(अनुच्छेद 59 (3), 65 (3), 75 (6), 97, 125, 148 (3), 158 (3) , 164 (5), 186 और 221)
भाग क
राष्ट्रपति और राज्यों के राज्यपालों के बारे में उपबंध
1. राष्ट्रपति और (संविधान (सातवाँ संशोधन) अधिनियम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा 'पहली अनुसूची के भाग क में विनिर्दिष्ट' शब्दों और अक्षर का लोप किया गया।) राज्यों के राज्यपालों को प्रति मास निम्नलिखित उपलब्धियों का संदाय किया जाएगा, अर्थात्-
राष्ट्रपति (1990 के अधिनियम सं. 16 की धारा 2 के अनुसार अब (29-6-1990 से) यह '20000 रुपए' है।) 10,000 रुपए।
राज्य का राज्यपाल (1987 के अधिनियम सं. 17 की धारा 2 के अनुसार अब (1-4-1986 से) यह '11000 रुपए' है।) 5,500 रुपए।
2. राष्ट्रपति और (संविधान (सातवाँ संशोधन) अधिनियम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा 'ऐसे विनिर्दिष्ट' शब्दों का लोप किया गया।) राज्यों के राज्यपालों को ऐसे भत्तों का भी संदाय किया जाएगा जो इस संविधान के प्रारंभ से ठीक पहले क्रमशः भारत डोमिनियन के गवर्नर जनरल को तथा तत्स्थानी प्रांतों के गवर्नरों को संदेय थे।
3. राष्ट्रपति और (संविधान (सातवाँ संशोधन) अधिनियम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा 'ऐसे राज्यों' के स्थान पर प्रतिस्थापित।) (राज्यों) के राज्यपाल अपनी-अपनी संपूर्ण पदावधि में ऐसे विशेषाधिकारों के हकदार होंगे जिनके इस संविधान के प्रारंभ से ठीक पहले क्रमशः गवर्नर जनरल और तत्स्थानी प्रांतों के गवर्नर हकदार थे।
4. जब उपराष्ट्रपति या कोई अन्य व्यक्ति राष्ट्रपति के कृत्यों का निर्वहन कर रहा है या उसके रूप में कार्य कर रहा है या कोई व्यक्ति राज्यपाल के कृत्यों का निर्वहन कर रहा है तब वह ऐसी उपलब्धियों, भत्तों और विशेषाधिकारों का हकदार होगा जिनका, यथास्थिति, वह राष्ट्रपति या राज्यपाल हकदार है, जिसके कृत्यों का वह निर्वहन करता है या, यथास्थिति, जिसके रूप में वह कार्य करता है।
* संविधान (सातवाँ संशोधन) अधिनियम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा भाग ख का लोप किया गया।
भाग ग
लोकसभा के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के तथा राज्यसभा के सभापति और उपसभापति के तथा (संविधान (सातवाँ संशोधन) अधिनियम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा 'पहली अनुसूची के भाग क में के किसी राज्य का' शब्दों और अक्षर का लोप किया गया।) (संविधान (सातवाँ संशोधन) अधिनियम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा 'किसी ऐसे राज्य' के स्थान पर प्रतिस्थापित।)(राज्य) की विधानसभा के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के तथा विधान परिषद् के सभापति और उपसभापति के बारे में उपबंध
7. लोकसभा के अध्यक्ष और राज्यसभा के सभापति को ऐसे वेतन और भत्तों का संदाय किया जाएगा जो इस संविधान के प्रारंभ से ठीक पहले भारत डोमिनियन की संविधान सभा के अध्यक्ष को संदेय थे तथा लोकसभा के उपाध्यक्ष को और राज्यसभा के उपसभापति को ऐसे वेतन और भत्तों का संदाय किया जाएगा जो इस संविधान के प्रारंभ से ठीक पहले भारत डोमिनियन की संविधान सभा के उपाध्यक्ष को संदेय थे।
