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Last Updated : रविवार, 3 मई 2020 (14:55 IST)

महाभारत युद्ध जीत कर भी हार गए थे पांडव और श्रीकृष्ण?

Mahabharata war | महाभारत युद्ध जीत कर भी हार गए थे पांडव और श्रीकृष्ण?
इस युद्ध में कौरवों ने 11 अक्षौहिणी तथा पांडवों ने 7 अक्षौहिणी सेना एकत्रित कर लड़ाई लड़ी थी। कुल अनुमानित 45 लाख की सेना के बीच महाभारत का युद्ध 18 दिनों तक चला और इस युद्ध में कुल 18 योद्धा ही जीवित बचे थे। महाभारत के युद्ध के पश्चात कौरवों की तरफ से 3 और पांडवों की तरफ से 15 यानी कुल 18 योद्धा ही जीवित बचे थे। जिनके नाम हैं- कौरव के कृतवर्मा, कृपाचार्य और अश्वत्थामा, जबकि पांडवों की ओर से युयुत्सु, युधिष्ठिर, अर्जुन, भीम, नकुल, सहदेव, कृष्ण, सात्यकि आदि। हालांकि इतिहास के कुछ पन्नों के अनुसार महाभारत के युद्ध में 39 लाख 40 हजार योद्धा मारे गए।
 
 
पांडवों का कुछ नहीं बचा : मात्र पांच गांव के खातिर लड़े गए इस युद्ध से आखिर पांडवों को क्या हासिल हुआ? पांडव वंश में अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु की पत्नी के उत्तरा के गर्भ में पल रहा उनका एक मात्र पुत्र बचा था जिसे श्रीकृष्ण ने बचाया था। इसका नाम परीक्षित था। पांडव युद्ध जीतने के बाद भी हार ही गए थे क्योंकि फिर उनके पास कुछ भी नहीं बचा था। प्रत्येक पांडव के 10-10 पुत्र थे लेकिन सभी मारे गए।

 
श्रीकृष्ण का कुल नष्ट हो गया : श्रीकृष्ण की नारायणी सेना और कुछ यादव महाभारत के युद्ध में और बाद में गांधारी के शाप के चलते आपसी मौसुल युद्ध में श्रीकृष्ण के कुल का नाश हो गया था। मौसुल युद्ध में श्रीकृष्‍ण के सभी पुत्र और पौत्र मारे गए थे। कुल में जो महिलाए और बच्चे बचे थे, उन्हें अर्जुन अपने साथ लेकर मथुरा जा रहे थे तो रास्ते में वे बचे हुए लोग भी लुटेरों के द्वारा मारे गए। श्रीकृष्ण के कुल का एकमात्र व्यक्ति जिंदा बचा था जिसका नाम धा वृहद्रथ।
 
 
अन्य लोग : गांधारी, कुंती, धृतराष्‍ट्र, विदुर, संजय आदि सभी जंगल चले गए थे। जंगल में धृतराष्‍ट्र और गांधारी एक आग में जलने से मर गए। ऐसी लाखों महिलाएं विधवा हो गई थी जिनके पतियों ने युद्ध में भाग लिया था। उनमें कर्ण, दुर्योधन सहित सभी कौरवों की पत्नियां भी थीं।

 
अंत: में युद्ध के बाद युधिष्ठिर संपूर्ण भारत वर्ष के राजा तो बन गए लेकिन सब कुछ खोकर। किसी भी पांडव में राजपाट करने की इच्छा नहीं रही थी। सभी को वैराग्य प्राप्त हो गया था। यह देखते हुए युधिष्ठिर ने राजा का सिंहासन अर्जुन के पौत्र परीक्षित को सौंपा और खुद चल पड़े हिमालय की ओर, जीवन की अंतिम यात्रा पर। उनके साथ चले उनके चारों भाई और द्रौपदी आदि। उनसे पहले ही धृतराष्ट्र और गांधारी हिमालय चले गई थे। वहीं सभी का अंत हो गया था।
 
 
महाभारत युद्ध के बाद इस तरह तबाह हुआ था भारत : 1947 के पहले भारत की जनसंख्या लगभग 40 करोड़ के आसपास थी। 1650 में ईस्वी में संपूर्ण धरती की जनसंख्या लगभग 50 करोड़ थी। इस प्रकार यदि हम और पीछे जाएंगे तो धरती की जनसंख्या इससे भी आधी थी। तब क्या हम यह अनुमान लगा सकते हैं कि 3112 ईसा पूर्व धरती की जनसंख्या कितनी रही होगी? अनुमान ज्ञान नहीं होता, यह वास्तविकता के करीब हो सकता है और नहीं भी। लेकिन यदि एक करोड़ लोगों ने युद्ध में भाग लिया होगा नो निश्‍चित ही कम से कम भारत की जनसंख्‍या 5 से 6 करोड़ के बीच तो रही होगी, क्योंकि तब आज जीतने शहर या गांव नहीं थे।
 
