मुंशी प्रेमचंद के अनमोल विचार
मुंशी प्रेमचंद का हिन्दी साहित्य में विशेष स्थान है, आइए जानते हैं उनके विचार...
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आत्मसम्मान की रक्षा हमारा सबसे पहला धर्म और अधिकार है।
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सत्य की एक चिंगारी, असत्य के पहाड़ को भस्म कर सकती है।
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अंधी प्रशंसा अपने पात्र को घमंडी और अंधी भक्ति धूर्त बनाती हैं।
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अधिकार में स्वयं एक आनंद है, जो उपयोगिता की परवाह नहीं करता।
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माँ की ‘ममता’ और पिता की ‘क्षमता’ का अंदाज़ा लगा पाना असंभव है।
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सौभाग्य उन्हीं को प्राप्त होता है, जो अपने कर्तव्य-पथ पर अडिग रहते हैं।
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जिन वृक्षों की जड़ें गहरी होती हैं, उन्हें बार-बार सींचने की जरूरत नहीं होती।
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प्रेम एक बीज है, जो एक बार जमकर फिर बड़ी मुश्किल से उखड़ता है।
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. न्याय और नीति सब लक्ष्मी के ही खिलौने हैं। इन्हें वह जैसे चाहती है, नचाती है।
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मन एक डरपोक शत्रु है जो हमेशा पीठ के पीछे से वार करता है।
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