मंगलवार, 23 अप्रैल 2024
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मनुस्मृति से पुरुषों के लिए पांच बातें...

मनुस्मृति से पुरुषों के लिए पांच बातें... - knowledge of manusmriti
मनुस्मृति को सबसे ज्यादा गलत समझा गया और इसकी व्याख्या करने वालों ने इसके अर्थ को अनर्थ करके समाज को तोड़ने का ही कार्य किया। गुलामी के काल में पुराणों और मनुस्मृति के श्लोकों के साथ छेड़छाड़ कर उसको नए सिरे से छपवाकर समाज में प्रचारित किया जाता रहा और यह क्रम आज भी जारी है। यहां यह बात ध्यान रखने कि है कि मनुस्मृति हिन्दुओं का धर्मग्रंथ नहीं है। धर्मग्रंथ तो एकमात्र वेद, वेदों का सार उपनिषद और उपनिषदों का सार गीता है।
 
गीता प्रेस गोरखपुर और गायत्री परिवार से प्रकाशित मनुस्मृति पर भरोसा किया जा सकता है। आओ हम जानते हैं कि मनुस्मृति में पुरुषों की समझाइश के लिए कौन-सी पांच बातें लिखी गई है।
आपको यह पता ही होगा कि जब भरी सभा में द्रौपदी का चीरहरण हो रहा था, तब पांचों पांडव मौन थे। भीष्म, द्रोण और धृतराष्ट्र भी मौन थे। आप यह भी जानते हैं कि सभी का कुल नष्ट हो गया। यदि किसी घर या राष्ट्र में स्त्री का अपमान होता है या उसका चीरहरण होता है, तो वह दिन दूर नहीं जबकि वह घर, परिवार, समाज या राष्ट्र नष्ट हो जाए। ऐसे परिवार को बचाने वाले भी मारे जाते हैं।

स्त्री का अपमान : आजकल यह देखा गया है कि हिन्दू समाज में तलाक, आत्महत्या और लिव इन रिलेशनशिप का प्रचलन बढ़ रहा है। आधुनिकता और स्त्री स्वतंत्रता के नाम पर सबकुछ होने लगा है। कोई यह जरूर कहना चाहेगा कि एकता कपूर या ऐसी ही किसी विकृ‍त मानसिकता के निर्माता-निर्देशकों के सीरियल देखकर कई लोगों के दिमाग अब खराब हो चले हैं।
हालांकि इन विकृत मानसिकता वालों की फिल्में देखकर भी कोई यह कहना चाहेगा कि समाज मॉडर्न हो रहा है या समाज में जो प्रचलित है हम वही दिखा रहे हैं...आपकी सोच पिछड़ी हुई है तो हम क्या करें। खैर..सिगरेट और बीयर नहीं पीना सोच का पिछड़ापन है, जो आजकर आम हो चला है? अब तो लड़कियां इसे करने लगी है। कोई लड़की अपनी सास को मां समान नहीं मानती और कोई सास अपनी बहू को बेटी समान नहीं मानती। किसी के पैर छूना तो अब प्रचलन में रहा नहीं। अधिकर युवा अब नशे कि गिरफ्त में होकर दिग्भ्रमित है। खैर...यह सब लिखने का आशय यह है कि...
 
मनुस्मृति (4.180) में लिखा है कि एक समझदार व्यक्ति को परिवार के सदस्यों–  माता, पुत्री और पत्नी आदि के साथ बहस या झगड़ा नहीं करना चाहिए।... क्यों नहीं करना चाहिए ये आगे पढ़ें...

यदि आप समझदार नहीं हैं तो निश्‍चित ही आप अपने घर की महिलाओं से झगड़ा करेंगे। जबकि आज जरूरत किसी को कुछ समझाने की नहीं बल्कि समझने की है। मनस्मृति ही नहीं हिन्दुओं के सभी ग्रंथों में यह लिखा है कि...  
 
जिस समाज या परिवार में स्त्रियों का आदर-सम्मान होता है, वहां देवता अर्थात् दिव्यगुण और सुख-समृद्धि निवास करते हैं और जहां इनका आदर-सम्मान नहीं होता, वहां अनादर करने वालों के सभी काम निष्फल हो जाते हैं। भले ही वे कितना ही श्रेष्ठ कर्म कर लें, उन्हें अत्यंत दुखों का सामना करना पड़ता है।- मनुस्मृति (3.56)

यदि आप अपने घर में सुख, शांति और समृद्धि चाहते हैं तो मनुस्मृति में लिखे वचनों को हमेशा याद रखें अन्यथा आप अपना परिवार ही नहीं खोएंगे जीवन भी नष्ट कर लेंगे।
 
'जिस कुल में स्त्रियां अपने पति के गलत आचरण, अत्याचार या व्यभिचार आदि दोषों से पीड़ित रहती हैं, वह कुल शीघ्र नाश को प्राप्त हो जाता है और जिस कुल में स्त्रीजन पुरुषों के उत्तम आचरणों से प्रसन्न रहती हैं, वह कुल सर्वदा बढ़ता रहता है।'- मनुस्मृति (3.57)

जिस परिवार या समाज में धर्म और ज्ञान का अभाव होता है, तो वहां जब लड़की मां के घर में रहती है, तो उसे पराए घर की माना जाता है और जब लड़की पति के घर जाती है तो सास उसे पराए घर से आई मानती है। ऐसा सोचने वाले लोग ही समाज को तोड़ने वाले लोग होते हैं।
 
'अनादर के कारण जो स्त्रियां पीड़ित और दुखी: होकर पति, माता-पिता, भोजाई, भाई, देवर आदि को शाप देती या कोसती हैं:- वह परिवार ऐसे नष्ट हो जाता है जैसे पूरे परिवार को विष देकर मारने से, एक बार में ही सब के सब मर जाते हैं:- मनुस्मृति (3.58)

पिता, भाई, पति या देवर को अपनी कन्या, बहन, स्त्री या भाभी को हमेशा यथायोग्य मधुर- भाषण, भोजन, वस्त्र, आभूषण आदि से प्रसन्न रखना चाहिए और उन्हें किसी भी प्रकार का क्लेश नहीं पहुंचने देना चाहिए। - मनुस्मृति (3.55)
 
वहीं परिवार सुखी और समृद्ध होता हैं ‍जहां कि महिलाओं को हर प्रकार से खुश रखा जाता है। महिलाओं की इच्छा को जानकर उनका समुचित सम्मान और समाधान करना चाहिए। जो महिला घर-परिवार में सदा मुस्कराती और हसती रहती है वहां शांति, खुशहाली और लक्ष्मी की कृपा बनी रहती है। 
 
ऐश्वर्य की कामना करने वाले मनुष्यों को हमेशा सत्कार और उत्सव के समय में स्त्रियों का आभूषण, वस्त्र और भोजन आदि से सम्मान करना चाहिए। - मनुस्मृति (3.59)