भाद्रपद कृष्ण पक्ष तृतीया को कजरी तीज मनाई जाती है। इसे सातुड़ी तीज और कजली तीज भी कहते हैं, जानें क्यों रखते हैं इसका व्रत?
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इस दिन सुबह जल्दी सूर्योदय से पहले उठकर धम्मोड़ी यानी हल्का नाश्ता करने का रिवाज है।
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त्योहार उत्सव के रूप में मनाते हैं। पालकी को सजाकर उसमें तीज माता की सवारी निकालते हैं। इसमें हाथी, घोड़े, ऊंट, तथा कई लोक नर्तक और कलाकार हिस्सा लेते हैं।
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महिलाएं और लड़कियां इस दिन परिवार के सुख शांति की मंगलकामना से व्रत-उपवास रखती है।
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इस दिन नीम के वृक्ष के पूजन का विशेष महत्व है। नीमड़ी माता की पूजा करके नीमड़ी माता की कहानी सुनी जाती है।
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व्रत में भी एक समय आहार करने के पश्चात दिन भर कुछ नहीं खाया जाता है।
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शाम को चंद्रमा की पूजा कर कथा सुनी जाती है।
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इसके बाद सत्तू के स्वादिष्ट व्यंजन खाकर व्रत तोड़ा जाता है।