मंगलवार, 19 मार्च 2024
  • Webdunia Deals
  1. सामयिक
  2. संपादकीय
  3. संपादकीय
  4. mp farmer strike, Madhya Pradesh

किसान आंदोलन की आग में सुलगते सवाल...

किसान आंदोलन की आग में सुलगते सवाल... - mp farmer strike, Madhya Pradesh
मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र में हिंसक हो चुके किसान आंदोलन की जो तस्वीरें और तथ्य सामने आ रहे हैं, वो बहुत ही डरावने और भयावह हैं। मध्यप्रदेश की तस्वीर तो बहुत ही बुरी है़। जलती हुई गाड़ियाँ, बिलखते हुए बच्चे, ट्रेन-बसों में मारपीट, पटरियाँ उखाड़ने की कोशिश, जिलाधीश और मीडियाकर्मियों से मारपीट। ये सब हो रहा है किसान आंदोलन के नाम पर। उस किसान आंदोलन के नाम पर जिसका आह्वान किसान संगठनों ने 1 जून से 10 जून तक किया था। आंदोलन की घोषणा होने के बाद से ही इसको लेकर शासन और प्रशासन के स्तर पर इसे लेकर कोई गंभीरता या बातचीत की कोशिश नहीं देखी गई। मुद्रा ये रही कि देखते हैं क्या कर लेंगे। जब पहले ही दिन दूध-सब्जी की किल्लत और घोर अव्यवस्था हुई तो भी इसे महज कुछ स्थानों तक सीमित मामला मानकर पुलिस के डंडे के भरोसे छोड़ दिया गया। 
 
मंगलवार को सुबह मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का बयान आया कि वे समर्थन मूल्य और अन्य माँगों को लेकर काम करेंगे लेकिन कर्ज़ माफी नहीं हो पाएगी। इसी दिन शाम को पथराव और आगजनी पर उतारू किसानों पर गोली चलने से मंदसौर में 6 किसानों की मौत हो गई। इसने पूरे किसान आंदोलन को अधिक उग्र और हिंसक कर दिया। 
शुरुआती उपद्रव के बाद जहाँ आंदोलंकारियों को लगने लगा था कि वो दूध-सब्जी रोक कर जनसमर्थन खो रहे हैं तो वो धीरे-धीरे पटरी पर आने लगे थे। दूध-सब्जी मिलने लगे थे और किसान भी अपनी माँगों पर डटे हुए थे। फिर अचानक आंदोलन हिंसक हो गया। निश्चित ही आंदोलन के नाम पर जिस तरह की गुंडई और उत्पात हो रहा है, उसे किसी भी तरीके से जायज नहीं ठहराया जा सकता। 
 
अगर आंदोलंकारियों की लड़ाई सरकार से है तो निर्दोष आम जनता को क्यों सताया और परेशान किया जा रहा है? निश्चित ही ये एक अनियंत्रित भीड़ है, जिसके पास कोई नेता नहीं बस चंद लोगों का बहकावा है, मनमानी है और सब कुछ जला देने और तबाह कर देने की अजीब-सी सनक भी है। ये भी सही है कि इस आंदोलन की आड़ में असमाजिक तत्व भी सक्रिय हो गए हैं और वो अपना उल्लू सीधा करने में लगे हैं। 
 
इस सब किंतु-परंतु के बीच भी सरकार और प्रशासन को उसकी घोर लापरवाही के आरोप से मुक्ति नहीं मिल सकती। जब आंदोलन की ये चिंगारियाँ चमकीं ही थीं तो उसे बहुत हल्के में लिया गया। सब कुछ प्रशासन पर छोड़ दिया गया। स्थानीय नेताओं और संगठन को दरकिनार कर दिया गया। आमजन को परेशान करने वाले इस आंदोलन में आंदोलनकारियों को 'विलेन' बनाने की बजाय अगर ख़ुद सरकार और प्रशासन कठघरे में है तो ये जिम्मेदारी किसकी है? समय रहते ना चेतने की जिम्मेदारी किसकी है? केवल लाठी के जोर पर आंदोलन को दबाने की ग़लती किसने की? उल्टे-सीधे बयान किसने दिए? कांग्रेस के नाम पर अपने हाथ झटकने की कोशिश किसने की? आंदोलनकारियों के रूप में गुंडई करने वालों को पहचानने में नाकामयाब कौन रहा? 
 
आज भी किसानों की मौत का ग़म तो सबको है, पर जलती हुई बसों और परेशान होते आमजन को देख कोई भी इन आंदोलंकारियों के साथ सहानुभूति नहीं रख सकता। ज़रूरत इस बात की है कि प्रशासन पूरी तत्परता से काम ले। सरकार बातचीत करे और इस आग को ठंडा करे। 
 
किसानों की माँगे क्या हैं? वो कितनी जायज़ हैं? बाज़ार के मूल्य कौन तय करता है? क्या वाकई जो आंदोलन कर रहे हैं वो सब किसान ही हैं? तो फिर वो कौन हैं जिनके घरों में ऑडी, बीएममडब्यू  से लेकर पजेरो तक सब खड़ी हैं, जिनके कोल्ड स्टोरेज हैं? क्या वो भी सड़कों पर हैं? या इनके पीछे हैं? या इनको भड़का रहे हैं? ऐसा वो कितने शहरों में कर पाएँगे? क्या यहाँ सचमुच कोई इतना बड़ा किसान नेता है? या कि विपक्ष इतना मजबूत है? या ये आंदोलन स्व-स्फूर्त चल रहा है? किसानों की समस्या और इन सवालों की अलग से पड़ताल जरूरी है। फिलहाल तो ये पूरा आंदोलन दिशाहीन हो गया दिखता है। सबसे पहली ज़रूरत प्रदेश में शांति बहाली की है... इसकी ज़िम्मेदारी मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की ही है.....।  
ये भी पढ़ें
सऊदी अरब का निशाना कौन-कतर या ईरान