मंगलवार, 23 अप्रैल 2024
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Written By Author अनिरुद्ध जोशी 'शतायु'

ऐसे जानें पूर्वजन्म को

पूर्वजन्म ज्ञान सिद्धि योग

Pre-natal yoga knowledge | ऐसे जानें पूर्वजन्म को
हमारा संपूर्ण जीवन स्मृति-विस्मृति के चक्र में फंसा रहता है। उम्र के साथ स्मृति का घटना शुरू होता है, जोकि एक प्राकृति प्रक्रिया है, अगले जन्म की तैयारी के लिए। यदि मोह-माया या राग-द्वेष ज्यादा है तो समझों स्मृतियां भी मजबूत हो सकती है। व्यक्ति स्मृति मुक्त होता है तभी प्रकृति उसे दूसरा गर्भ उपलब्ध कराती है। लेकिन पिछले जन्म की सभी स्मृतियां बीज रूप में कारण शरीर के चित्त में संग्रहित रहती है। विस्मृति या भूलना इसलिए जरूरी होता है कि यह जीवन के अनेक क्लेशों से मुक्त का उपाय है। 

योग में अ‍ष्टसिद्धि के अलावा अन्य 40 प्रकार की सिद्धियों का वर्णन मिलता है। उनमें से ही एक है पूर्वजन्म ज्ञान सिद्धि योग। इस योग की साधना करने से व्यक्ति को अपने अगले पिछले सारे जन्मों का ज्ञान होने लगता है। यह साधना कठिन जरूर है, लेकिन योगाभ्यासी के लिए सरल है।

कैसे जाने पूर्व जन्म को : योग कहता है कि ‍सर्व प्रथम चित्त को स्थिर करना आवश्यक है तभी इस चित्त में बीज रूप में संग्रहित पिछले जन्मों का ज्ञान हो सकेगा। चित्त में स्थित संस्कारों पर संयम करने से ही पूर्वन्म का ज्ञान होता है। चित्त को स्थिर करने के लिए सतत ध्यान क्रिया करना जरूरी है।

जाति स्मरण का प्रयोग : जब चित्त स्थिर हो जाए अर्थात मन भटकना छोड़कर एकाग्र होकर श्वासों में ही स्थिर रहने लगे, तब जाति स्मरण का प्रयोग करना चाहिए। जाति स्मरण के प्रयोग के लिए ध्यान को जारी रखते हुए आप जब भी बिस्तर पर सोने जाएं तब आंखे बंद करके उल्टे क्रम में अपनी दिनचर्या के घटनाक्रम को याद करें। जैसे सोने से पूर्व आप क्या कर रहे थे, फिर उससे पूर्व क्या कर रहे थे तब इस तरह की स्मृतियों को सुबह उठने तक ले जाएं।

दिनचर्या का क्रम सतत जारी रखते हुए 'मेमोरी रिवर्स' को बढ़ाते जाए। ध्यान के साथ इस जाति स्मरण का अभ्यास जारी रखने से कुछ माह बाद जहां मोमोरी पॉवर बढ़ेगा, वहीं नए-नए अनुभवों के साथ पिछले जन्म को जानने का द्वार भी खुलने लगेगा। जैन धर्म में जाति स्मरण के ज्ञान पर विस्तार से उल्लेख मिलता है।

क्यों जरूरी ध्यान : ध्यान के अभ्यास में जो पहली क्रिया सम्पन्न होती है वह भूलने की, कचरा स्मृतियों को खाली करने की होती है। जब तक मस्तिष्क कचरा ज्ञान, तर्क और स्मृतियों से खाली नहीं होगा, नीचे दबी हुई मूल प्रज्ञा जाग्रत नहीं होगी। इस प्रज्ञा के जाग्रत होने पर ही जाति स्मरण ज्ञान (पूर्व जन्मों का) होता है। तभी पूर्व जन्मों की स्मृतियां उभरती हैं।

