हिन्दू धर्म के नियम प्राचीन काल से चले आ रहे हैं। इन्हें मानेंगे तो संकटों से दूर रहेंगे।

प्रत्येक तीन माह में घर में गीता पाठ करना चाहिए।

प्रतिदिन संध्या वंदन, ध्यान या प्रार्थना करना चाहिए।

प्रतिदिन मंदिर जाना चाहिए परंतु गुरुवार के दिन मंदिर जाने को विशेष महत्व दिया गया है। मंदिर नियमों का पालन करें।

तेरस, चौदस, अमावस्या और पूर्णिमा को पवित्र और शांत बने रहें।

वर्ष के व्रतों में 4 नवरात्रि और श्रावण मास, माह के व्रतों में एकादशी और प्रदोष ही श्रेष्ठ है।

किसी भी प्रकार का व्यसन करने से देवता साथ छोड़ देते हैं।

तीर्थों में सर्वश्रेष्ठ चार धाम हैं। वहीं की यात्रा का शुभ फल मिलता है।

प्रतिदिन हनुमान पूजा से हर तरह के गृह, पितृ और सर्प दोष शांत रहते हैं।

घर में प्रतिदिन संध्याकाल में कपूर, धूप-दीप जलाएं या घी व गुड़ की धूप दें।

पूर्व, उत्तर और ईशान मुख का मकान ही उत्तम होता है।

गाय, कुत्ते, कौवे, चींटी, वृक्ष और पक्षियों को अन्न-जल देते रहें।

पंचयज्ञ का पालन करें- ब्रह्मयज्ञ, देवयज्ञ, पितृयज्ञ, वैश्वदेव यज्ञ और अतिथि यज्ञ। इससे देवऋण, ऋषिऋण और पितृऋण चुकता होता है।

प्रायश्चित करना, सेवा करना और 16 संस्कारों का पालन करना जरूरी है। इसी से मानव सभ्य बनता है।

वेद ही है धर्मग्रंथ। वेद है चार- ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद। वेदों का सार उपनिषद और उपनिषदों का सार गीता है।

दान दें लेकिन किसे और कहां यह जरूर सोचें। गोदान, अन्नदान, जलदान, वस्त्रदान, विद्यादान, अभयदान और धनदान श्रेष्‍ठ है।