कोई भी व्यक्ति चाहे वह कितना ही ज्ञानी या मूर्ख हो, जिंदा हो या मृत हो वह अपनी जिंदगी में सिर्फ 3 ही अवस्थाओं को महसूस करता या उनमें ही जीता और मरता रहता है। वे अवस्थाएं हैं- जाग्रत, स्वप्न और सुषुप्ति। महान विचार, महान कार्य और महान उपलब्धियां तब तक उसके लिए निरर्थक हैं, जब तक कि वह उक्त तीनों अवस्थाओं के चक्र को तोड़कर बाहर नहीं निकल जाता। इसी चक्र को तोड़ना हिन्दू साधु संगत का ध्येय होता है।
जन्म मरण का चक्र : वेद के अनुसार मृत्युकाल में 'यम' नामक वायु में कुछ काल तक आत्मा स्थिर रहने के बाद पुन: गर्भधारण करती है। जब आत्मा गर्भ में प्रवेश करती है, तब वह गहरी सुषुप्ति अवस्था में होती है। गर्भ में आने से पूर्व भी वह इसी अवस्था में ही रहती है। जिस तरह सुषुप्ति से स्वप्न और स्वप्न से आत्मा जाग्रति में जाती है, उसी तरह मृत्युकाल में वह जाग्रति से स्वप्न और स्वप्न से सुषुप्ति में चली जाती हैं फिर सुषुप्ति से गहन सुषुप्ति में। यह चक्र चलता रहता है। जैसे कोई व्यक्ति कोमा में चला जाता है तो कोई निश्चित नहीं कि वह कब जागेगा, उसी तरह मरने के बाद कोई निश्चित नहीं कि वह कब जन्म लेगा।
हिन्दू धर्मानुसार आत्मा के 3 स्वरूप माने गए हैं- जीवात्मा, प्रेतात्मा और सूक्ष्मात्मा। यह आत्मा पंचकोष में रहकर जन्म और मरण के चक्र में घूमती रहती है। जो भौतिक शरीर में वास करती है उसे जीवात्मा कहते हैं। जब इस जीवात्मा का वासना और कामनामय शरीर में निवास होता है, तब उसे प्रेतात्मा कहते हैं। यह आत्मा जब सूक्ष्मतम शरीर में प्रवेश करती है, उस उसे सूक्ष्मात्मा कहते हैं।
जिसका कोई वर्तमान न हो, केवल अतीत ही हो वही भूत कहलाता है। अतीत में अटकी आत्मा भूत बन जाती है। जीवन न अतीत है और न भविष्य, वह सदा वर्तमान है। जो वर्तमान में रहता है वह मुक्ति की ओर कदम बढ़ाता है।
84 लाख योनियां : पशु योनि, पक्षी योनि, मनुष्य योनि में जीवन-यापन करने वाली आत्माएं मरने के बाद अदृश्य भूत-प्रेत योनि में चली जाती हैं। आत्मा के प्रत्येक जन्म द्वारा प्राप्त जीव रूप को योनि कहते हैं। ऐसी लगभग 84 लाख योनियां हैं जिसमें कीट-पतंगे, पशु-पक्षी, वृक्ष और मानव आदि सभी शामिल हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार 89 लाख से अधिक जीव-जंतुओं की प्रजातियां इस धरती पर निवास करती हैं।
अगले पन्ने पर जानिए कि जब कोई व्यक्ति मर जाता है अर्थात भौतिक शरीर छोड़ देता है तो उनमें से अधिकतर प्रेतात्मा बनकर भटकते हैं। कुछ का नया जन्म जल्द ही हो जाता है और कुछ सैकड़ों वर्षों तक भटकते रहते हैं। उनमें से भी कुछ अनिश्चितकाल तक कोमा जैसी अवस्था में ही रहते हैं। यह सब तय होता है उनके कर्म और विचार की गति के अनुसार। खैर...! आओ हम आपको बताते हैं कि हिन्दू शास्त्रों के अनुसार भूतों के कितने प्रकार हैं, आपको कौन सा भूत सता रहा है और इनसे कैसे बचा जा सकता है...?
