छठ पर सूर्य देव और छठी मैया की पूजा होती है। छठ पूजा की परंपरा कैसे शुरू हुई, इस संदर्भ में कई कथाएं प्रचलित हैं
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श्रीराम ने रावण वध यानी ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति के लिए मुग्दल ऋषि से राजसूय यज्ञ करने का फैसला लिया।
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मुग्दल ऋषि ने माता सीता को कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को सूर्यदेव की उपासना करने का आदेश दिया।
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माता सीता ने छह दिनों तक सूर्यदेव की पूजा की थी। षष्ठी को सूर्य उपासने के बाद सप्तमी को व्रत का पारण कर सूर्योदय को अर्घ्य दिया।
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एक अन्य मान्यता अनुसार जब पांडव सारा राजपाठ जुए में हार गए, तब द्रौपदी ने छठ व्रत रखा था।
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द्रौपदी के व्रत से उनकी मनोकामना पूरी हुई थी और पांडवों को सबकुछ पुन: वापस मिल गया था।
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एक अन्य कथा अनुसार राजा प्रियव्रत को कोई संतान नहीं थी। तब महर्षि कश्यप ने पुत्रेष्टि यज्ञ करवाया।
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महारानी मालिनी को यज्ञाहुति के लिए बनाई गई खीर दी। खीर के प्रभाव से एक पुत्र को जन्म दिया परंतु वह शिशु मृत पैदा हुआ।
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प्रियव्रत पुत्र को लेकर श्मशान गए और पुत्र वियोग में प्राण त्यागने लगे। उसी वक्त षष्ठी देवी प्रकट हुई।
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देवी ने कहा, राजन तुम मेरा पूजन करो। राजा ने पुत्र इच्छा से देवी षष्ठी का व्रत किया और उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई।
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यह पूजा कार्तिक शुक्ल षष्ठी को हुई थी। तभी से छठ पूजा का प्रचलन प्रारंभ हुआ।
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