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Written By ND

बारूद की धरती पर उगते सपनों के फूल

बारूद की धरती पर उगते सपनों के फूल -
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अफगानी ड्रेस डिजाइनर्स मीना शेरजॉय और जुलेखा शेरजाद का शुमार भले ही नामी लोगों की सूची में न हो, लेकिन वे दोनों एक नया अध्याय रच रही हैं। वे युद्ध की विभीषिका से उबर रहे अफगानिस्तान में सृजन की एक नई कोशिश कर रही हैं। दरअसल अफगानिस्तान जैसी जगह पर जहाँ महिलाओं की हैसियत बहुत ज्यादा अच्छी न हो तथा युद्ध ने सारे प्राणियों की साँस में जहर घोल दिया हो, वहाँ जीवन में फिर से रंग भरने की कवायद बहुत जरूरी है। इन दो महिलाओं ने यहाँ नए कीर्तिमान रचे हैं, नई परिभाषाएँ गढ़ी हैं, नए आयाम दिए हैं। साथ ही दिया है महिलाओं को उनके हिस्से का आसमान।

शेरजॉय अफगानिस्तान वर्ल्ड वाइड शॉपिंग
  उस देश में जहाँ सपनों में भी आदमी सिर्फ और सिर्फ रोटी देखता है, वहाँ फैशन या फैशन शो जैसे महँगे शब्दों का होना भर कल्पना से परे है, लेकिन ये दो महिलाएँ इस कल्पना को साकार कर रही हैं। यही नहीं फैशन कई लोगों को इज्जत की रोटी के नाम भी कमा रही हैं।      
ऑनलाइन मॉल की अध्यक्ष हैं। वहीं शेरजाद दक्ष ड्रेस डिजाइनर होने के साथ एक एनजीओ भी चलाती हैं। अब तक युद्ध के शिकार बने हजारों लोग तथा विधवा महिलाएँ इस एनजीओ से टेलरिंग, कम्प्यूटर तथा बेसिक बिजनेस स्किल्स से जुड़े प्रशिक्षण ले चुके हैं। इनका मुख्य मकसद महिलाओं को आर्थिक रूप से सुदृढ़ बनाना है। साथ ही ये अपनी अमूल्य परंपराओं तथा संस्कृति को भी इस कला के सहारे जीवित रखना चाहती हैं।

उस देश में जहाँ सपनों में भी आदमी सिर्फ और सिर्फ रोटी देखता है, वहाँ फैशन या फैशन शो जैसे महँगे शब्दों का होना भर कल्पना से परे है, लेकिन ये दो महिलाएँ इस कल्पना को साकार कर रही हैं। यही नहीं यही फैशन कई लोगों को इज्जत की रोटी के साथ दुनियाभर में नाम कमाने का मौका भी दे रहा है। सबसे बड़ी बात यह है कि वे स्वतंत्रतापूर्वक अपने दम पर काम कर रही हैं। वे अफगानी महिलाएँ जो स्वतंत्रता का ककहरा भी नहीं जानतीं, उन्हें इन महिलाओं ने हौसला देकर इस ककहरे को जानने का मौका दिया है।

इन दोनों के लिए इस फैशन के माने जरा अलग हैं। वे इसका उपयोग कई महिलाओं और उनके परिवारों को रोजी-रोटी से जोड़ने के लिए कर रही हैं। यही उनके देश की प्राथमिकता भी है। वे लोगों को पुनः अपनी विरासत के रंगों से जुड़ने का मौका भी दे रहीहैं। युद्ध के बीच कहीं खो चुके देश के पुराने हैंडीक्राफ्ट तथा टेक्सटाइल उद्योग को जीवित बनाए रखने के लिए ये दोनों जुटी हुई हैं। काबुल में शेरजॉय अपने बुटिक पर अफगानी महिलाओं के साथ मिलकर डिजाइन तैयार करती हैं तथा कपड़े बनाती हैं। वहीं शेरजाद काबुलकी अपनी गारमेंट कंपनी को सुचारु रूप से चलाने की कवायद में देश-विदेश की दूरियाँ तय करती हैं। शेरजॉय सालों पुरानी पारंपरिक अफगानी कढ़ाई, फैब्रिक तथा हैंडीक्राफ्ट को मेकओवर के साथ प्रस्तुत करती हैं। पिछले दिनों नई दिल्ली में आयोजित सार्क फैशन शो 2008, जो कि भारतीय विदेश मंत्रालय तथा इंडियन काउंसिल फॉर कल्चरल रिलेशंस द्वारा आयोजित किया गया, में मीना और जुलेखा ने भी डिजाइंस प्रस्तुत किए। दिल्ली के इस फैशन शो में वे अपने साथ पाँच अन्य लोगों को लेकर आई थीं।
मीना और जुलेखा के अनुसार- इनलोगों ने जिंदगी में कभी भी फैशन शो नहीं देखा है। अफगानिस्तान में सुंदर युवतियाँ तो बहुत हैं लेकिन उनके लिए आत्मविश्वास के साथ रैंप चलना एक अविश्वसनीय बात है। युद्ध से पूर्व के अफगानिस्तान में भी फैशन शो प्रस्तुत कर चुकीं शेरजाद कहती हैं- 'फैशन शो हमारी प्राथमिकता नहीं है, लेकिन दुनिया को यह पता चलना चाहिए कि हम भी अच्छा काम करते हैं।'