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पुरुषों का भूत : हिन्दू धर्म में गति और कर्म अनुसार मरने वाले लोगों का विभाजन किया गया है- भूत, प्रेत, पिशाच, कूष्मांडा, ब्रह्मराक्षस, वेताल और क्षेत्रपाल। सभी को यम के अधीन रहना होता है। आर्यमा नामक देवता को पितरों का अधिपति कहा गया है, जो चंद्रमंडल में रहते हैं।
उक्त सभी के उपभाग भी होते हैं। आयुर्वेद के अनुसार 18 प्रकार के प्रेत होते हैं। भूत सबसे शुरुआती पद है या कहें कि जब कोई आम व्यक्ति मरता है, तो सर्वप्रथम भूत ही बनता है।
प्रेत योनि में जाने वाले लोग अदृश्य और बलवान हो जाते हैं। सभी मरने वाले इसी योनि में नहीं जाते और सभी मरने वाले अदृश्य तो होते हैं, लेकिन बलवान नहीं होते। यह आत्मा के कर्म और गति पर निर्भर करता है। बहुत से भूत या प्रेत योनि में न जाकर पुन: गर्भधारण कर मानव बन जाते हैं।
पितृ पक्ष में हिन्दू अपने पितरों का तर्पण करते हैं। इससे सिद्ध होता है कि पितरों का अस्तित्व आत्मा अथवा भूत-प्रेत के रूप में होता है। गरूड़ पुराण में भूत-प्रेतों के विषय में विस्तृत वर्णन मिलता है। श्रीमद्भागवत पुराण में भी धुंधकारी के प्रेत बन जाने का वर्णन आता है।
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स्त्री का भूत:- हालांकि स्त्री और पुरुष एक शरीरिक विभाजन है तथा आत्मिक तौर पर कोई स्त्री और पुरुष नहीं होता। लेकिन जिसके चित्त की दशा जैसी होती है उसे वैसी योनि प्राप्त होती है। यदि कोई आत्मा स्त्री बनकर रही है तो वह खुद को अनंतकाल तक स्त्री ही महसूस करते हुए अन्य योनियां धारण करेगी। खैर...!
जब कोई स्त्री मरती है तो उसे अलग नामों से जाना जाता है। माना गया है कि प्रसूता स्त्री या नवयुवती मरती है तो चुड़ैल बन जाती है और जब कोई कुंआरी कन्या मरती है तो उसे देवी कहते हैं।
जो स्त्री बुरे कर्मों वाली है उसे डायन या डाकिनी कहते हैं। इन सभी की उत्पत्ति अपने पापों, व्यभिचार, अकाल मृत्यु या श्राद्ध न होने से होती है।
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अतृप्त आत्माएं बनती हैं भूत : जो व्यक्ति भूखा, प्यासा, संभोग सुख से विरक्त, राग, क्रोध, द्वेष, लोभ, वासना आदि इच्छाएं और भावनाएं लेकर मरा है, अवश्य ही वह भूत बनकर भटकता है। और जो व्यक्ति दुर्घटना, हत्या, आत्महत्या आदि से मरा है वह भी भूत बनकर भटकता है। इसके अलावा जिस व्यक्ति ने अपने जीवन में मन, वचन और कर्म से खूब हिंसा की है, वह भी भूत बनकर भटकता है। अंत में यह भी कि जो आत्मा ज्यादा स्मृतिवान या ध्यानी है, उसे ही अपने मरने का ज्ञान होता है और वही भूत बनती है।
इसके अलावा जिस व्यक्ति ने अपने जीवन में मन, वचन और कर्म से खूब हिंसा की है वह भी भूत बनकर भटकता है। अंत में यह भी कि जो आत्मा ज्यादा स्मृतिवान या ध्यानी है उसे ही अपने मरने का ज्ञान होता है और वही भूत बनती है।
गरूड़ पुराण के अनुसार ऐसे व्यक्तियों की आत्मा को तृप्त करने के लिए श्राद्ध और तर्पण किया जाता है। जो लोग अपने स्वजनों और पितरों का श्राद्ध और तर्पण नहीं करते, वे उन अतृप्त आत्माओं द्वारा परेशान होते हैं।
