-प्रभाकर मणि तिवारी
भारतीय अदालतों में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) और चैटजीपीटी का इस्तेमाल धीरे-धीरे बढ़ रहा है। लेकिन न्यायिक प्रक्रिया में चैटजीपीटी के इस्तेमाल की कई चुनौतियां भी हैं। बीते साल पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने एक मामले मे इसकी सहायता ली थी। अब पूर्वोत्तर में मणिपुर हाईकोर्ट ऐसा कोर्ट ऐसा करने वाली दूसरी अदालत बन गई है। वैसे अमेरिका समेत कई देशों में न्यायिक प्रक्रिया और कानूनी सलाह के लिए पहले से ही इस तकनीक इस्तेमाल हो रहा है।
लेकिन भारत में यह अभी शुरुआत है। इसके साथ ही यहां इस तकनीक के इस्तेमाल से पैदा होने वाली चुनौतियों पर भी चर्चा तेज होने लगी है। सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने बीते महीने एक कार्यक्रम में कहा था कि अदालती कार्यवाही में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को शामिल करने से जटिल नैतिक, कानूनी और व्यावहारिक चुनौतियां सामने आ रही हैं।
मणिपुर हाईकोर्ट का फैसला
मणिपुर हाईकोर्ट ने एक मामले में शोध करने के लिए चैटजीपीटी का इस्तेमाल किया है। हाईकोर्ट के न्यायाधीश ए. गुणेश्वर शर्मा ने कहा कि उन्होंने ग्रामीण रक्षा बल (वीडीएफ) के एक कर्मचारी की बर्खास्तगी को रद्द करने की याचिका पर सुनवाई के दौरान एआई तकनीक की मदद ली थी।
उन्होंने सरकारी वकील से पूछा था कि किन हालात में अधिकारी उसकी दोबारा बहाली का आदेश दे सकते हैं? उनकी ओर से इसका कोई जवाब नहीं मिलने के बाद जज ने गूगल और चैटजीपीटी की मदद लेने का फैसला किया। इसके बाद अदालत ने याचिकाकर्ता की बहाली का आदेश सुनाया।
इस मामले में याचिकाकर्ता के वकील अजमल हुसैन डीडब्ल्यू को बताते हैं, 'मणिपुर में वीडीएफ की स्थापना खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में कानून और व्यवस्था बनाए रखने में पुलिस की सहायता के लिए की गई थी। इसके लिए चुने गए सदस्यों को जरूरी प्रशिक्षण के बाद पुलिस वालों के साथ ड्यूटी पर तैनात किया जाता है। बीते साल मई में जातीय हिंसा शुरू होने के बाद से स्थानीय स्तर पर सुरक्षा व्यवस्था मजबूत करने में इस बल की भूमिका काफी अहम है। चैटजीपीटी ने अदालत को सही फैसला लेने में मदद दी।'
इससे पहले पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने बीते साल एक आपराधिक मामले में अभियुक्त की जमानत याचिका पर फैसला सुनाने के लिए एआई चैटबॉट चैटजीपीटी से कानूनी सलाह ली थी। उससे मिले जवाब के आधार पर अदालत ने अभियुक्त की जमानत याचिका खारिज कर दी थी।
चैटजीपीटी का कोर्ट में क्या काम?