8. (संविधान (सातवाँ संशोधन) अधिनियम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा 'पहली अनुसूची के भाग क में विनिर्दिष्ट किसी राज्य का' शब्दों और अक्षर का लोप किया गया।) राज्य की विधानसभा के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष को तथा (संविधान (सातवाँ संशोधन) अधिनियम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा 'ऐसा राज्य' के स्थान पर प्रतिस्थापित।) (राज्य) की विधान परिषद् के सभापति और उपसभापति को ऐसे वेतन और भत्तों का संदाय किया जाएगा जो इस संविधान के प्रारंभ से ठीक पहले क्रमशः तत्स्थानी प्रांत की विधानसभा के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष को तथा विधान परिषद् के सभापति और उपसभापति को संदेय थे और जहाँ ऐसे प्रारंभ से ठीक पहले तत्स्थानी प्रांत की कोई विधान परिषद् नहीं थी वहाँ उस राज्य की विधान परिषद् के सभापति और उपसभापति को ऐसे वेतन और भत्तों का संदाय किया जाएगा जो उस राज्य का राज्यपाल अवधारित करे।
भाग घ
उच्चतम न्यायालय और (संविधान (सातवाँ संशोधन) अधिनियम, 1956 की धारा 25 द्वारा 'पहली अनुसूची के भाग क में के राज्यों में' शब्दों और अक्षर का लोप किया गया।) उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों के बारे में उपबंध
9. (1) उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों को वास्तविक सेवा में बिताए समय के लिए प्रति मास निम्नलिखित दर से वेतन का संदाय किया जाएगा, अर्थात्-
मुख्य न्यायमूर्ति (संविधान (चौवनवाँ संशोधन) अधिनियम, 1986 (1986 का 34) की धारा 4 द्वारा (1-4-1986 से) '5000 रुपए' के स्थान पर प्रतिस्थापित।) (10,000 रुपए।)
कोई अन्य न्यायाधीश (संविधान (चौवनवाँ संशोधन) अधिनियम, 1986 (1986 का 34) की धारा 4 द्वारा (1-4-1986 से) '4000 रुपए' के स्थान पर प्रतिस्थापित।) (9,000 रुपएः)
परंतु यदि उच्चतम न्यायालय का कोई न्यायाधीश अपनी नियुक्ति के समय भारत सरकार की या उसकी पूर्ववर्ती सरकारों में से किसी की अथवा राज्य की सरकार की या उसकी पूर्ववर्ती सरकारों में से किसी की पूर्व सेवा के संबंध में (निःशक्तता या क्षति पेंशन से भिन्ना) कोई पेंशन प्राप्त कर रहा है तो उच्चतम न्यायालय में सेवा के लिए उसके वेतन में से (संविधान (सातवाँ संशोधन) अधिनियम, 1956 की धारा 25 द्वारा 'उस पेंशन की राशि घटा दी जाएगी' के स्थान पर प्रतिस्थापित।) (निम्नलिखित को घटा दिया जाएगा, अर्थात्-
(क) उस पेंशन की रकम; और
(ख) यदि उसने ऐसी नियुक्ति से पहले, ऐसी पूर्व सेवा के संबंध में अपने को देय पेंशन के एक भाग के बदले उसका संराशित मूल्य प्राप्त किया है तो पेंशन के उस भाग की रकम; और
(ग) यदि उसने ऐसी नियुक्ति से पहले, ऐसी पूर्व सेवा के संबंध में निवृत्ति उपदान प्राप्त किया है तो उस उपदान के समतुल्य पेंशन।)
(2) उच्चतम न्यायालय का प्रत्येक न्यायाधीश, बिना किराया दिए, शासकीय निवास के उपयोग का हकदार होगा।
(3) इस पैरा के उपपैरा (2) की कोई बात उस न्यायाधीश को, जो इस संविधान के प्रारंभ से ठीक पहले-
(क) फेडरल न्यायालय के मुख्य न्यायमूर्ति के रूप में पद धारण कर रहा था और जो ऐसे प्रारंभ पर अनुच्छेद 374 के खंड (1) के अधीन उच्चतम न्यायालय का मुख्य न्यायमूर्ति बन गया है, या
(ख) फेडरल न्यायालय के किसी अन्य न्यायाधीश के रूप में पद धारण कर रहा था और जो ऐसे प्रारंभ पर उक्त खंड के अधीन उच्चतम न्यायालय का (मुख्य न्यायमूर्ति से भिन्ना) न्यायाधीश बन गया है,
