गुरुवार, 25 अप्रैल 2024
  • Webdunia Deals
  1. लाइफ स्‍टाइल
  2. »
  3. नायिका
  4. »
  5. आलेख
Written By WD

फैशन में जगह पाते असली लोग

फैशन में जगह पाते असली लोग -
- निकिता शेखावत

ND
ND
ज्यादातर लोग सोचते हैं कि फैशन का वास्तविक जीवन से कोई वास्ता नहीं। यह जगत जीवन की कठोर सच्चाइयों से दूर जीरो फिगर और अपने द्वारा तय पैमानों पर गठित शरीरों में अपना मुकाम तलाशता है। लेकिन आज के दौर में फैशन जगत एक नए दौर में प्रवेश कर चुका है।

अब इस जगत का विश्वास तय मानकों पर अपने शरीर को तराशे हुए मॉडलों पर नहीं है। आज यह आम जीवन जीने वाले और साधारण खाना खाने के बाद स्वतंत्र रूप से विकसित हुए शरीरों में अपने को नए अर्थों में खोज रहा है। फैशन जगत वास्तविकता के धरातल पर कदम रखने की फिराक में है। पिछले कुछ समय से यह जगत इससे पूरी तरह कट चुका था। बदन के लिए कपड़े नहीं, कपड़ों के लिए बदन तैयार किए जा रहे थे।

रैम्प पर बिखरेगी आम जीवन की छटा :
रैम्प पर अब वह दिन आ चुके हैं जब आम जिन्दगी से लाए गए वास्तविक बदन अपनी छटा बिखेरें। रैम्प पर नागिन-सी बल खाती चाल वाली बालाओं के दिन अब लदने को हैं। वाकई में सुंदर तो वही है जिसे हम मान लें। फैशन जगत इन्हीं मान्यताओं का निर्माण करता है। मानव मन की मान्यताएँ स्थिर नहीं रह पातीं।

मानव मन के इसी ऊबने की आदत में यह जगत अपने लिए लाभ के अवसर तलाशता है। मनुष्य की ऊब की प्रवृत्ति इस जगत को असीम लाभ प्रदान करती है। यह क्षेत्र लोगों को आधुनिकता के नित नए पैमाने उपलब्ध कराता है। फैशन डिजाइनरों का यह निर्णय स्वागतयोग्य है कि वे अपने पैमानों में ढील दे रहे हैं क्योंकि उनके द्वारा तय किए गए पैमाने आमजन के अवचेतन को कहीं न कहीं प्रभावित अवश्य करते हैं।

उनके तय आदर्श शरीरों के मॉडल कहीं न कहीं युवक-युवतियों की आंतरिक इच्छाओं में छिपे रहते हैं। भले ही ये मुद्दे सार्वजनिक बहस के मुद्दे न हों पर व्यक्तिगत जीवन को ये प्रभावित करते हैं।

PR
PR
पैदा हुए स्वास्थ्य संबंधी खतरे :
दुबली-पतली मॉडल सुंदर मानी जाती है। व्यावसायिक लाभ के लिए भूख को मारकर काया को मॉडलिंग योग्य बनाया जाता है। मॉडलों को छोड़ ही दें, उनको रोल-मॉडल के रूप में देखने वाली महिलाएँ जीरो फिगर पाने की तलाश में अपने साथ अत्याचार करती हैं। जीरो फिगर अमेरिकी कपड़ों का नाप है।

31.5- 23-32 को जीरो फिगर माना जाता है। औसत से कम वजन होते हुए भी वजन को और कम करने की सनक से एनोरेक्सिया जैसे स्वास्थ्य संबंधी खतरे उत्पन्न हुए। खून की कमी, सिरदर्द, चिड़चिड़ापन, थकान जैसी शिकायतें भी अत्यधिक छरहरी काया के साथ पैदा हुईं।

कई अध्ययनों से यह बात उजागर हुई है कि डाइटिंग का चक्कर युवाओं में स्वस्थ रहने संबंधी जरूरी तत्वों की कमी पैदा कर देता है। इससे बाल भी गिरने लगते हैं। त्वचा कांतिहीन हो जाती है। महिलाओं में उनसे जुड़ी दूसरी बीमारियाँ भी घर करने लगती हैं।

सरकारों को भी चिंता में डाला :
शरीर को इस हद तक दुबला करने की सनक ने सरकारों तक को चिंता में डाला है। फ्रांस सरकार तो रैम्प पर उतरने वाली मॉडलों का न्यूनतम वजन तक निर्धारित करने पर बाध्य हुई। साथ ही जीरो फिगर को प्रोत्साहित करते उत्पाद व विधियों पर प्रतिबंध भी लगाया गया।

भारतीय समाज का आदर्श करीना कपूर और मलाइका अरोरा खान जैसी जीरो फिगर हस्तियाँ बनी रही हैं। लेकिन अब फैशन जगत नई करवट ले रहा है जहाँ उसकी पुरानी मान्यताओं पर पुनर्विचार हो रहा है।

