पिंड दान कब और कैसे किया जाता है?
श्राद्ध पक्ष में तर्पण के साथ ही पिंडदान कब और कैसे करते हैं, जानिए-
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कुतुप काल या मध्यान्ह काल में करते हैं पिंडदान। यह काल दोपहर का होता है।
गले हुए चावल में दूध, घी, गुड़ और शहद को मिलाकर गोल-गोल पिंड बनाए जाते हैं।
पहले तीन पिंड पिता, दादा और परदादा के। यदि पिता जीवित है तो दादा, परदादा और परदादा के पिता के नाम के पिंड बनते हैं।
सफेद वस्त्र पहन, जनेऊ को दाएं कंधे पर पहनकर, दक्षिण की ओर मुख करके उन पिंडों को पितरों को अर्पित करते हैं।
अगरबत्ती जलाकर पहले पिंड की चावल, कच्चा सूत्र, मिठाई, फूल, जौ, तिल और दही से पूजा करें।
पिंड को हाथ में लेकर कहें- 'इदं पिण्ड (पितर का नाम लें) तेभ्य: स्वधा' के बाद पिंड को अंगूठे से छोड़ें। इस तरह तीनों पिंड छोड़ें।
पिंडदान करने के बाद पितरों का ध्यान करें और पितरों के देव अर्यमा का भी ध्यान करें।
अब पिंडों को उठाकर ले जाएं और उन्हें नदी में प्रवाहित कर दें।