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Last Modified: सोमवार, 23 अगस्त 2021 (17:06 IST)

एक रामभक्त का दूसरे को अभूतपूर्व सम्मान

एक रामभक्त का दूसरे को अभूतपूर्व सम्मान - Unprecedented respect of one Ram devotee to another
-गिरीश पांडेय
दिग्गज भाजपा नेता, राजस्थान के पूर्व राज्यपाल और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने जो रिश्ता निभाया है, वह खुद में अकल्पनीय और अनुकरणीय है। पूर्व मुख्यमंत्री के गंभीर रूप से बीमार पड़ने से लेकर उनके अंतिम सांस लेने तक बेहतर से बेहतर इलाज कराने की तत्परता। अति व्यस्ततम दिनचर्या में भी समय-समय पर उनके पास खुद पहुंचकर हाल जानने की व्यग्रता। और, लाख प्रयास के बाद भी कल्याण सिंह का जीवन न बचा पाने पर उनकी अंतिम विदाई को इतिहास के पन्नों में दर्ज कराने की पहल। यह सब जब भी कल्याण सिंह का स्मरण दिलाएगा, उनके प्रति सीएम योगी के ये मनोभाव आप ही याद आ जाएंगे। 
 
पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह के बीमार कुछ होने पर उन्हें करीब डेढ़ महीने पूर्व लखनऊ के राम मनोहर लोहिया अस्पताल में भर्ती कराया गया। 4 जुलाई को उनकी स्थिति गंभीर होने की जानकारी मिलते ही उसी दिन पूर्वाह्न मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ उनका हालचाल लेने वहां पहुंच गए। उन्होंने डॉक्टरों से पूर्व मुख्यमंत्री के स्वास्थ्य के बारे में बातचीत की और बेहतर के लिए मुख्यमंत्री की पहल पर कल्याण सिंह को उसी दिन शाम तक  एसजीपीजीआई के क्रिटिकल केयर मेडिसिन विभाग में शिफ्ट किया गया।
 
तब से लेकर उनके 'स्मृति शेष' होने तक मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ इलाज कर रहे विशेषज्ञों से नियमित उनके स्वास्थ्य की जानकारी लेते रहे। नियमित अन्तराल पर वह उनका हालचाल लेने पीजीआई जाते रहे। डॉक्टरों को निर्देशित करते रहे कि इलाज में किसी प्रकार की कमी नहीं आनी चाहिए। कल्याण सिंह के स्वास्थ्य लाभ को लेकर सीएम योगी इतने संवेदनशील रहे कि शुक्रवार को जब उन्हें पता चला कि पूर्व मुख्यमंत्री की तबीयत अचानक अधिक बिगड़ गई है तो दिल्ली में पार्टी नेतृत्व से मुलाकात के बाद लखनऊ लौटते ही वह एयरपोर्ट से सीधे पीजीआई ही गए।
 
शनिवार को दोपहर बाद अपने सभी कार्यक्रमों को निरस्त कर वह कल्याण सिंह का हाल जानने पीजीआई गए और निधन की सूचना मिलते ही फौरन अस्पताल पहुंचे। कल्याण सिंह के बीमार होने पर उनके लिए जितना मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने किया, वह अकल्पनीय है। खुद कल्याण सिंह ने भी कभी ऐसा नहीं सोचा होगा। लेकिन सच यही है। लोग इसे स्वीकार भी कर रहे हैं। कह रहे हैं कि रस्मअदायगी के इस दौर में भी कुछ लोग अपने जैसे होते हैं। कभी-कभी तो उनसे भी बढ़कर। 
 
कल्याण सिंह से सीएम योगी का दिली जुड़ाव सिर्फ उनके इलाज तक ही सीमित नहीं रहा। उनके गोलोकवासी होने पर उनकी अंतिम विदाई की कमान योगी ने खुद संभाली। स्मृति शेष सिंह की यशकीर्ति को प्रतिष्ठित करते हुए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कैबिनेट में सहयोगी मंत्रियों की अलग अलग ड्यूटी लगाई है तो पूरी व्यवस्था की बागडोर खुद अपने हाथों में रखी। शनिवार रात कल्याण सिंह के पार्थिव शरीर के साथ वह उनके आवास पहुंचे। यहां उन्होंने कैबिनेट मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य को व्यवस्था देखने के लिए लगाया।
 
