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Written By Author विकास सिंह
Last Updated : शनिवार, 5 फ़रवरी 2022 (17:42 IST)

जिन्ना से पाकिस्तान तक, मंदिर से मदरसे तक, UP में तुष्टिकरण बनाम ध्रुवीकरण की सियासत के हर रंग की INSIDE STORY

योगी आदित्यनाथ का तंज अखिलेश पर तंज, इनके नस-नस में 'तमंचावाद' दौड़ रहा है।

जिन्ना से पाकिस्तान तक, मंदिर से मदरसे तक, UP में तुष्टिकरण बनाम ध्रुवीकरण की सियासत के हर रंग की INSIDE STORY - Politics of polarization of voters on Pakistan in Uttar Pradesh elections
उत्तरप्रदेश में जैसे-जैसे वोटिंग की तारीख नजदीक आती जा रही है,वैसे-वैसे ध्रुवीकरण बनाम तुष्टिकरण की सियासत भी तेज होती जा रही है। बात चाहे सत्तारूढ़ दल भाजपा की हो या भाजपा को सत्ता से बेदखल कर फिर से सत्ता हासिल करने के लिए दौड़ मे शामिल मुख्य विपक्षी दल समाजवादी पार्टी की हो, दोनों ही दल और उसके नेता वोटरों के ध्रुवीकरण और तुष्टिकरण का कोई भी मौका हाथ से नहीं जाने देना चाह रहे है। तुष्टिकरण बनाम ध्रुवीकरण की इस सियासत में मंदिर से लेकर मदरसा तक जिन्ना से लेकर पाकिस्तान का मुद्दा जोर शोर से गूंज रहा है।

नया सियासी बखेड़ा सपा मुखिया अखिलेश यादव के एक इंटव्यू में पाकिस्तान को लेकर दिए गए बयान के बाद खड़ा हुआ है। ‘पाकिस्तान भारत का असली दुश्मन नहीं' बोलकर अखिलेश यादव ने मौके की ताक में बैठी भाजपा को बैठे-बैठाए ध्रुवीकरण की सियासत के लिए नया मुद्दा थमा दिया है।

उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने आज अखिलेश पर तंज कसते हुए कहा कि "जिन्हें पाकिस्तान दुश्मन नहीं लगता,जिन्ना दोस्त लगता है। उनकी शिक्षा-दीक्षा और दृष्टि पर क्या ही कहा जाए। वे स्वयं को समाजवादी कहते हैं, लेकिन सत्य यही है कि इनके नस-नस में 'तमंचावाद' दौड़ रहा है।"
 
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में पोलिंग से पहले जिन्ना के साथ पाकिस्तान के मुद्दें की एंट्री होने को सियासत के जानकार अलग-अलग नजरिए से देख रहे है। राजनीति के जानकार कहते है कि अखिलेश के पाकिस्तान को लेकर दिए बयान को भाजपा भुनाकर ध्रुवीकरण की सियासत को उफान पर ला सकती है,जिसमें वह माहिर भी है। वहीं ध्रुवीकरण की सियासत भाजपा के पक्ष में वोटिंग पर कितना असर डालेगी यह तो वक्त बिताएगा। पश्चिमी उत्तर प्रदेश जहां किसानों से जुड़े मुद्दें चुनावी राजनीति में हावी है वह किसी से छिपा नहीं है। वहीं राजनीति के जानकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मुस्लिम वोटरों को भूमिका को गेमचेंजर के रूप में देख रहा है और पाकिस्तान का मुद्दा मुस्लिम वोटरों के बिखराव को रोकने का सियासी हथियार बता रहे है। 
 