ND
ND
फैशन का मनोविज्ञान :
फैशन चाह से उत्पन्न होता है। किसी कपड़े को देखकर या किसी वस्तु को देखकर यदि हमारे मन में उसे पाने की चाह जग जाए तो यह बात फैशन का रूप लेती है। मानव मन में चाह जगाने में मीडिया और प्रचार का अहम रोल रहता है। मान्यताएँ विकसित होती हैं। अफ्रीका में झूले हुए होंठ भी सुंदरता की निशानी हो सकते हैं।

कहीं बाल ही सुंदरता हैं। कई कबीले आज भी ऐसे हैं जहाँ केश सहित स्त्री सुंदर नहीं मानी जाती। सुंदरता और फैशन के मायने भूगोल, क्षेत्र और परिस्थितियाँ तय करती हैं। ऐसी स्थिति में डिजाइनरों द्वारा यथास्थिति स्वीकार करना एक स्वास्थ्यप्रद कदम कहा जाएगा। यदि डिजाइनर सामान्य शरीरों को मान्यता देंगे तो छरहरी काया की मृगतृष्णा पर विराम लग सकेगा।

आज से पहले भी यानी 80 और 90 के दशक में क्लॉडिया शिफर, नाओमी कैंपबैल, सिंडी क्रॉफोर्ड, केट मॉस या लिंडा एवागेलिस्ता जैसी मॉडलों का जमाना था। ये सभी मॉडल जीरो फिगर के मापदंड के अनुसार दुबली नहीं थीं पर आज की दुबली मॉडलों में भी कोई इतनी नामी नहीं है।

हमेशा जवाँ दिखने की चाह :
आज के लोग हमेशा सुंदर और जवाँ दिखना चाहते हैं। इसके लिए वे हरसंभव कोशिश भी करते हैं। ऐसे में यदि डिजाइनरों का साथ उन्हें मिले तो क्या कहने! आज लोगों के इसी मनोविज्ञान को भुनाने की तैयारी में फैशन उद्योग नजर आ रहा है।

रियलिज्म का दौर :
रियलिज्म के चलते बड़े-बड़े डिजाइनर आज स्थापित मॉडलों से अलग मौजूदा दौर के युवा स्टाइलिश संगीतकारों, कलाकारों और अन्य क्षेत्रों के युवाओं के माध्यम से अपने डिजाइनों को व्यक्त करने को उत्सुक हो रहे हैं। पारंपरिक बड़े डिजाइनरों की मान्यता रही है कि उनके कपड़े दुबली-पतली मॉडलों पर ही अच्छे दिखते हैं पर अब यह धारणा बदल रही है।

इसी के चलते डिजाइनर अपने मित्रों और आम जीवन जीने वाले लोगों से अपने फैशन शो करवा रहे हैं। वे कह रहे हैं कि उनके डिजाइन को ये चेहरे सिक्स पैक से कहीं अधिक सेंसिबल बना सकते हैं। इनका कहना है कि इससे एक सामूहिक प्रभाव उत्पन्न होता है। विभिन्न पृष्ठभूमियों से आए लोग उनके डिजाइनों में जान डाल देते हैं।

डिजाइनर कह रहे हैं कि इसके लिए वे अपने मित्र, क्लाइंट्स और विभिन्न लोगों को चुनते हैं। अभी हाल ही में सलमान खान ने अपनी माँ सलमा के साथ कैटवॉक किया था। इसमें दूसरे सितारे भी थे जो प्रोफेशनल मॉडल नहीं हैं। इसके अलावा सांसद जयाप्रदा और फिल्म स्टार राजेश खन्ना ने रैम्प पर अपना जलवा बिखेरा था।

सामान्य लोगों के लिए अब डिजाइनर हर शेप में कपड़े ला रहे हैं। इसके लिए हर तरह का शेप उन्हें आम लोगों या अपने उन क्लाइन्ट्स के बीच मिल सकता है, जिनके लिए वे डिजाइन का निर्माण करते हैं। बाजार में पहली बार आई कोई चीज लोगों के मनोविज्ञान को समझकर ही लाई जाती है। अभी तक बाजार ट्रेंडसेंटरों के आधार पर चलता रहा है।

ट्रेंडसेंटर यानी ऐसा व्यक्ति जो अपनी लोकप्रियता, सौंदर्य और सफलता के आभामंडल के चलते आकर्षक और स्मार्ट व्यक्तित्व का पर्याय बन चुका हो। लेकिन शायद अब बाजार का मनोविज्ञशन करवट ले रहा है। अब इन ट्रेंडसेंटरों के साथ-साथ ऐसे व्यक्तियों को भी रैम्प पर उतारा जा रहा है, जो कद और काठी में सामान्य शेप के प्रतिनिधि हों।

आज का व्यक्ति किसी भी उद्योग में स्वयं को तलाश रहा है। उसी का असर फैशन उद्योग पर भी दिख रहा है। आम आदमी की स्वयं को हर जगह देखने की चाह को यह उद्योग भी भली-भाँति भुनाने के मूड में दिख रहा है। फैशन उद्योग का यह नया स्वरूप निश्चित रूप से उसे लाभ पहुँचाएगा। सबसे अच्छी बात यह है कि जन-सामान्य को उसके ही शेप में मनचाही डिजाइने प्राप्त हो सकेंगी।