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भूत की भावना : भूतों को खाने की इच्छा अधिक रहती है। इन्हें प्यास भी अधिक लगती है, लेकिन तृप्ति नहीं मिल पाती है। ये बहुत दुखी और चिड़चिड़े होते हैं। वे हर समय इस बात की खोज करते रहते हैं कि कोई मुक्ति देने वाला मिले। ये कभी घर में, तो कभी जंगल में भटकते रहते हैं।
भूत की स्थिति : ज्यादा शोर, उजाला और मंत्र उच्चारण से ये दूर रहते हैं इसीलिए इन्हें कृष्ण पक्ष ज्यादा पसंद है और तेरस, चौदस तथा अमावस्या को ये मजबूत स्थिति में रहकर सक्रिय रहते हैं। भूत-प्रेत प्रायः उन स्थानों में दृष्टिगत होते हैं जिन स्थानों से मृतक का अपने जीवनकाल में संबंध रहा है या जो एकांत में स्थित हैं। बहुत दिनों से खाली पड़े घर या बंगले में भी भूतों का वास हो जाता है।
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भूत की ताकत : भूत अदृश्य होते हैं। भूत-प्रेतों के शरीर धुंधलके तथा वायु से बने होते हैं अर्थात वे शरीरविहीन होते हैं। इसे सूक्ष्म शरीर कहते हैं। आयुर्वेद के अनुसार यह 17 या 18 तत्वों से बना होता है। कुछ भूत अपने इस शरीर की ताकत को समझकर उसका इस्तेमाल करना जानते हैं तो कुछ नहीं।
कुछ भूतों में स्पर्श करने की ताकत होती है, तो कुछ में नहीं। जो भूत स्पर्श करने की ताकत रखता है वह बड़े से बड़े पेड़ों को भी उखाड़कर फेंक सकता है। ऐसे भूत यदि बुरे हैं, तो खतरनाक होते हैं। ये किसी भी देहधारी (व्यक्ति) को अपने होने का अहसास करा देते हैं।
इस तरह के भूतों की मानसिक शक्ति इतनी बलशाली होती है कि ये किसी भी व्यक्ति का दिमाग पलटकर उससे अच्छा या बुरा कार्य करा सकते हैं। यह भी कि ये किसी भी व्यक्ति के शरीर का इस्तेमाल करना भी जानते हैं।
ठोसपन न होने के कारण ही भूत को यदि गोली, तलवार, लाठी आदि मारी जाए तो उस पर उनका कोई प्रभाव नहीं होता। भूत में सुख-दुःख अनुभव करने की क्षमता अवश्य होती है, क्योंकि उनके बाह्यकरण में वायु तथा आकाश और अंतःकरण में मन, बुद्धि और चित्त संज्ञाशून्य होती है इसलिए वे केवल सुख-दुःख का ही अनुभव कर सकते हैं।
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अच्छी और बुरी आत्मा : वासना के अच्छे और बुरे भाव के कारण मृतात्माओं को भी अच्छा और बुरा माना गया है। अच्छे और बुरे स्वभाव की आत्माएं ऐसे लोगों को तलाश करती हैं, जो उनकी इच्छाओं या उद्देश्य की पूर्ति कर सकता है। बुरी आत्माएं उन लोगों को तलाश करती हैं, जो कुकर्मी, अधर्मी, वासनामय जीवन जीने वाले लोग हैं। फिर वे आत्माएं उन लोगों के गुण-कर्म, स्वभाव के अनुसार अपनी इच्छाओं की पूर्ति करती हैं।
जिस मानसिकता, प्रवृत्ति, कुकर्म, सत्कर्मों आदि के लोग होते हैं उसी के अनुरूप आत्मा उनमें प्रवेश करती है। अधिकांशतः लोगों को इसका पता नहीं चल पाता। अच्छी आत्माएं अच्छे कर्म करने वालों के माध्यम से तृप्त होकर उसे भी तृप्त करती हैं और बुरी आत्माएं बुरे कर्म वालों के माध्यम से तृप्त होकर उसे बुराई के लिए और प्रेरित करती हैं।
