शनिवार, 20 अप्रैल 2024
  • Webdunia Deals
  1. लाइफ स्‍टाइल
  2. »
  3. योग
  4. »
  5. आलेख
  6. हठयोग के स्वरूप का वर्णन
Written By WD

हठयोग के स्वरूप का वर्णन

hatha yoga | हठयोग के स्वरूप का वर्णन
- स्वामी ज्योतिर्मयानंद की पुस्तक से अंश

WD
हठयोग के नियमित अभ्यास से आप अपना खोया हुआ स्वास्थ्य और मानसिक शांति प्राप्त कर सकते हैं। आत्मा की गुप्त शक्तियों को उद्घाटित कर अपनी संकल्पशक्ति में वृद्धि कर सकते हैं और जीवन के सभी क्षेत्रों में सफलता प्राप्त कर आत्मसाक्षात्कार के उत्कृष्ट शिखर पर आसीन हो सकते हैं

1. सूर्य नमस्कार : प्रकाश पुँज ज्योतिर्मय सूर्यदेव की आराधना के साथ-साथ यह आसन मनोकायिक व्यायामों की एक अन्यतम प्रणाली है। इसकी कुल 12 स्थितियाँ हैं, जिससे तेजस्वी स्वाथ्य तथा कुशाग्र बुद्धि प्राप्त होती है तथा सभी प्रकार के दृष्टिदोष दूर होते हैं।

2. आसन : स्वास्थ्य लाभ और शारीरिक व्याधि से मुक्ति के लिए आसन किया जाता है। इनके अभ्यास से शरीर सशक्त, हल्का और चुस्त बन जाता है। शरीर से आलस्य, स्थूलता और मोटापा इत्यादि विकारों का विनाश हो जाता है। हठयोग आसनों के अभ्यास से शरीर शक्तिशाली, तेजोमय, दृढ़, हल्का और व्याधि रहित बन जाता है।

3. ध्यानासन : ध्यानाभ्यास के लिए प्रयुक्त किए जाने वाले आसनों को ध्यानासन कहा जाता है। कुछ अभ्यास के पश्चात्य योगी। किसी भी आसन में दो या तीन घंटे तक सहज ही रह सकता है। ध्यान, चिंतन, प्रार्थना और आराधना के लिए भी इन आसनों का उपयोग किया जा सकता है। शरीर में जीवनी शक्तियों का सम्यक संतुलन और सामंजस्य बनाने, मन को शांति तथा आलौकिक आनंद से परिपूर्ण करने में ये आसन अत्यंत सहायक होते हैं। इन से आप ध्यान, धारणा, और समाधि का सहज ढंग से अभ्यास कर सकते हैं।

4. मुद्रा : चूँकि ये मन को आत्मा के साथ संयुक्त करने में सहायता करती है इसलिए, इन्हें मुद्रा कहा जाता है। इनसे मानसिक एकाग्रता और स्थिरता प्राप्त होती है। मानसिक विक्षेप को रोक कर धारणा के अभ्यास में ये सहायक हैं।

5. बंध : चूँकि, शरीर के किसी अंग विशेष में ये प्राण को बाँधकर स्थिर करते हैं इसलिए इन्हें बंध कहा गया है। ये प्राण की उर्ध्व तथा अपान की अधोगति को रोकते हैं। कुंडलिनी योग की सिद्धियों की प्राप्ति में प्राण और अपान की धाराओं के परस्पर संयोजन में सहायक होते हैं।

6. षटकर्म : हठयोग के विभिन्न पहलुओं के अभ्यास के लिए ये शरीर को परिशोधित कर उन्हें यथा योग्य बनाते हैं। आसन तथा अन्य मनोकायिक व्यायामों की प्रभावोत्पादक शक्ति में वृद्धि करते हैं। इनसे सुख और शांति प्राप्त होती है।

7. प्राणायाम : मन तथा इंद्रियों के नियंत्रण के लिए आवश्यक प्राण शक्ति की इन व्यायामों से सुरक्षा होती है। प्राणायाम की सिद्धियों से प्रत्याहार की प्राप्ति होती है। इन व्याधियों का विनाश होता है और शरीर शक्ति तथा नवीन ऊर्जा से आप्लावित हो जाता है।

8. कुंडलिनी योग या षटचक्र भेदन : प्राण और अपान को मेरुदंड में स्थित रहस्यमय चक्रों की ओर निर्देशित किया जाता है। इस प्रकार से एक रहस्यमय शक्ति जिसे कुंडलिनी कहा गया है, जाग्रत हो ताती है जो सहस्रार की ओर निर्दिष्ट की जाती है। कुंडलिनी योग की साधना क्रम में साधक को अलौकिक सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं। अंतत: साधक ईश्वर से एकाकार हो जाता है।

पुस्तक : आसन, प्राणायाम, मुद्रा और बंध (Yaga Exercises For Health and Happiness)
लेखक : स्वामी ज्योतिर्मयानंद
हिंदी अनुवाद : योगिरत्न डॉ. शशिभूषण मिश्र
प्रकाशक : इंटरनेशनल योग सोसायटी