भारतीय सुप्रीम कोर्ट वर्ष 2021 से ही जजों को विभिन्न मामले में फैसला लेने के लिए संबंधित सूचनाओं को प्रोसेस कर उपलब्ध कराने के लिए एआई-नियंत्रित टूल का इस्तेमाल कर रहा है। इसके अलावा अंग्रेजी से दूसरी भाषाओं या दूसरी भाषाओं से अंग्रेजी में कानूनी दस्तावेजों के अनुवाद के लिए सुप्रीम कोर्ट विधिक अनुवाद सॉफ्टवेयर का भी इस्तेमाल किया जाता है। लेकिन किसी फैसले में मदद के लिए एआई और चैटजीपीटी का इस्तेमाल पहली बार पिछले साल पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने ही किया था। अब मणिपुर ऐसा करने वाला दूसरा राज्य है।
मणिपुर हाईकोर्ट के एडवोकेट अजमल हुसैन डीडब्ल्यू से कहते हैं, अमेरिका समेत कई देशों में अदालती कार्यवाही या कानूनी सलाह के लिए चैटजीपीटी का इस्तेमाल किया जाता है। अमेरिका में तो हाल ही एआई आधारित रोबोट वकील भी पेश किया गया है। यह रोबोट ओवर स्पीडिंग से जुड़े मामलों में कानूनी सलाह देता है। हालांकि बिना लाइसेंस के प्रैक्टिस करने के आरोप में उसके खिलाफ एक मामला दर्ज हुआ है।
चैटजीपीटी - ओपन एआई नाम की अमेरिकी कंपनी की ओर से नवंबर, 2022 में पेश की गई एक ऐसी तकनीक है, जो सॉफ्टवेयर में फीड की गई जानकारियों और आंकड़ों के आधार पर हर तरह के सवालों के जवाब चुटकियों में दे सकती है। इसकी मदद से किसी भी विषय पर लंबे लेख लिख जा सकते हैं। इसके जरिए उपलब्ध जानकारियों और आंकड़ों के विश्लेषण के बाद उसे आसान भाषा में बदलकर उपभोक्ताओं को उपलब्ध कराया जाता है।
इस मशीन लर्निंग मॉडल को इंसानी भाषा को समझने और इंसानों जैसी प्रतिक्रिया देने के लिए डिजाइन किया गया है। सरल भाषा में कहें तो यह एक ऐसा सहायक है, जो जटिल से जटिल सवालों के जवाब पलक झपकते देकर जीवन की मुश्किलों को काफी हद तक आसान कर देता है। यही वजह है कि लांच होने के बाद से ही यह लगातार सुर्खियों में रहा है।
अवसर और चुनौतियां
यह तकनीक जहां कई जटिल मामलों में त्वरित फैसले में न्यायाधीशों की मदद कर सकती है वहीं इसके इस्तेमाल से पैदा होने वाली चुनौतियों पर भी चिंता बढ़ रही है। सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने बीते महीने दिल्ली में आयोजित भारत और सिंगापुर के सुप्रीम कोर्ट के बीच प्रौद्योगिकी और संवाद पर 2 दिवसीय सम्मेलन में कहा था कि अदालती कार्यवाही में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को शामिल करने से जटिल नैतिक, कानूनी और व्यावहारिक चुनौतियां सामने आ रही हैं और इस पर गहन विचार करने की जरूरत है।
उनका कहना था कि अदालती फैसलों में इसके इस्तेमाल से पैदा होने वाले अवसर और चुनौतियों पर गहन विमर्श जरूरी है। यह अभूतपूर्व अवसर मुहैया कराने के साथ ही खासकर नैतिकता, जवाबदेही और पूर्वाग्रह जैसे मुद्दे पर जटिल चुनौतियां भी पैदा करता है। इसके साथ ही किसी मुद्दे की गलत व्याख्या का भी खतरा है। हितधारकों को मिलकर इसके तमाम पहलुओं पर बारीकी से विचार करना चाहिए।
कलकत्ता में एक कानूनी सलाहकार फर्म के विधि विशेषज्ञ मनोतोष कुंडू डीडब्ल्यू से कहते हैं कि फैसले लेने में इसके इस्तेमाल पर नैतिक चिंता है। इसकी वजह यह है कि यह अपराध या किसी घटना के हालात पर इंसान की तरह संवेदनशील तरीके से विचार करने में सक्षम नहीं है। यह उन आंकड़ों के आधार पर ही किसी नतीजे पर पहुंचता है जिनमें उसे प्रशिक्षित किया गया है। इससे पूर्वाग्रह का खतरा भी बना रहेगा। लेकिन यह भारी तादाद में कानून आंकड़ों का विश्लेषण कर ठोस निष्कर्ष बता सकता है। इससे कानूनी प्रक्रिया तेज हो सकती है। इसका फायदा तमाम संबंधित पक्षों को मिल सकता है।
वे कहते हैं कि एआई से मदद लेना ठीक है। लेकिन अंतिम फैसला इसके भरोसे करने की बजाय न्यायाधीशों को अपनी समझ से ही करना चाहिए। उनको किसी भी कानून फैसले की जटिलता और संबंधित लोगों पर उसके असर का अनुभव होता है। एआई शीघ्र फैसला लेने में मदद जरूर कर सकता है। लेकिन फिलहाल वकीलों या न्यायाधीशों की जगह नहीं ले सकता। साथ ही अदालती कार्यवाही में इस्तेमाल होने वाली इस प्रणाली का पारदर्शी होना भी जरूरी है। इसकी नियमित रूप से जांच भी की जानी चाहिए।
कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि इस नई तकनीक के खतरे या चुनौतियों पर बहस अभी और तेज होने की संभावना है। लेकिन इसके साथ ही अदालती मामलों में इससे मदद लेने की प्रवृत्ति भी धीरे-धीरे बढ़ेगी।