रविवार को कल्याण सिंह का पार्थिव शरीर पहले विधानभवन और फिर पार्टी कार्यालय पर अंतिम प्रणाम को रखा गया। सीएम योगी ने विधानभवन पर कैबिनेट मंत्रीद्वय सुरेश खन्ना और सिद्धार्थनाथ सिंह तथा प्रदेश कार्यालय पर भाजपा प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्रदेव सिंह को जिम्मेदारी दी थी। कल्याण सिंह का अंतिम संस्कार नरौरा (अलीगढ़) में सोमवार को संपन्न हुआ। योगी आदित्यनाथ शनिवार को ही वहां पहुंच गए है और अंतिम संस्कार से जुड़ी सभी तैयारियां अपनी देखरेख में कराईं। अलीगढ़ में उन्होंने स्वर्गीय सिंह की अंतिम विदाई की तैयारियों में कैबिनेट मंत्री सुरेश सिंह राणा को लगाया तो अतरौली (कल्याण सिंह का गांव) में अशोक कटारिया को।   
 
पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह और वर्तमान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के इस रिश्ते के पीछे शायद भगवान श्रीराम की मर्जी रही हो। बीमार पड़ने पर इलाज से लेकर दिवंगत होने पर ऐतिहासिक अंतिम विदाई तक, 'राम काजु' के एक सेवक ने दूसरे को अभूतपूर्व सम्मान दिया। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जिस गोरक्षपीठ (गोरखपुर) के पीठाधीश्वर हैं, उसकी तीन पीढ़ियां (ब्रह्मलीन महंत दिग्विजय नाथ, ब्रह्मलीन महंत अवैद्यनाथ और मुख्यमंत्री के रूप में मौजूदा पीठाधीश्वर योगी आदित्यनाथ) राम मंदिर आंदोलन से जुड़ी रहीं।
यकीनन पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय कल्याण सिंह, राम मंदिर आंदोलन के अग्रणी नेताओं में थे। मंदिर के लिए सत्ता छोड़ने में उन्होंने एक क्षण भी नहीं लगाया। राम मंदिर आंदोलन इस जुड़ाव की एक स्वाभाविक वजह है। राम मंदिर आंदोलन जब शीर्ष पर था तो अयोध्या से पास होने और इससे पीठ के जुड़ाव, इस आंदोलन के अगुआ परमहंस दास, अशोक सिंघल आदि से बड़े महाराज (ब्रह्मलीन महंत अवैद्यनाथ) के आत्मीय रिश्ते के कारण गोरखनाथ मंदिर इस आंदोलन का केंद्र बन गया था। मंदिर आंदोलन पीठ की इस केंद्रीय भूमिका के नाते राम के नाम पर सत्ता कुर्बान करने वाले कल्याण सिंह का खास लगाव था।
 
वह बड़े महाराज ब्रह्मलीन महंत अवैद्यनाथ का बहुत सम्मान करते थे। यही वजह है कि जब भी गोरखपुर जाते थे, बड़े महाराज से मिलने जरूर जाते थे। हर मुलाकात के केंद्र में राम मंदिर ही होता था। इस मुद्दे पर दोनों में लंबी चर्चा होती थी। दोनों का एक ही सपना था, उनके जीते जी अयोध्या में भव्य राम मंदिर का निर्माण हो। कल्याण सिंह इस मामले में खुश किस्मत रहे कि उनके जीते जी ही मंदिर का निर्माण शुरू हो गया। राम मंदिर निर्माण को लेकर उनका अटूट विश्वास था। इन्हीं रिश्तों के नाते योगीजी ने उनके इलाज और अंतिम संस्कार में उनके अपनों जैसी दिलचस्पी ली। (लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)
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