जिन्ना और पाकिस्तान पर यूपी चुनाव- उत्तर प्रदेश की राजनीति में पाकिस्तान और जिन्ना का मुद्दा पहली बार नहीं गर्माया है। 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले प्रदेश के अलीगढ़ से भाजपा सांसद सतीश गौतम ने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में जिन्ना की तस्वीर लगी होने को मुद्दा बनाया था। वहीं पिछले साल अक्टूबर में हरदोई में एक कार्यक्रम में सपा मुखिया अखिलेश यादव के जिन्ना को लेकर दिए बयान पर खूम राजनीति हुई थी। अखिलेश ने एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए जिन्ना को महात्मा गांधी के समकक्ष बताया था। अखिलेश ने कहा था कि "सरदार पटेल जी, राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, जवाहर लाल नेहरू, (मोहम्मद अली) जिन्ना एक ही संस्था में पढ़कर के बैरिस्टर बनकर आए थे. एक ही जगह पर पढ़ाई लिखाई की उन्होंने. वो बैरिस्टर बने. उन्होंने आज़ादी दिलाई. संघर्ष करना पड़ा हो तो वो पीछे नहीं हटे।"
 
अखिलेश ने वहीं उत्तर प्रदेश चुनाव में अखिलेश के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ने वाले सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के अध्यक्ष ओम प्रकार राजभर ने कहा था कि "अगर मोहम्मद अली जिन्ना को  भारत का पहला प्रधानमंत्री बनाया गया होता तो देश का विभाजन नहीं होता।" 
 
लखनऊ में वरिष्ठ पत्रकार नागेंद्र प्रताप उत्तर प्रदेश में ध्रुवीकरण की सियासत के पीछे के कारणों को बताते हुए कहते हैं कि असल में 7 साल केंद्र और 5 साल राज्य में सरकार में रहने के बावजूद भाजपा के पास पाकिस्तान और जिन्ना से आगे बढ़ ही नहीं पा रही है। पश्चिम यूपी में सब कुछ ध्रुवीकरण की राजनीति के आसपास केंद्रित हो गया है, जिसमें जिन्ना से लेकर पाकिस्तान तक अब्बाजान से लेकर कैराना तक सब कुछ शामिल है। 
 
भाजपा और सपा की चुनावी रणनीति का जिक्र करते हुए नागेंद्र प्रताप कहते हैं कि भाजपा की तुलना में अगर देखा जाए तो अखिलेश रणनीतिक रूप से यूपी की चुनावी बिसात पर धीरे-धीरे आगे बढ़ रहे है। वहीं भाजपा बैकफुट आती हुई दिख रही है। पिछले एक हफ्ते में पश्चिमी उत्तरप्रदेश से ध्रुवीकरण की सियासत अचानक से तेज हुई है। भाजपा कैराना से लेकर पाकिस्तान तक ध्रुवीकरण का हर कार्ड चल रही है।
 
नागेंद्र प्रताप आगे कहते हैं कि जब यूपी का चुनाव ऐसे मोड़ पर आकर खड़ा हो गया है तब अखिलेश को ऐसे बयान से बचना चाहिए। अखिलेश कोई फाउल प्ले और सेल्फ गोल नहीं बर्दाश्त कर सकते है इसलिए अखिलेश को इससे बचना चाहिए। भाजपा अपने गेम में माहिर है और उसको पता है कि किस बयान को कैसे प्रस्तुत करना है। अखिलेश को चुनाव के वक्त अपनी चुनावी बैंटिंग पर ध्यान देना चाहिए जब भाजपा की फील्डिंग ऐसी लगी है कि उनको आउट करने का मौका नहीं छोड़ना चाहती है। ऐसे में अखिलेश को अपने बयान के एक-एक शब्द पर ध्यान देना चाहिए।
 
नागेंद्र कहते हैं कि भाजपा अपनी तुष्टिकरण की राजनीति के आगे यह भी भूल गई है कि अखिलेश ने जो बातें कही है वह हमारी इंटनेशनल पॉलिटिक्स का हिस्सा रही है उसको भी झुठला दे रही है। चीन भारत का बड़ा दुश्मन है इस पर देश का स्टैंड एकदम साफ रहा है।