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Written By अनिरुद्ध जोशी
Last Modified: सोमवार, 12 अक्टूबर 2020 (23:13 IST)

Shri Krishna 12 Oct Episode 163 : युद्ध में जब अर्जुन कर देता है पितामह को घायल

Shri Krishna 12 Oct Episode 163 : युद्ध में जब अर्जुन कर देता है पितामह को घायल - Shri Krishna on DD National Episode 163
निर्माता और निर्देशक रामानंद सागर के श्रीकृष्णा धारावाहिक के 12 अक्टूबर के 163वें एपिसोड ( Shree Krishna Episode 163 ) फिर अर्जुन युद्ध में हाहारकर मचा देता है। यह देखकर दुर्योधन चिंतित होकर अर्जुन से युद्ध करने लगता है परंतु युद्ध में अर्जुन से हारता देखकर वह वहां से भाग जाता है। अर्जुन पुन: सेना का संहार करने लगता है।
 
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संपूर्ण गीता हिन्दी अनुवाद सहित पढ़ने के लिए आगे क्लिक करें... श्रीमद्‍भगवद्‍गीता
 
फिर युद्ध शिविर में द्रोण से भीष्म पितामह कहते हैं कि आचार्य ना तो दुर्योधन और ना ही धृतराष्ट्र मुझे कभी समझ पाए कि कौरवों का विनाश रोकने के लिए ही मैं युद्ध में सम्मिलित हुआ हूं। जिस दिन मेरा पतन होगा उस दिन से कुरुकुल का विनाश शुरू हो जाएगा। यह सुनकर कुलगुरु कृपाचार्य और गुरु द्रोणाचार्य कहते हैं कि नहीं पितामह! आप अपने पतन की बात करके हमें दु:खी मत कीजिये। हे गंगा पुत्र आपको तो इच्‍छा मृत्यु का वरदान प्राप्त है।
 
यह सुनकर भीष्म पितामह कहते हैं कि वही वरदान तो आज मुझे श्राप जैसा लग रहा है। इस समय में गहरी पीड़ा से गुजर रहा हूं। यह पीड़ा तो मृत्यु से भी भयंकर है। तब कुलगुरु कहते हैं कि दुर्योधन से कहकर हमें यह युद्ध रुकवा देना चाहिए। तब द्रोणाचार्य कहते हैं कि दुर्योधन नहीं मानेगा। इस पर भीष्म कहते हैं कि क्यों नहीं मानेगा, अवश्य मानेगा। यदि हमने युद्ध करने से इनकार किया तो उसकी आंखें खुल जाएगी। यह सुनकर द्रोणाचार्य कहते हैं कि यदि हमने युद्ध करने से इनकार किया तो हमारी बदनामी होगी। नहीं पितामह नहीं, शांति के सारे रास्ते बंद हो चुके हैं। हम चक्रव्यूह में फंस चुके हैं।... इस तरह तीनों के बीच कई तरह की चर्चा होती है। अंत में भीष्म पितामह कहते हैं कि अब तो केवल मृत्यु ही मुझे शांति दिला सकती है।
 
पुन: युद्ध आरंभ हो जाता है। अर्जुन पुन: कौरव सेना का संहार करने लग जाता है तो दुर्योधन कहता है कि पितामह अर्जुन हमारे रास्ते का कांटा है उसे किसी भी प्रकार से हटा दीजिये, फिर हम जीत जाएंगे, अवश्‍य जीत जाएंगे। यह सुनकर पितामह कहते हैं- दुर्योधन मैं अर्जुन के बाणों की आंधी को तो रोकूंगा परंतु मैं उसका वध नहीं करूंगा। सारथी हमारे युवराज की आज्ञा के अनुसार हमारा रथ अर्जुन के आगे ले चलो। 
 
उधर, श्रीकृष्‍ण अर्जुन को सावधान करते हुए कहते हैं कि हे पार्थ! पितामह तुमसे युद्ध करने आ रहे हैं यदि तुमने उनका सामना डटकर नहीं किया तो उनके नेतृत्व में द्रोणाचार्य, कृपाचार्य, शल्य और जयद्रथ पांडव की सेना का संहार कर देंगे। यह सुनकर अर्जुन कहता है कि केशव मैं भी पितामह से युद्ध करने पर उत्सुक हूं। 
 
फिर भीष्म पितामह और अर्जुन में भयंकर युद्ध होता है। उधर धृतराष्ट्र कहते हैं कि यह कृष्‍ण एक सारथी ही नहीं कुटिल रणनीतिज्ञ भी है। यदि कृष्ण की रणनीति के अनुसार अर्जुन पितामह के बाणों पर प्रतिबंध लगाने में सफल हो गया तो फिर हमारी सेना की रक्षा कौन करेगा?
 
