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Written By WD

सिद्धि एवं चमत्कार

आध्यात्मिक चिंतन

yog sutra of Vibhutipad | सिद्धि एवं चमत्कार
-डॉ. बांद्रे
ND
महर्षि पतंजलि के विभूतिपाद में सिद्धियों का वर्णन पढ़ने को मिलता है, सिद्धि प्राप्त होना अर्थात साधना को कसौटी पर उतारना है, साधना के गहन प्रभाव का परिणाम सिद्धि होता है। अध्यात्म में इसको आत्मज्ञान प्राप्ति में बाधा या रुकावट माना है और साधक को सिद्धि में न उलझने का निर्देश शास्त्र एवं सिद्धता प्राप्त महर्षियों ने दिया है।

यदि साधक साधना को करते हुए सिद्धता को प्राप्त होता है या सिद्धि प्राप्त कर लेता है, परंतु उसे सार्वजनिक रूप से प्रकट नहीं करता है तब वह सिद्धि कहलाती है। यदि साधक सिद्धि का उपयोग सार्वजनिक करते हुए सामान्य लोगों के सामने प्रदर्शित करता है, तो उसे 'चमत्कार' कहा जाता है।

साधक यदि सिद्धि प्राप्त करने के पश्चात चमत्कार दिखाने के लिए प्रदर्शित करता है अथवा उस सिद्धि का उपयोग करके भौतिक लाभ प्राप्त करता है तब धीरे-धीरे उसकी सिद्धियाँ क्षीण होने लगती हैं अर्थात उसकी मन की स्थिति चंचल होती है और सिद्धि का प्रभाव घटने लगता है तथा चमत्कार संभव नहीं होता।

सिद्धियाँ मन पर पूर्ण नियंत्रण करने पर ही प्राप्त होती हैं तथा उसका प्रदर्शन न करना। उन सिद्धियों को चमत्कार के रूप में यदि प्रकट करते हैं तब व्यक्ति का अहम्‌ 'मैं' का भाव जागृत होकर पतन होने लगता है, इससे बचने के लिए चमत्कार का प्रदर्शन न करते हुए सिद्ध गुरु का मार्गदर्शन प्राप्त करना चाहिए अथवा ईश्वर की भक्ति में सिद्धि की शक्ति लगाना चाहिए, चमत्कार में न लगाएँ।

उज्जैन के सिंहस्थ या कुंभ मेले में चमत्कार दिखाने वाले योगी श्वास-प्रश्वास का अच्छा अभ्यास एवं शंखप्रक्षालण करने के बाद भूमिगत समाधि का चमत्कार लोगों को दिखाकर आर्थिक लाभ एवं अपनी सिद्धि का प्रदर्शन करते हैं। सामान्य लोग उन्हें महान योगी बताकर उनके 5-7 दिन लगातार गड्ढे में बैठकर समय और दिन बिताने पर प्रभावित होकर उनके इस चमत्कार को नमस्कार करते हैं। इससे लोगों को कोई लाभ नहीं होता और योगी का अहम्‌ बढ़कर उसकी साधना में विघ्न निर्माण होते हैं।

साधक को सिद्धि का प्रदर्शन चमत्कार के रूप में प्रदर्शित करने के दो प्रमुख कारण होते हैं, प्रथम वह चमत्कार से अपनी जीविका चलाता है और प्रसिद्धि भी प्राप्त करता है। यह एक प्रकार की लोकेक्षणा ही है, यह चित्त की वृत्ति है। यह वृत्ति बीज स्वरूप मन में सिद्धि की प्राप्ति के उपरांत सुप्त अवस्था में विद्यमान होती है, जो समय एवं अवसर के साथ उत्थान मारती है, इससे बचने के लिए भक्तियोग या गुरु का सहयोग चाहिए।

अब प्रश्न यह उठता है कि क्या सिद्धि प्राप्त व्यक्ति चमत्कार न दिखाते हुए उसका उपयोग किस प्रकार करेगा? अतः यह स्पष्ट है कि सिद्धि के उपरांत चमत्कार का प्रदर्शन करने से बचने के बाद उसे अपना समय आत्मज्ञान प्राप्ति में लगाकर समाज के व्यक्तियों को भी अध्यात्म के मार्ग पर चलने का सुझाव देकर उसे प्रायोगिक प्रशिक्षण देने में मददगार होना चाहिए, परिणामस्वरूप वह आत्मानंद को प्राप्त कर सकेगा। इस प्रकार संपूर्ण समाज का आध्यात्मिक विकास होने लगेगा।
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