वशिष्ठ पुराण और विश्‍वकर्मा समाज के मतानुसार माघ शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी को विश्‍वकर्मा जयंती आती है, जबकि अन्य मनानुसार कन्या संक्रांति के दिन। आओ जानते हैं 10 अनसुनी बातें।

ब्रह्मा के पुत्र धर्म तथा धर्म के पुत्र वास्तुदेव हुए। उन्हीं वास्तुदेव की अंगिरसी नामक पत्नी से विश्वकर्मा उत्पन्न हुए थे।

स्कंद पुराण के अनुसार धर्म के आठवें पुत्र प्रभास का विवाह देवगुरु बृहस्पति की बहन भुवना ब्रह्मवादिनी से हुआ। भगवान विश्वकर्मा का जन्म इन्हीं की कोख से हुआ।

वराह पुराण के अ.56 में उल्लेख मिलता है कि सब लोगों के उपकारार्थ ब्रह्मा ने बुद्धि से विचारकर विश्वकर्मा को पृथ्वी पर उत्पन्न किया।

भगवान विश्वकर्मा के मनु, मय, त्वष्टा, शिल्पी एवं दैवज्ञ नामक पांच पुत्र थे। राजा प्रियव्रत ने विश्वकर्मा की पुत्री बहिर्ष्मती से विवाह किया था।

विश्‍वकर्माजी ने ही देवी-देवताओं के महल, अस्त्र-शस्त्र बनाए थे। उन्होंने ही लंका, यमपुरी, द्वारिका, इंद्रप्रस्थ और सुदामापुरी का निर्माण किया था।

विश्वकर्माजी के अनेक रूप हैं- दो बाहु वाले, चार बाहु और दस बाहु वाले। इसके अलावा एक मुख, चार मुख एवं पंचमुख वाले विश्‍वकर्मा।

विश्वकर्मा के पांच अवतार है- 1.विराट विश्वकर्मा, 2.धर्मवंशी विश्वकर्मा, 3.अंगिरावंशी विश्वकर्मा, 4.सुधन्वा विश्वकर्म और 5.भृंगुवंशी विश्वकर्मा।

भारत में विश्वकर्मा समाज के लोगों को जांगिड़ ब्राह्मण समाज का माना जाता है।

विश्‍वकर्मा जी ने ही ऋषि दधिचि की हड्डियों से इंद्र के वज्र सहित दिव्यास्त्रों का निर्माण किया था।

विश्‍वकर्मा और उनके पुत्रों ने ही वायुयान, जलयान, कुआं, बावड़ी कृषि यन्त्र, आभूषण, मूर्तियां, भोजन के पात्र, रथ आदि का अविष्कार किया था।