कौन बनता है भूत का शिकार : धर्म के नियम के अनुसार जो लोग तिथि और पवित्रता को नहीं मानते हैं, जो ईश्वर, देवता और गुरु का अपमान करते हैं और जो पाप कर्म में ही सदा रत रहते हैं, ऐसे लोग आसानी से भूतों के चंगुल में आ सकते हैं। इनमें से कुछ लोगों को पता ही नहीं चल पाता है कि हम पर शासन करने वाला कोई भूत है। जिन लोगों की मानसिक शक्ति बहुत कमजोर होती है, उन पर ये भूत सीधे-सीधे शासन करते हैं।
जो लोग रात्रि के कर्म और अनुष्ठान करते हैं और जो निशाचरी हैं, वे आसानी से भूतों के शिकार बन जाते हैं। हिन्दू धर्म के अनुसार किसी भी प्रकार का धार्मिक और मांगलिक कार्य रात्रि में नहीं किया जाता। रात्रि के कर्म करने वाले भूत, पिशाच, राक्षस और प्रेत योनि के होते हैं।
अगले पन्ने पर पढ़ें- कैसे करें भूतों से अपनी रक्षा..
ऐसे करें भूतों से अपनी रक्षा : हिन्दू धर्म में भूतों से बचने के अनेक उपाय बताए गए हैं। पहला धार्मिक उपाय यह कि गले में ॐ या रुद्राक्ष का लॉकेट पहनें, सदा हनुमानजी का स्मरण करें। घर में रात्रि को भोजन के पश्चात सोने से पूर्व चांदी की कटोरी में देवस्थान पर कपूर और लौंग जला दें। इससे आकस्मिक, दैहिक, दैविक एवं भौतिक संकटों से मुक्त मिलती है। प्रतिदिन हनुमान चालीसा का पाठ करते रहें।
चरक संहिता में प्रेतबाधा से पीड़ित रोगी के निदान के उपाय विस्तार से मिलते हैं। ज्योतिष साहित्य के मूल ग्रंथों- प्रश्नमार्ग, वृहत्पराशर, होरा सार, फलदीपिका, मानसागरी आदि में ज्योतिषीय योग हैं, जो प्रेत पीड़ा, पितृदोष आदि बाधाओं से मुक्ति का उपाय बताते हैं। अथर्ववेद में दुष्ट आत्माओं को भगाने से संबंधित अनेक उपायों का वर्णन मिलता है।
सावधानी : नदी, पुल या सड़क पार करते समय भगवान का स्मरण जरूर करें। एकांत में शयन या यात्रा करते समय पवित्रता का ध्यान रखें। पेशाब करने के बाद धेला अवश्य लें और जगह देखकर ही पेशाब करें। रात्रि में सोने से पूर्व भूत-प्रेत पर चर्चा न करें। किसी भी प्रकार के टोने-टोटकों से बचकर ही रहें।
चतुर्थी, तेरस, चौदस और अमावस्या को पवित्रता का पालन करें। इस दिन कहीं भी यात्रा करने से बचें। शराब न पीएं और न ही मांस का सेवन करें। सिर पर चंदन का तिलक लगाएं। हाथ में मौली (नाड़ा) अवश्य बांधकर रखें।
ऐसे स्थान पर न जाएं, जहां पर तांत्रिक अनुष्ठान होता हो, जहां पर किसी पशु की बलि दी जाती हो या जहां भी लोहबान आदि धुएं से भूत भगाने का दावा किया जाता हो। भूत भगाने वाले सभी स्थानों से बचकर रहें, क्योंकि यह धर्म और पवित्रता के विरुद्ध है।
जो लोग भूत, प्रेत या पितरों की उपासना करते हैं, वे राक्षसी कर्म के होते हैं। ऐसे लोगों का संपूर्ण जीवन ही भूतों के अधीन रहता है। भूत-प्रेत से बचने के लिए ऐसे कोई से भी टोने-टोटके न करें, जो धर्म-विरुद्ध हों। हो सकता है आपको इससे तात्कालिक लाभ मिल जाए, लेकिन अंतत: जीवनभर आपको परेशान ही रहना पड़ेगा।
अगले पन्ने पर पढ़ें... कैसे पहचानें कि आप भी प्रेतबाधा से ग्रस्त हैं...
