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Written By WD

मोटा होना नहीं है अपराध

Gain Wait is not Bad | मोटा होना नहीं है अपराध
- श्रीकांत शरण

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छब्बीस वर्षीय कुणाल शादी के लिए एक अच्छी लड़की की तलाश में था। तलाश के इसी दौर में उसके पास किसी लड़की की तस्वीरें और बायोडाटा आया। लड़की उसके दूर के एक रिश्तेदार की पहचान वाली भी निकली। कुणाल को प्रथम दृष्ट्या लड़की पसंद आई, क्योंकि वह पढ़ी-लिखी, नौकरीपेशा, प्रतिष्ठित परिवार की, गोरी और सुंदर थी (आखिर के दोनों गुण भारतीयों के लिए बहुत महत्वपूर्ण होते हैं)।

उसके रिश्तेदारों को जैसे ही इस बात का पता चला, उन्होंने बताया कि लड़की जैसी फोटो में लग रही है असल में वैसी नहीं है। वह इतनी स्लिम नहीं है बल्कि मोटी दिखती है और कई बार नापसंद की जा चुकी है।

साथ ही रिश्तेदारों ने यह सलाह भी दी कि भारी दहेज के लालच में न आएँ, क्योंकि यह केवल उस लड़की के अवगुण को ढाँकने के लिए दिया जाएगा। पर ऐसी स्थितियों के बावजूद कुणाल ने उस लड़की को देखने जाने का निश्चय किया। कुणाल ने यह जानने की कोशिश की कि लड़की की उसके बारे में सोच और अपेक्षाएँ क्या हैं।

बेकार का भेदभाव :
कुछ समय बाद रिश्तेदारों के साथ बातचीत के दौरान पता चला कि कुणाल द्वारा उस लड़की की सोच जानने की कोशिश करना मजाक का विषय बन चुका था। यहाँ तक कि यह बात उस लड़की के माता-पिता के लिए भी हास्यास्पद थी, क्योंकि वह मोटी थी और इसी कारण उसे कई बार ठुकराया गया था। ऐसी लड़की से उसकी अपेक्षाएँ जानना लोगों को ऐसा लगा, जैसे वह इसकी हकदार ही नहीं है। यह अनुभव कुणाल के लिए ही नहीं, बल्कि पूरे समाज के लिए प्रश्न खड़े कर देता है।

रुढ़िवादी सोच :
इंटरनेट पर किए गए एक सर्च में पता चला है कि इस रूढ़िवादी सोच और भेदभाव के कारण मोटे लोग समाज में कटे-कटे रह जाते हैं। इससे उनमें नकारात्मक भाव आ जाते हैं। मोटे लोगों को हर जगह भेदभाव का शिकार होना पड़ता है चाहे वे घर में हों या ऑफिस, स्कूल हो कॉलेज।

उन्हें आलसी, खाऊ और औसत दर्जे का समझा जाता है। मोटी लड़कियों के लिए यह एक कलंक की तरह होता है। उन्हें सामाजिक स्तर से लेकर शादी तक के लिए कई तरह की मानसिक प्रताड़ना से गुजरना पड़ता है।

ये सभी बातें भेदभाव को प्रदर्शित करती हैं खासकर महिलाओं के प्रति। इससे उनके आत्मसम्मान को धक्का लगता है और हीनभावना आ जाती है। इसमें फैशन क्षेत्र भी अहम है, क्योंकि उसमें स्लिम होने को ही तवज्जो दी जाती है।

कई विज्ञापनों में भी मोटापे का मजाक उड़ाया जाता है। यह बहुत पीड़ादायक है जबकि उनके मोटे होने के पीछे कई जेनेटिक कारण भी होते हैं। यह एक सामाजिक कलंक की तरह है, जो अकेलेपन, कुंठा और अव्यवस्थित खान-पान को जन्म देती है।

मोटा होना अपराध नहीं है, लेकिन मोटे लोगों को समाज और कई बार खुद उनके परिवार द्वारा अपराधबोध करवाया जाता है। इस वैचारिक रूढ़ि को निकाल फेंकना बहुत आवश्यक है, क्योंकि अंततः आप दुनिया में अपने गुणों, व्यवहार तथा कामों के लिए जाने जाते हैं। बाहरी सौंदर्य ज्यादा टिकाऊ नहीं होता, फिर यह भी जरूरी नहीं कि सुंदर व्यक्ति हमेशा अच्छा ही हो।

मन की सुंदरता सबसे अहम है। जरूरी है कि हम अपने समाज में उपस्थित मोटे लोगों के बीच सकारात्मक रूप से पेश आएँ और सहृदय व्यवहार करें, तभी उनका खुद के प्रति विश्वास सुदृढ़ हो सकेगा और वे सामान्य जीवन जी पाएँगे।