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Written By अनिरुद्ध जोशी
Last Updated : सोमवार, 18 फ़रवरी 2019 (12:03 IST)

हिन्दू कुल : गोत्र और प्रवर क्या है, जानिए-2

हिन्दू कुल : गोत्र और प्रवर क्या है, जानिए-2 - hindu gotra
।।यजन्ते सात्त्विका देवान्यक्षरक्षांसि राजसाः।
प्रेतान्भूतगणांश्चान्ये जयन्ते तामसा जनाः॥-गीता

अर्थ : सात्त्विक पुरुष देवों को पूजते हैं, राजस पुरुष यक्ष और राक्षसों को तथा अन्य जो तामस मनुष्य हैं, वे प्रेत और भूतगणों को पूजते हैं॥4॥

भावार्थ : वैदिक धर्म द्वारा बताए गए देवी और देवताओं को छोड़कर जो व्यक्ति यक्ष, पिशाच, राक्षस आदि को पूज रहे हैं वे सभी रजोगुणी हैं और जो लोग भूत-प्रेत, अपने पूर्वजों, गुरुओं आदि को पूज रहे हैं वे तमोगुण हैं। ये सभी मरने के बाद उन्हीं के लोकों में जाकर उनके जैसे ही हो जाएंगे।

विवाह आदि संस्कारों में और साधारणतया सभी धार्मिक कामों में गोत्र प्रवर और शाखा आदि की आवश्यकता हुआ करती है। इसीलिए उन सभी का संक्षिप्त विवरण आवश्यक हैं।

पहले वर्ण, जाति या समाज नहीं होते थे। समुदाय होते थे, कुल होते थे, कुटुम्ब होते थे। कुल देवता होते थे। एक कुटुम्ब के लोग दूसरे कुटुम्ब में विवाह करते थे। विवाह करते वक्त सिर्फ गोत्र की पूछताछ होती थी। विवाह के मंत्रों में आज भी गोत्र का उच्चारण करना होता है। आजकल हम जो जातिभेद, ब्राह्मण, क्षत्रिय आदि समाज के अवाला हजारों भेद देखते हैं वे सभी पिछले 1800 वर्षों के संघर्ष और गुलामी का परिणाम है। इसका अलावा यह लंबी परंपरा का परिणाम है।

कुल देवता : प्रत्येक कुल और कुटुम्ब के लोगों के कुल देवता या देवी होती थी। उनके कुलदेवी के खास स्थान पर मंदिर होते थे। सभी कहीं भी रहे लेकिन वर्ष में एक बार उनको उक्त मंदिर में आकर धोक देना होती थी। कुलदेवी के मंदिर से जुड़े होने से उस कुल का व्यक्ति कई पीढ़ीयों के बाद में भी यह जान लेता था कि यह मेरे कुल का मंदिर या कुल देवता का स्थान है।

इस तरह एक ही कुल समूह के लाखों लोग होने के बावजूद एक स्थान और देवता से जुड़े होने कारण अपने कुल के लोगों से मिल जाते थे। कुल मंदिर एक तरह से खूंटे से बंधे होने का काम करता था और उसके देवी या देवता भी इस बात का उसे अहसास कराते रहते थे कि तू किस कुल से और कहां से है। तेरा मूल क्या है। उस दौर में किसी भी व्यक्ति को अपने मूल को जानने के लिए इससे अच्छी तकनीक ओर कोई नहीं हो सकती थी। आज भी हिन्दुओं के कुल स्थान और देवता होते हैं। यह एक ही अनुवांशिक संवरचना के लोगों के समूह को एकजुट रखने की तकनीक भी थी।

आजकल ये संभव है कि किसी खुदाई में मिली सौ साल पहले मरे किसी इंसान की हड्डी को वैज्ञानिक, प्रयोगशाला में ले जाकर उसके डीएनए की जांच करें और फिर आपके डीएनए के साथ मेलकर के बता दें कि वे आपके परदादा की हड्डी है या नहीं। इसी तरह उस दौर में व्यक्ति खुद ही जान लेता था कि मेरे परदादा के परदादा कहां और कैसे रहते थे और वे किस कुल के थे।

इसी तरह हजारों साल तक लोगों ने अपने तरीके से अपने जेनेटिक चिह्नों और पूर्वजों की याद को गोत्र और कुल के रूप में बनाए रखा। इन वंश-चिह्नों को कभी बिगड़ने नहीं दिया, कभी कोई मिलावट नहीं की ताकि उनकी संतान अच्छी होती रहे और एक-दूसरे को पहचानने में कोई भूल न करें। आज भी हिन्दू यह कह सकता है कि मैं ऋषि भार्गव की संतान हूं या कि मैं अत्रि ऋषि के कुल का हूं या यह कि मैं कश्यप ऋषि के कुटुम्ब का हूं। मेर पूर्वज मुझे उपर से देख रहे हैं।

रेयान् स्वधर्मो विगुणः परधर्मात् स्वनुष्ठितात् ।
स्वधर्मे निधनं श्रेयः परधर्मो भयावहः ॥३५॥-गीता


यदि आपके कुल का एक भी व्यक्ति अच्छा निकल गया तो समझे की वह कुल तारणहार होगा और यदि बुरा निकल गया तो वह कुलहंता कहलाता है। कुलनाशक के लिए गीता में विस्तार से बताया गया है कि वह किस तरह से मरने के बाद दुर्गती में फंसकर दुख पाता है। जिन लोगों ने या जिनके पूर्वजों ने अपना कुल, धर्म और देश बदल लिया है उनके लिए 'अर्यमा' और 'आप:' नामक देवों ने सजा तैयार कर रखी है। मृत्यु के बाद उन्हें सच का पता चलेगा। जारी...