प्रेतबाधा : भूतादि से पीड़ित व्यक्ति की पहचान उसके स्वभाव एवं क्रिया में आए बदलाव से की जाती है। अलग-अलग स्वभाव में परिवर्तन के अनुसार जाना जाता है कि व्यक्ति कौन से भूत से पीड़ित है।
भूत पीड़ा : यदि किसी व्यक्ति को भूत लग गया है, तो वह पागल की तरह बात करने लगता है। मूढ़ होने पर भी वह किसी बुद्धिमान पुरुष जैसा व्यवहार भी करता है। गुस्सा आने पर वह कई व्यक्तियों को एक साथ पछाड़ सकता है। उसकी आंखें लाल हो जाती हैं और देह में सदा कंपन बना रहता है।
पिशाच पीड़ा : पिशाच प्रभावित व्यक्ति सदा खराब कर्म करना है, जैसे नग्न हो जाना, नाली का पानी पीना, दूषित भोजन करना, कटु वचन कहना आदि। वह सदा गंदा रहता है और उसकी देह से बदबू आती है। वह एकांत चाहता है। इससे वह कमजोर होता जाता है।
प्रेत पीड़ा : प्रेत से पीड़ित व्यक्ति चिल्लाता और इधर-उधर भागता रहता है। वह किसी का कहना नहीं सुनता। वह हर समय बुरा बोलता रहता है। वह खाता-पीता नही हैं और जोर-जोर से श्वास लेता रहता है।
शाकिनी पीड़ा : शाकिनी से ज्यादातर महिलाएं ही पीड़ित रहती हैं। ऐसी महिला को पूरे बदन में दर्द बना रहता है और उसकी आंखों में भी दर्द रहता है। वह अक्सर बेहोश भी हो जाती है। कांपते रहना, रोना और चिल्लाना उसकी आदत बन जाती है।
चुड़ैल पीड़ा : चुड़ैल भी ज्यादातर किसी महिला को ही लगती है। ऐसी महिला यदि शाकाहारी भी है तो मांस खाने लग जाएगी। वह कम बोलती, लेकिन मुस्कुराती रहती है। ऐसी महिला कब क्या कर देगी? कोई भरोसा नहीं।
यक्ष पीड़ा : यक्ष से पीड़ित व्यक्ति लाल रंग में रुचि लेने लगता है। उसकी आवाज धीमी और चाल तेज हो जाती है। वह ज्यादातर आंखों से इशारे करता रहता है। इसकी आंखें तांबे जैसी और गोल दिखने लगती हैं।
ब्रह्मराक्षस पीड़ा : जब किसी व्यक्ति को ब्रह्मराक्षस लग जाता है, तो ऐसा व्यक्ति बहुत ही शक्तिशाली बन जाता है। वह हमेशा खामोश रहकर अनुशासन में जीवन-यापन करता है। इसे ही 'जिन्न' कहते हैं। ये बहुत सारा खाना खाते हैं और घंटों तक एक जैसी ही अवस्था में बैठे या खड़े रहते हैं। जिन्न से ग्रस्त व्यक्ति का जीवन सामान्य होता है। ये घर के किसी सदस्य को परेशान भी नहीं करते हैं, बस अपनी ही मस्ती में मस्त रहते हैं। जिन्नों को किसी के शरीर से निकालना अत्यंत ही कठिन होता है।
इस तरह से और भी कई तरह के भूत होते हैं जिनके अलग-अलग लक्षण और लक्ष्य होते हैं।