 
45 लाख की सेना के बीच महाभारत का युद्ध 18 दिनों तक चला और इस युद्ध में कुल 18 योद्धा ही जीवित बचे थे। महाभारत के युद्ध के पश्चात कौरवों की तरफ से 3 और पांडवों की तरफ से 15 यानी कुल 18 योद्धा ही जीवित बचे थे। जिनके नाम हैं- कौरव के कृतवर्मा, कृपाचार्य और अश्वत्थामा, जबकि पांडवों की ओर से युयुत्सु, युधिष्ठिर, अर्जुन, भीम, नकुल, सहदेव, कृष्ण, सात्यकि आदि। हालांकि इतिहास के कुछ पन्नों के अनुसार महाभारत के युद्ध में 39 लाख 40 हजार योद्धा मारे गए। अब आप सोचिए कि 6 करोड़ की आबादी में आधी तो महिलाएं होगी याने कि करीब ढाई करोड़ महिलाएं। अब बचे ढाई करोड़ पुरुष जिसमें से लाखों तो बच्चे होंगे। मतलब यह युद्ध बुढ़े और जवानों ने यह लड़ा। उनमें से कुछ जवान तो उनके पुत्र ही थे जिनको कोई पुत्र नहीं हुआ था।
 
 
कौरव पक्ष : कौरवों की ओर से दुर्योधन व उसके 99 भाइयों सहित भीष्म, द्रोणाचार्य, कर्ण, मद्रनरेश शल्य, भूरिश्र्वा, अलम्बुष, कलिंगराज, श्रुतायुध, शकुनि, भगदत्त, जयद्रथ, विन्द-अनुविन्द, काम्बोजराज सुदक्षिण और बृहद्वल आदि और उनके पुत्र पौत्र युद्ध में शामिल थे जो सभी मारे गए। कौरवों के कुल का नाश हो गया। कौरव वंश का एक मात्र युयुत्सु ही बचा था।

 
पाडव पक्ष : पांडवों की ओर से अभिमन्यु, घटोत्कच, विराट, द्रुपद, धृष्टद्युम्न, शिखण्डी, पांड्यराज, कुन्तिभोज, उत्तमौजा, शैब्य और अनूपराज नील आदि सहित पांडवों के लगभग पचास पुत्र भी युद्ध मारे गए थे। पांडव वंश में अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु की पत्नी के उत्तरा के गर्भ में पल रहा उनका एक मात्र पुत्र बचा था जिसे श्रीकृष्ण ने बचाया था। इसका नाम परीक्षित था। पांडव युद्ध जीतने के बाद भी हार ही गए थे क्योंकि फिर उनके पास कुछ भी नहीं बचा था। प्रत्येक पांडव के 10-10 पुत्र थे लेकिन सभी मारे गए।
 
 
यादव पक्ष : श्रीकृष्ण की नारायणी सेना और कुछ यादव युद्ध में और बाद में गांधारी के शाप के चलते आपसी युद्ध में श्रीकृष्ण के कुल का नाश हो गए। कौरवों की मां गांधारी ने श्रीकृष्ण को श्राप दे डाला कि जैसे मेरे बच्चों की इतनी दर्दनाक मौत हुई है, उसी तरह तुम्हारा यादव-परिवार भी आपसी युद्ध में तड़प-तड़प मारा जाएगा।
 
 
अन्य राजाओं का पक्ष : इस तरह हमने देखा की इस युद्ध में कई पितामह, पिता और पुत्रों ने एक साथ भाग लिया था जिसके चलते तीन पढ़ी एक साथ खत्म हो गई थी। कौरवों और पांडवों के इस महामरण युद्ध में सिर्फ उनका ही वंश नष्ट नहीं हुआ भारतवर्ष के कई राज्यों के राजाओं का वंश और उनकी सेनाओं का भी नाश हो गया था। इस युद्ध में देश-विदेश के लाखों राजाओं, महाराजाओं और सैनिकों ने भाग लिया था।
 
 
बिखर गया था भारत : उपर हम लिख आए हैं कि किस तरह तीन पीढ़ी समाप्त हो गई थी। ऐसा में लाखों महिलाएं भरी जवान में विधवा हो गई थी। लाखों महिलाओं के समक्ष पुरुषों का संकट खड़ा हो गए था। अर्थात उनके विवाह के लिए पुरुषों का होना भी तो जरूरी है। यह सिर्फ अनुमान ही लगाया जा सकता है। अनुमान ज्ञान नहीं होता। लेकिन यह तय है कि इससे समाज में एक धर्मसंकट की स्थिति खड़ी हो गई थी। समाज का नेतृत्व करने वाला कोई नहीं था। राज्यों में बिखराव हो गया था। इतने लोग नहीं थे कि वे राज्य की व्यवस्था को संचालित करते।

 
कहते हैं कि इस युद्ध के परिणामस्वरूप भारत से वैदिक धर्म, समाज, संस्कृति और सभ्यता का पतन हो गया। इस युद्ध के बाद से ही अखंड भारत बहुधर्मी और बहुसंस्कृति का देश बनकर खंड-खंड होता चला गया।

 
*युद्ध के बाद युधिष्ठिर संपूर्ण भारत वर्ष के राजा तो बन गए लेकिन सब कुछ खोकर। किसी में भी पांडव में राजपाट करने की इच्छा नहीं रही थी। सभी को वैराग्य प्राप्त हो गया था। देखते हुए युधिष्ठिर ने राजा का सिंहासन परीक्षित को सौंपा और खुद चल पड़े हिमालय की ओर, जीवन की अंतिम यात्रा पर। उनके साथ चले उनके चारों भाई और द्रौपदी आदि। उनसे पहले ही धृतराष्ट्र और गांधारी हिमालय चले गई थे। वहीं सभी का अंत हो गए।