उस अवधि में जिसमें वह ऐसे मुख्य न्यायमूर्ति या अन्य न्यायाधीश के रूप में पद धारण करता है, लागू नहीं होगी और ऐसा प्रत्येक न्यायाधीश जो इस प्रकार उच्चतम न्यायालय का मुख्य न्यायमूर्ति या अन्य न्यायाधीश बन जाता है, यथास्थिति, ऐसे मुख्य न्यायमूर्ति या अन्य न्यायाधीश के रूप में वास्तविक सेवा में बिताए समय के लिए इस पैरा के उपपैरा (1) में विनिर्दिष्ट वेतन के अतिरिक्त विशेष वेतन के रूप में ऐसी रकम प्राप्त करने का हकदार होगा जो इस प्रकार विनिर्दिष्ट वेतन और ऐसे वेतन के अंतर के बराबर है जो वह ऐसे प्रारंभ से ठीक पहले प्राप्त कर रहा था।
(4) उच्चतम न्यायालय का प्रत्येक न्यायधीश भारत के राज्य क्षेत्र के भीतर अपने कर्तव्य पालन में की गई यात्रा में उपगत व्यय की प्रतिपूर्ति के लिए ऐसे युक्तियुक्त भत्ते प्राप्त करेगा और यात्रा संबंधी उसे ऐसी युक्तियुक्त सुविधाएँ दी जाएँगी जो राष्ट्रपति समय-समय पर विहित करे।
(5) उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों की अनुपस्थिति छुट्टी के (जिसके अंतर्गत छुट्टी भत्ते हैं) और पेंशन के संबंध में अधिकार उन उपबंधों से शासित होंगे जो इस संविधान के प्रारंभ से ठीक पहले फेडरल न्यायालय के न्यायाधीशों को लागू थे।
* संविधान (सातवाँ संशोधन) अधिनियम, 1956 की धारा 25 द्वारा उपपैरा (1) के स्थान पर प्रतिस्थापित।
10. (1) उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों को वास्तविक सेवा में बिताए समय के लिए प्रतिमास निम्नलिखित दर से वेतन का संदाय किया जाएगा, अर्थात्-
मुख्य न्यायमूर्ति (संविधान (चौवनवाँ संशोधन) अधिनियम, 1986 की धारा 4 द्वारा (1-4-1986 से) '4,000 रुपए' के स्थान पर प्रतिस्थापित।) (9,000 रुपए।)
कोई अन्य न्यायाधीश (संविधान (चौवनवाँ संशोधन) अधिनियम, 1986 की धारा 4 द्वारा (1-4-1986 से) '3,500 रुपए' के स्थान पर प्रतिस्थापित।) (8,000 रुपए),
परंतु यदि किसी उच्च न्यायालय का कोई न्यायाधीश अपनी नियुक्ति के समय भारत सरकार की या उसकी पूर्ववर्ती सरकारों में से किसी की अथवा राज्य की सरकार की या उसकी पूर्ववर्ती सरकारों में से किसी की पूर्व सेवा के संबंध में (निःशक्तता या क्षति पेंशन से भिन्ना) कोई पेंशन प्राप्त कर रहा है तो उच्च न्यायालय में सेवा के लिए उसके वेतन में से निम्नलिखित को घटा दिया जाएगा, अर्थात्-
(क) उस पेंशन की रकम; और
(ख) यदि उसने ऐसी नियुक्ति से पहले, ऐसी पूर्व सेवा के संबंध में अपने को देय पेंशन के एक भाग के बदले उसका संराशित मूल्य प्राप्त किया है तो पेंशन के उस भाग की रकम; और
(ग) यदि उसने ऐसी नियुक्ति से पहले, ऐसी पूर्व सेवा के संबंध में निवृत्ति-उपदान प्राप्त किया है तो उस उपदान के समतुल्य पेंशन।
(2) ऐसा प्रत्येक व्यक्ति, जो इस संविधान के प्रारंभ से ठीक पहले-
(क) किसी प्रांत के उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायमूर्ति के रूप में पद धारण कर रहा था और ऐसे प्रारंभ पर अनुच्छेद 376 के खंड (1) के अधीन तत्स्थानी राज्य के उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायमूर्ति बन गया है, या
(ख) किसी प्रांत के उच्च न्यायालय के किसी अन्य न्यायाधीश के रूप में पद धारण कर रहा था और जो ऐसे प्रारंभ पर उक्त खंड के अधीन तत्स्थानी राज्य के उच्च न्यायालय का (मुख्य न्यायमूर्ति से भिन्ना) न्यायाधीश बन गया है, यदि वह ऐसे प्रारंभ से ठीक पहले इस पैरा के उपपैरा (1) में विनिर्दिष्ट दर से उच्चतर दर पर वेतन प्राप्त कर रहा था तो, यथास्थिति, ऐसे मुख्य न्यायमूर्ति या अन्य न्यायाधीश के रूप में वास्तविक सेवा में बिताए समय के लिए इस पैरा के उपपैरा (1) में विनिर्दिष्ट वेतन के अतिरिक्त विशेष वेतन के रूप में ऐसी रकम प्राप्त करने का हकदार होगा जो इस प्रकार विनिर्दिष्ट वेतन और ऐसे वेतन के अंतर के बराबर है जो वह ऐसे प्रारंभ से ठीक पहले प्राप्त कर रहा था।
