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आयशा की आत्महत्या.... जिम्मेदार कौन?

आयशा की आत्महत्या.... जिम्मेदार कौन? - Ayesha Suicide Case
स्वाति 'सखि' जोशी, पुणे
आयशा का आत्महत्या से पहले बनाया हुआ वीडियो सच में बहुत विचलित करने वाला है। एक युवा नवविवाहिता का दहेज के लिए प्रताड़ित होकर प्रेम में और विवाह में हार जाना और साबरमती के बीच धारे में कूदकर आत्महत्या कर लेना और मौत से पहले अपनी मानसिक अवस्था को वीडियो संदेश में व्यक्त करना एक तरफ जहां मन को व्यथित करता है, सहानुभूति से भर देता है, वहीं दूसरी ओर सीधा  मुंह पर कस के पड़ा एक जोरदार तमाचा सा महसूस होता है। 
                         
 
जाने कितने जमाने बदल गए, फिर भी वही कम उम्र की,प्रेम की कोमल भावनाओं से भरी,पढ़ी-लिखी नव-विवाहिता, जो अपने ससुराल में, नए घर, परिवेश और संबंधों में खुद को ढालने की कोशिश कर रही है, जतन कर रही है मगर रूढ़ियों, परंपराओं, कुरीतियों और झूठी आन-बान-शान और कठोर दंभ के सामने हार जाती है, हर बार, बार-बार....बस, नाम बदल जाता है।
 
 इस बार वह नाम आयशा है।आयशा हारकर नदी की गोद में समा गई। उसकी हार में हम सभी शामिल हैं। समाज, सामाजिक व्यवस्था, घर, परिवार, शिक्षण संस्थाएं, परिवेश, संस्कार .... सभी। वे सभी कारक जो एक लड़की को कोमल, भावुक , सहनशील, मितभाषी, और जाने कितने तथाकथित स्त्री सुलभ लक्षणों और विशेषणों से लदा हुआ देखना चाहते हैं। कहां तो विश्व भर में लिंग भेद, रंगभेद, शारिरिक संरचना के आधार पर व्यक्ति का परिचय, इन सभी व्यवस्थाओं को जड़ से खत्म करने के जोरदार और सफल प्रयत्न चल रहे हैं और कहां हम उन्हीं मान्यताओं में फंसे हुए हैं।
    
 
क्या यह नहीं हो सकता कि हम अपनी बच्चियों को यह सिखाएं कि प्रेम, प्यार,माया,ममता ये भावनाएं सिर्फ लड़कियों के लिए ही नहीं बनी हैं। ये तो प्रत्येक जीवित मनुष्य में होनी चाहिए। स्वाभाविक रूप से होती हैं। मगर इनका उचित संतुलन करना और समय आने पर इनपर नियंत्रण रखना आवश्यक है। 
 
इन भावनाओं को सर्वोपरि रखकर इतना महत्व कभी न दिया जाए कि ये आपकी कमजोरी बन जाए। आपके अपने जीवन से अधिक महत्वपूर्ण कुछ भी नहीं। उसे ही सुंदर, सुदृढ़ ,सफल और संपूर्ण बनाना होगा। मानसिक, शारिरिक और भावनिक स्तर पर मजबूत रहना होगा।  
 
हमारे देश की जो बेटियां सेना में अपनी सेवाएं दे रही हैं वे भी महिलाएं हैं, मां हैं, यदि वे स्त्रीत्व से जोड़ दी गई इन भावनाओं को अपनी कमजोरी बना लें तो क्या वे देश, समाज और मानवता की रक्षा कर सकेंगी?                                              
काश! आयशा पहले इतनी परिपक्व हो जाती कि अपने अस्तित्व को सर्वाधिक महत्वपूर्ण मानती, तब शायद वह अपने जीवन में आई इस परिस्थिति में खुद को शैक्षणिक, मानसिक, भावनात्मक और सामाजिक स्तर पर इतना मजबूत बनाती कि प्यार उसके सामने याचना करता और ज़माना उसपर गर्व करता.... काश!