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भविष्यफल देखने की सबसे सटीक विधि है नष्टजातकम्

भविष्यफल देखने की सबसे सटीक विधि है नष्टजातकम् - Nashta jatakam
ज्योतिष शास्त्र में भविष्यफल ज्ञात करने के कई माध्यम हैं जैसे जन्मपत्रिका, हस्तरेखा, ललाट रेखा, रमल, सामुद्रिक शास्त्र आदि। जन्मपत्रिका निर्माण के लिए जातक के जन्म का सही समय व दिनांक ज्ञात होना अति-आवश्यक है। प्राचीन काल में जब समय का ठीक-ठीक अनुमान नहीं होता था तब भविष्यफल कहने के लिए एक अत्यन्त सटीक व कारगर विधि अपनाई जाती थी जिसे 'नष्टजातकम्' कहा जाता था। 
 
इसके अन्तर्गत प्रश्न कुण्डली के माध्यम से जातक का भविष्यफल व प्रश्नों का उत्तर दिया जाता है। यदि किसी जातक को अपने जन्म का सही समय व दिनांक ज्ञात नहीं है तो प्रश्न कुण्डली के माध्यम से उसकी जन्मपत्रिका निर्माण कर नष्टजातकम् विधि से उसका भविष्यफल बताया जा सकता है। यह अत्यन्त कारगर विधि है। 
 
 
लेकिन इसमें कुछ बातों का ध्यान रखना आवश्यक है जैसे प्रश्न के सही समय का निर्धारण करना, प्रश्न करने वाले की मानसिक व शारीरिक शुचिता, छल-कपट या ज्योतिषी की परीक्षा की दृष्टि से प्रश्न ना करना, एक समय में केवल एक ही प्रश्न पूछना आदि। यदि इन बातों का ध्यान रखा जाए तो प्रश्न कुण्डली के माध्यम से व्यक्ति के किसी भी प्रश्न का समाधान किया जा सकता है।

कैसे बताया जाता है प्रश्न कुण्डली से फलित-
 
प्रश्न कुण्डली के माध्यम से फलित कहने के लिए प्रश्न पूछने का सही समय निर्धारित कर उसके आधार पर जन्मपत्रिका का निर्माण किया जाता है। जन्मपत्रिका के निर्माण में लग्न का विशेष महत्त्व होता है। व्यक्ति द्वारा जिस विषय पर प्रश्न किया गया है उससे सम्बन्धित भाव को लग्न मानकर उसका फलित कहना चाहिए। 
यदि आजीविका सम्बन्धी प्रश्न है तो दशम भाव, विवाह या दाम्पत्य सम्बन्धी प्रश्न के लिए सप्तम भाव, आयु से सम्बन्धित प्रश्न के लिए अष्टम भाव को लग्न मानकर विचार किया जाना चाहिए। अतीत से सम्बन्धित प्रश्नों का द्वादश भाव से, भविष्य सम्बन्धी प्रश्नों का द्वितीय भाव से वर्तमान समय से सम्बन्धित प्रश्नों का उत्तर लग्न भाव से विचार कर दिया जाना चाहिए। यदि व्यक्ति एक साथ दो या तीन प्रश्न कर ले तो प्रथम प्रश्न का लग्न से, दूसरे प्रश्न का चन्द्र लग्न से व तीसरे प्रश्न का सूर्य लग्न से विचार कर समाधान किया जाना चाहिए।
 
हमारे मतानुसार ज्योतिष एक वृहद् शास्त्र है इसका सम्पूर्ण ज्ञान प्राप्त करना एवं इसमें पूर्ण निष्णात होना एक जीवन में सम्भव नहीं। अत: एक श्रेष्ठ ज्योतिषी के लिए आवश्यक है कि वह ज्योतिष शास्त्र की किसी भी एक विधा का भलीभाँति अध्ययन कर उसमें पारंगत होने का प्रयास करें, ना कि हर विधा में अधूरा ज्ञान प्राप्त कर जनमानस को दिग्भ्रमित करें।
 
-ज्योतिर्विद् पं. हेमन्त रिछारिया
सम्पर्क: [email protected]
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