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Written By अनिरुद्ध जोशी
Last Updated : बुधवार, 13 मई 2020 (19:18 IST)

अक्रूर जी कौन हैं, जानिए कथा

Akrur ji ki Kahani | अक्रूर जी कौन हैं, जानिए कथा
मथुरा में कंस के अत्याचर बढ़ने के बाद अक्रूरजी ने गुप्त रूप से सभी वृष्णीवंशी, कुकुरवंशी आदि यादव सरदारों को एकत्रित करने के कार्य करते हैं। वे ही वसुदेवजी की पहली पत्नी माता रोहिणी को मथुरा से निकालकर गोकुल में माता यशोदा के यहां छोड़कर आते हैं।
 
 
1. अक्रूरजी भगवान श्रीकृष्ण के काका थे। उन्हें वसुदेवजी का भाई बताया गया है। इनकी माता का नाम गांदिनी तथा पिता का नाम श्वफल्क था। अक्रूर की पत्नी का नाम उग्रसेना था। अक्रूरजी कंस के पिता उग्रसेन के दरबार में एक दरबारी के रूप में कार्य करते थे। जब कंस ने उग्रसेन को बंदी बना लिया तो अक्रूरजी की शक्तियां कमजोर हो गई। लेकिन अक्रूरजी वहां से भागे नहीं और उन्होंने गुप्त रूप से उग्रसेन के समर्थकों को एकजुट बनाए रखा।
 
2. जब नारद मुनि द्वारा कंस को यह पता चला कि कृष्ण देवकी का तथा बलराम रोहिणी का पुत्र है तो उसने अपनी योजना के तहत अक्रूरजी को एक समारोह में आने का निमं‍त्रण देकर दोनों ही बालक को बुलाया। अक्रूरजी श्रीकृष्ण और बलराम को वृंदावन से मथुरा लेकर गए थे जहां दोनों ने मिलकर कंस का वध कर दिया था। दोनों ही अक्रूरजी को अपना गुरु मानते थे। कंस वध के बाद श्रीकृष्ण अक्रूरजी के घर गए।
 
3. मथुरा और वृन्दावन के बीच में ब्रह्मह्रद नामक स्थान पर भगवान श्रीकृष्ण ने अक्रूरजी को दिव्य दर्शन दिए थे। 
 
4. ब्रह्म एवं श्रीमद्भागवत पुराण अनुसार कंस वध के बाद श्रीकृष्ण ने अक्रूर को हस्तिनापुर भेजा था। अक्रूर ने लौटकर बताया कि किस तरह धृतराष्ट्र के पुत्र पांडवों के प्रति अन्याय कर रहे हैं। अक्रूरजी ने श्रीकृष्ण की बुआ कुंती के बारे में भी बताया। कुंती सबसे अधिक श्रीकृष्ण को याद करती थी।
 
5. कहते हैं कि सत्राजित की स्यमंतक मणि अक्रूरजी के पास ही थी। वे इसे लेकर काशी चले गए थे। अक्रूर जी के चले जाने के कारण द्वारका में अकाल पड़ गया था तो श्रीकृष्ण के कहने पर वे वापस आए थे। कहते हैं कि यह मणि जिसके पास रहती है वहां समृद्धि और खुशियां रहती हैं। श्रीकृष्ण के उपर स्यमंतक मणि चोरी का आरोप था। जब अक्रूरजी वो मणि लेकर आए तब उन्होंने इसे सार्वजनिक करके अपने ऊपर लगे आरोप का खंडन किया था।
 
6. अक्रूर की मृत्यु के उपरांत इनकी पत्नियां वन में तपस्या करने के लिए चली गईं थीं। श्रीकृष्ण के पौत्र वज्र ने उन्हें रोकने का प्रयास किया था।