हुए छाती के मध्य में सटाएँ तथा दोनों हथेलियों को एक-दूसरे से दबाते हुए कोहनियाँ को दाएँ-बाएँ सीधी तान दें। जब ये दोनों हाथ जुड़े हुए हम धीरे-धीरे मस्तिष्क तक पहुँचाते हैं तो प्रणाम मुद्रा बनती है।
 
लाभ : हमारे हाथ के तंतु मष्तिष्क के तंतुओं से जुड़े हैं। हथेलियों को दबाने से या जोड़े रखने से हृदयचक्र और आज्ञाचक्र में सक्रियता आती है जिससे जागरण बढ़ता है। उक्त जागरण से मन शांत एवं चित्त में प्रसन्नता उत्पन्न होती है। हृदय में पुष्टता आती है तथा निर्भिकता बढ़ती है।
 
इस मुद्रा का प्रभाव हमारे समूचे भाव और विचार के मनोवेगों पर पड़ता है, जिससे सकारात्मकता बढ़ती है। यह सामाजिक और धार्मिक दृष्टि से भी लाभदायक है। अतः आइए, गुड मॉर्निंग, हेलो, हाय, टाटा, बाय-बाय को छोड़कर प्रणाम मुद्रा अपनाएँ और चित्त को प्रसन्न रखें।