फिर दुर्योधन गुरु द्रोणाचार्य, गुरु कृपाचार्य, महाराज शल्य और जयद्रथ को ‍भीष्म पितामह की सहायता के लिए जाने की आज्ञा देता है। भीष्म पितामह से युद्ध कर रहा अर्जुन सभी को देखकर कहता है- हे केशव! यह देखो गुरु द्रोणाचार्य, कृपाचार्य, जयद्रथ और शल्य सभी पितामह की सहायता करने को आ रहे हैं। यह सब जरूर दुर्योधन के इशारे पर हो रहा है परंतु दुर्योधन यह भूल रहा है कि विश्‍व के सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर के लिए इन सबको रोकना कोई कठिन काम नहीं। फिर अर्जुन सभी के बाणों का उत्तर देता है। यह देखकर भीष्म पितामह कहते हैं- वाह अर्जुन वाह।
 
उधर, जब पांडवों के सेनापति धृष्‍टदुम्न को यह पता चलता है तो वह अभिमन्यु और अन्य महारथियों को लेकर अर्जुन की सहायता के लिए पहुंच जाता है। फिर सभी में घमासान होता है। भीष्म अभिमन्यु को घायल कर देते हैं तो अर्जुन द्रोणाचार्य के रथ में आग लगा देता और कृपाचार्य का रथ तोड़ देता है।
 
संजय से युद्ध का वर्णन सुनकर धृतराष्ट्र चिंतित होकर पूछता है कि हे संजय! क्या ये युद्ध आज ही समाप्त हो जाएगा। भीम और अर्जुन के पराक्रम की गाथा सुनकर तो मुझे ऐसा लग रहा है कि आज ही के युद्ध में कौरवों का संपूर्ण विनाश हो जाएगा। 
 
उधर, शिवजी कहते हैं कि देवी पितामह भीष्म कितना ही जोर क्यों ना लगा लें परंतु वह गांडिवधारी अर्जुन पर विजय प्राप्त नहीं कर सकते क्योंकि अर्जुन को स्वयं भगवान श्रीकृष्ण का आशीर्वाद प्राप्त है। 
 
फिर श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि तुम्हारे अलावा कोई योद्धा नहीं है तो भीष्म पितामह का रोक सके। फिर श्रीकृष्ण अर्जुन को रणनीति बताते हैं। अर्जुन कहता है- जो आज्ञा वासुदेव। तब अर्जुन पितामह को घायल कर देता है तो धृतराष्‍ट्र बैचेन हो जाते हैं और कहते हैं संजय मैं बैचेन हो रहा हूं और मेरी बैचेनी का कारण है वासुदेव श्रीकृष्ण। तभी वहां पर गांधारी आ जाती है तो धृतराष्ट्र उन्हें भी युद्ध के समाचार सुनने का कहते हैं। गांधारी इसके लिए मना कर देती है और कहती हैं कि दोनों ओर से कोई भी मारा जाए परंतु मरेगें तो हमारे अपने ही। दोनों में इस विषय पर लंबी बात होती है।
 
उधर, युद्ध शिविर में भीष्म पितामह के घावों पर लेप लगाया जाता है। तब अर्जुन उस वक्त उनके शिविर में आकर भावुक होकर कहता है- बहुत दर्द हो रहा है ना पितामह? पितामह कहते हैं- अर्जुन तुम यहां? इस पर अर्जुन कहता है- मुझे क्षमा कर दीजिये पितामह। अर्जुन कहता है कि आप क्यों असत्य और अनीति का साथ दे रहे हैं?...फिर दोनों में भावुक संवाद होता है।
 
अंत में पितामह कहते हैं कि हे अर्जुन मेरी पीड़ा दूर करने के लिए मेरा वध कर दो। यह सुनकर अर्जुन और भी भावुक हो जाता है। मैं तुम्हें ज्येष्ठ पितामह होने के नाते अपना कर्तव्य पालन करने को कह रहा हूं। कल तुम युद्ध भूमि पर मुझे अपना शत्रु समझकर युद्ध करोगे। अपने बाणों को मेरे सीने पर चलाओगे और अपने बाणों को चलाते समय अपने हाथों को कभी कांपने नहीं दोगे। बस करो अर्जुन, मैं इससे अधिक कुछ और नहीं सुनना चाहता। तुम्हें मेरा आदेश हर स्थिति में मानना ही होगा और ये भी याद रखो की मुझे इच्छा मृत्यु का वरदान प्राप्त है और मेरी अंतिम इच्छा भी यही है कि मैं अपने पोते के बाणों से ही मरूं। जाओ पुत्र कल युद्ध भूमि पर मिलेंगे। जय श्रीकृष्णा। 
रामानंद सागर के श्री कृष्णा में जो कहानी नहीं मिलेगी वह स्पेशल पेज पर जाकर पढ़ें...वेबदुनिया श्री कृष्णा
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