ये दोनों जानती हैं कि अपने देश में उन्हें अभी बिजली, शिक्षा, वित्त पोषण तथा कई आधारभूत कमियों के अलावा लोगों के भय के साथ भी लड़ना है। उनके पास काम के लिए आने वाली महिलाओं की सुरक्षा भी एक बड़ी समस्या है। इनमें से अधिकांश लोगों ने पहले कभी येकाम नहीं किया सो उनको काम सिखाना तथा उसमें दक्ष बनाना अलग जिम्मेदारी है। मगर इन सबसे लड़ना और आगे बढ़ना ही तो उनका मकसद है। वह भी ऐसे समय में, जब उनका देश अपने अस्तित्व के लिए संघर्षरत है। वे कहती हैं- फैशन एक जरिया है हमारे अस्तित्व को पहचान दिलाने का। इसके लिए हमें पश्चिम की नकल करने की भी जरूरत नहीं। अपनी परंपरा और संस्कृति को हम सही मूल्यों के साथ सहेज सकें यह ज्यादा जरूरी है। हम जानते हैं कि हमारे रास्ते कठिन हैं, लेकिन दुनिया में हर चीज चुनौती से जुड़ी है और हर काम में आगे बढ़ने केलिए रिस्क तो उठानी ही पड़ती है। हम सारी कठिनाइयों से लड़कर, दुनिया के सामने अफगानिस्तान का नया और रचनात्मक चेहरा लाना चाहते हैं।

युद्ध और ढेर सारी सामाजिक बेड़ियों में जीती अफगानी महिलाएँ हालात के सामने घुटने नहीं टेकतीं। वे सारी बंदिशों के बीच भी खुलकर जिंदगी का लुत्फ लेती हैं। बदलते वक्त और ग्लोबलाइजेशन के दौर का पूरा असर अफगानिस्तान की नौजवान महिलाओं पर दिखाई देता है।काबुल की कुछ दुकानों में सजे रंग-बिरंगे 'इवनिंग गाउन' देखकर तो कम से कम यही लगता है। भले ही इन गाउंस की कीमत के कारण इन्हें खरीद पाने का बूता हर किसी का न हो, लेकिन इन्हें पहनने की हसरत लोग जरूर पूरी करते हैं। बड़ी संख्या में युवतियाँ तथा महिलाएँ शादी या अन्य उत्सवों में इन्हें किराए से ले जाकर पहनती हैं, खुशी देने वाले ये कुछ घंटे उनके लिए जिंदगी भर की अमूल्य धरोहर बन जाते हैं। इसके अलावा ब्रांडेड डेनिम जैकेट्स, पुलोवर, स्कर्ट्‌स, स्टॉकिंग्स, ट्राउजर्स आदि भी शौक से पहने जाते हैं, जो अफगानिस्तानके शहर फैजाबाद के स्थानीय बाजार में आसानी से उपलब्ध होते हैं। बुर्कों में खुद को छुपाने की सामाजिक परंपरा के साथ ही अफगानिस्तान के कई शहरों-कस्बों में स्कर्ट, ट्राउजर या लाल रंग का हाईनेक पुलोवर पहनी वे आसानी से दिखाई देती हैं।