सावधानी : सुबह और शाम का 15 से 40 मिनट का विपश्यना ध्यान करना जरूरी है। मन और मस्तिष्क में किसी भी प्रकार का विकार हो तो जाति स्मरण का प्रयोग नहीं करना चाहिए। यह प्रयोग किसी योग शिक्षक या गुरु से अच्‍छे से सिखकर ही करना चाहिए। सिद्धियों के अनुभव किसी आम जन के समक्ष बखान नहीं करना चाहिए। योग की किसी भी प्रकार की साधना के दौरान आहार संयम जरूरी रहता है।

अन्य तरीके :- 
सम्मोहन क्रिया : सम्मोहन क्रिया से जाना जा सकता है पुनर्जन्म : ब्रिटेन में भी जब कुछ लोगों को सम्मोहित किया गया तो उन्हें अपने पूर्व जन्म की घटनाएं स्मरण हो आईं। इसी तरह जब ब्रिटेन के एक व्यक्ति को सम्मोहित किया गया तो उसने बताया कि उसका पूर्व जन्म में नाम जान रैफल था। माना जाता है कि मनुष्य अगर प्रयास करे वर्तमान जीवन से पहले के 9 जन्मों तक के बारे में जान सकता। हालांकि इसके लिए एक प्रशिक्षित गुरु और कठिन अभ्यास की जरूरत पड़ती है। 
 
 
भारतीय ऋषियों ने सम्मोहन को योगनिद्रा कहा है। सम्मोहन की प्रकिया आप खुद भी कर सकते हैं इसे स्वसम्मोहन कहा जाता है। दूसरों के द्वारा भी आप सम्मोहन की स्थिति में पहुंच सकते हैं इसे परसम्मोहन कहा जाता है और तीसरा तरीका है योग है जिसमें त्राटक द्वारा व्यक्ति सम्मोहन की स्थिति में पहुंच जाता है। सम्मोहन के द्वारा आप गहरी निद्रा में पहुंच जाते हैं और अपने पूर्वजन्म की स्मृतियों को जाग्रत कर सकते हैं।
 
कायोत्सर्ग विधि : सम्मोहन के अलावा कायोत्सर्ग विधि द्वारा भी पुर्वजन्म को जाना जा सकता है। इस प्रक्रिया में व्यक्ति को अपनी काया यानी शरीर की चेतना से मुक्त होना पड़ता है। कायोत्सर्ग शरीर को स्थिर, शिथिल और तनाव मुक्त करने की प्रक्रिया है। इस प्रक्रिया में व्यक्ति की शरीर की चंचलता दूर होकर शरीर स्थिर होने लगता है। शरीर का मोह और सांसारिक बंधन ढीला पड़ने लगता है और शरीर एवं आत्मा के अलग होने का एहसास होता है। इसके बाद व्यक्ति पूर्वजन्म की घटनाओं के बीच पहुंच जाता है।
 
अनुप्रेक्षा विधि : सम्मोहन और कायोत्सर्ग के अलावा अलाव पूर्वजन्म की स्मृतियों में प्रवेश करने का एक तरीका अनुप्रेक्षा है। जैन परंपरा में बताया गया है कि अनुप्रेक्षा ऐसी प्रक्रिया है जिसके प्रयोग से व्यक्ति स्वतः सुझाव और बार-बार भावना से पूर्वजन्म की स्मृति में प्रवेश कर जाता है। अनुप्रेक्षा से भावधारा निर्मल बनती है। पवित्र चित्त का निर्माण होता है।
 
इसके अभ्यास से व्यक्ति ऐसी स्थिति में पहुंच जाता है कि उसे ज्ञात भी नहीं रहता कि वह कहां है। अतीत की घटनाओं का अनुचिंतन करते-करते वे स्मृति पटल पर अंकित होने लगती है और साधक उनका साक्षात्कार करता है।