* संविधान (सातवाँ संशोधन) अधिनियम, 1956 की धारा 25 द्वारा उपपैरा (3) और (4) के स्थान पर प्रतिस्थापित।
(3) ऐसा कोई व्यक्ति जो संविधान (सातवाँ संशोधन) अधिनियम, 1956 के प्रारंभ से ठीक पहले, पहली अनुसूची के भाग ख में विनिर्दिष्ट किसी राज्य के उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायमूर्ति के रूप में पद धारण कर रहा था और जो ऐसे प्रारंभ पर उक्त अधिनियम द्वारा यथा संशोधित उक्त अनुसूची में विनिर्दिष्ट किसी राज्य के उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायमूर्ति बन गया है, यदि वह ऐसे प्रारंभ से ठीक पहले अपने वेतन के अतिरिक्त भत्ते के रूप में कोई रकम प्राप्त कर रहा था तो, ऐसे मुख्य न्यायमूर्ति के रूप में वास्तविक सेवा में बिताए समय के लिए इस पैरा के उपपैरा (1) में विनिर्दिष्ट वेतन के अतिरिक्त भत्ते के रूप में वही रकम प्राप्त करने का हकदार होगा।
11. इस भाग में, जब तक कि संदर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो-
(क) 'मुख्य न्यायमूर्ति' पद के अंतर्गत कार्यकारी मुख्य न्यायमूर्ति है और 'न्यायाधीश' पद के अंतर्गत तदर्थ न्यायाधीश है,
(ख) 'वास्तविक सेवा' के अंतर्गत-
(1) न्यायाधीश द्वारा न्यायाधीश के रूप में कर्तव्य पालन में या ऐसे अन्य कृत्यों के पालन में, जिनका राष्ट्रपति के अनुरोध पर उसने निर्वहन करने का भार अपने ऊपर लिया है, बिताया गया समय है,
(2) उस समय को छोड़कर जिसमें न्यायाधीश छुट्टी लेकर अनुपस्थित है, दीर्घावकाश है, और
(3) उच्च न्यायालय से उच्चतम न्यायालय को या एक उच्च न्यायालय से दूसरे उच्च न्यायालय को अंतरण पर जाने पर पदग्रहण काल है।
भाग ङ
भारत के नियंत्रक-महालेखापरीक्षक के बारे में उपबंध
12. (1) भारत के नियंत्रक-महालेखापरीक्षक को (1971 के अधिनियम सं. 56 की धारा 3 द्वारा भारत के नियंत्रक-महालेखापरीक्षक को उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों के बराबर वेतन का संदाय किया जाएगा। संविधान (चौवनवाँ संशोधन) अधिनियम, 1986 द्वारा उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों का वेतन बढ़ाकर 9,000 रुपए प्रति मास कर दिया गया है।) चार हजार रुपए प्रतिमास की दर से वेतन का प्रदाय किया जाएगा।
(2) ऐसा कोई व्यक्ति, जो इस संविधान के प्रारंभ से ठीक पहले भारत के महालेखापरीक्षक के रूप में पद धारण कर रहा था और जो ऐसे प्रारंभ पर अनुच्छेद 377 के अधीन भारत का नियंत्रक-महालेखापरीक्षक बन गया है, इस पैरा के उपपैरा (1) में विनिर्दिष्ट वेतन के अतिरिक्त विशेष वेतन के रूप में ऐसी रकम प्राप्त करने का हकदार होगा जो इस प्रकार विनिर्दिष्ट वेतन और ऐसे वेतन के अंतर के बराबर है जो वह ऐसे प्रारंभ से ठीक पहले भारत के महालेखापरीक्षक के रूप में प्राप्त कर रहा था।
(3) भारत के नियंत्रक-महालेखापरीक्षक की अनुपस्थिति छुट्टी और पेंशन तथा अन्य सेवा-शर्तों के संबंध में अधिकार उन उपबंधों से, यथास्थिति, शासित होंगे या शासित होते रहेंगे जो इस संविधान के प्रारंभ से ठीक पहले भारत के महालेखापरीक्षक को लागू थे और उन उपबंधों में गर्वनर जनरल के प्रति सभी निर्देशों का यह अर्थ लगाया जाएगा कि वे राष्ट्रपति के प्रति निर्देश हैं।