213. विधान-मंडल के विश्रांतिकाल में अध्यादेश प्रख्यापित करने की राज्यपाल की शक्ति--(1) उस समय को छोड़कर जब किसी राज्य की विधान सभा सत्र में है या विधान परिषद वाले राज्य में विधान-मंडल के दोनों सदन सत्र में है, यदि किसी समय राज्यपाल का यह समाधान हो जाता है कि ऐसी परिस्थितियाँ विद्यमान हैं जिनके कारण तुरंत कार्रवाई करना उसके लिए आवश्यक हो गया है तो वह ऐसे अध्यादेश प्रख्यापित कर सकेगा जो उसे उन परिस्थितियाँ में अपेक्षित प्रतीत हों:
परंतु राज्यपाल, राष्ट्रपति के अनुदेशों के बिना, कोई ऐसा अध्यादेश प्रख्यापित नहीं करेगा यदि--
(क) वैसे ही उपबंध अंतर्विष्ट करने वाले विधेयक को विधान-मंडल में पुर:स्थापित किए जाने के लिए राष्ट्रपति की पूर्व मंजूरी की अपेक्षा इस संविधान के अधीन होती; या
(ख) वह वैसे ही उपबंध अंतर्विष्ट करने वाले विधेयक को राष्ट्रपति के विचार के लिए आरक्षित रखना आवश्यक समझता; या
(ग) वैसे हर उपबंध अंतर्विष्ट करने वाला राज्य के विधान-मंडल का अधिनियम इस संविधान के अधीन तब तक अधिमान्य होता जब तक राष्ट्रपति के विचार के लिए आरक्षित रखे जाने पर उसे राष्ट्रपति की अनुमति प्राप्त नहीं हो गई होती।
(2) इस अनुच्छेद के अधीन प्रख्यापित अध्यादेश का वही बल और प्रभाव होगा जो राज्य के विधान-मंडल के ऐसे अधिनियम का होता है जिसे राज्यपाल ने अनुमति दे दी है, किंतु प्रत्येक ऐसा अध्यादेश --
(क) राज्य की विधान सभा के समक्ष और विधान परिषद वाले राज्य में दोनों सदनों के समक्ष रखा जाएगा तथा विधान-मंडल के पुन: समवेत होने से छह सप्ताह की समाप्ति पर या यदि उस अवधि की समाप्ति से पहले विधान सभा उसके अनुमोदन का संकल्प पारित कर देती है और यदि विधान परिषद है तो वह उससे सहमत हो जाती है तो, यथास्थिति, संकल्प के पारित होने पर या विधान परिषद द्वारा संकल्प से सहमत होने पर प्रवर्तन में नहीं रहेगा; और
(ख) राज्यपाल द्वारा किसी भी समय वापस लिया जा सकेगा।
स्पष्टीकरण - जहाँ विधान परिषद वाले राज्य के विधान मंडल के सदन, भिन्न-भिन्न तारीखों को पुन: समवेत करने के लिए। आहूत किए जाते हैं वहाँ इस खंड के प्रयोजनों के लिए छह सप्ताह की अवधि की गणना उन तारीखों में से पश्चातवर्ती तारीख से की जाएगी।
(3) यदि और जहाँ तक इस अनुच्छेद के अधीन अध्यादेश कोई ऐसा उपबंध करता है जो राज्य के विधानमंडल के ऐसे अधिनियम में जिसे राज्यपाल ने अनुमति दे दी है, अधिनियम किए जाने पर विधिमान्य नहीं होता तो और वहाँ तक वह अध्यादेश शून्य होगा :
परंतु राज्य के विधान-मंडल के ऐसे अधिनियम के, जो समवर्ती सूची में प्रगणित किसी विषय के बारे में संसद के किसी अधिनियम या किसी विद्यमान विधि के विरुद्ध है, प्रभाव से संबंधित इस संविधान के उपबंधों के प्रयोजन के लिए यह है कि कोई अध्यादेश, जो राष्ट्रपति के अनुदेशों के अनुसरण में इस अनुच्छेद के अधीन प्रख्यापित किया जाता है, राज्य के विधानमंडल का ऐसा अधिनियम समझा जाएगा जो राष्ट्रपति के विचार के लिए आरक्षित रखा गया और जिसे उसने अनुमति दे दी है।
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