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12 रहस्यमयी गुफा मंदिर, जानिए उनका रहस्य

12 रहस्यमयी गुफा मंदिर, जानिए उनका रहस्य | Hindu cave mandir
आज से ढाई हजार वर्ष पूर्व अखंड भारत में कई विशालकाय और चमत्कारिक वास्तु के अद्भुत मंदिरों का निर्माण हुआ। उनमें से कुछ मंदिर आज भी उसी अवस्था में मौजूद हैं तो कुछ अब खंडहर बन चुके हैं और अधिकतर का मुगलकाल में अस्तित्व मिटा दिया गया। मंदिरों की अद्भुत निर्माण कला को देखकर आश्चर्य होता है। आज के आधुनिक विज्ञान को संभवत: इस तरह के मंदिर को बनाने में काफी मशक्कत करना पड़े।

अखंड भारत में एक ओर जहां खगोलशास्त्र अनुसार उचित स्थान देखकर भव्य मंदिरों का निर्माण किया गया, तो दूसरी ओर किसी देवी या देवता से जुड़े महत्वपूर्ण स्थान पर मंदिरों का निर्माण किया गया। लेकिन इसके अलावा ऐसे मंदिरों का निर्माण भी किया गया, जहां मुख्‍य रूप से सिर्फ ध्यान और तप किया जा सके। ऐसे ही मंदिरों में कुछ गुफा मंदिर हैं जिनके रहस्य के बारे में हम जानेंगे। हमने ऐसे ही 12 गुफा मंदिरों के बारे में पता लगाया है जिनके रहस्य पर अभी भी पर्दा है।

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हिंगलाज माता मंदिर : पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत के जिला लसबेला में हिंगोल नदी के किनारे पहाड़ी गुफा में स्थित माता पार्वती का हिंगलाज मंदिर अतिप्राचीन है। इसी तरह पाकिस्तान के सिन्ध प्रांत के शहर नगरपारकर में माता कालिका का एक और प्राचीन और रहस्यमय गुफा मंदिर है।

हिंगलाज माता का यह मंदिर माता पार्वती के 51 शक्तिपीठों में से एक है। इस मंदिर के महत्व का उल्लेख देवीभागवत पुराण सहित अन्य पुराणों में भी मिलता है।

भारत विभाजन के बाद पाकिस्तान के कई ऐतिहासिक और प्राचीन मंदिरों को नष्ट कर दिया गया। बाद में 1992 में बाबरी ढांचा गिराए जाने के बाद पाकिस्तान में करीब 1,000 मंदिर ध्वस्त किए गए। आज भी अल्पसंख्यक हिन्दू आबादी मंदिरों पर हमलों से परेशान और दुखी हैं, लेकिन पाकिस्तान की सरकार इस पर चुप्पी साधे रखती है।

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गोआ गोवा गजह गुफा (बाली, इंडोनेशिया) : इंडोनेशिया के द्वीप बाली द्वीप पर हिन्दुओं के कई प्राचीन मंदिर हैं, जहां एक गुफा मंदिर भी है। इस गुफा मंदिर को गोवा गजह गुफा और एलीफेंटा की गुफा कहा जाता है।

19 अक्टूबर 1995 को इसे विश्व धरोहरों में शामिल किया गया। यह गुफा भगवान शंकर को समर्पित है। यहां 3 शिवलिंग बने हैं। देश-विदेश से पर्यटक इसे देखने आते हैं।

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वराह गुफाएं : तमिलनाडु में चेन्नई के कोरोमंडल के पास महाबलीपुरम में स्थित है वराह गुफा। वराह गुफा में भगवान विष्णु का मंदिर है।

चट्टानों को काटकर की गई कलाकारी इतनी सुंदर है कि इसे यूनेस्को की विश्व विरासत का हिस्सा बनाया गया है। वराह गुफा पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र है। इस गुफा के अलावा सित्तनवसल और नार्थमलाई गुफा भी काफी फेमस है।

अगले पन्ने पर चौथा गुफा मंदिर...
एलीफेंटा की गुफा : मुंबई के गेट वे ऑफ इंडिया से लगभग 12 किलोमीटर दूर स्थित एक स्थल है, जो एलीफेंटा नाम से विश्वविख्यात है। यहां पहाड़ को काटकर बनाई गई इन सुंदर और रहस्यमय गुफाओं को किसने बनाया होगा? माना जाता है कि इसे 7वीं व 8वीं शताब्दी में राष्‍ट्रकूट राजाओं द्वारा खोजा गया था। 'खोजा गया था' का मतलब यह कि यह उन्होंने बनाया नहीं था। कई हजार वर्षों पुरानी इन गुफाओं की संख्या 7 हैं जिनमें से सबसे महत्‍वपूर्ण है महेश मूर्ति गुफा। एलीफेंटा को घारापुरी के पुराने नाम से जाना जाता है, जो कोंकणी मौर्य की द्वीप राजधानी थी।

इसका ऐतिहासिक नाम घारापुरी है। यह नाम मूल नाम अग्रहारपुरी से निकला हुआ है। एलीफेंटा नाम पुर्तगालियों ने दिया है। यहां हिन्दू धर्म के अनेक देवी-देवताओं की मूर्तियां हैं। यहां भगवान शंकर की 9 बड़ी-बड़ी मूर्तियां हैं, जो शंकरजी के विभिन्न रूपों तथा क्रियाओं को दिखाती हैं। इनमें शिव की त्रिमूर्ति प्रतिमा सबसे आकर्षक है। यह पाषाण-शिल्पित मंदिर समूह लगभग 6,000 वर्गफीट के क्षेत्र में फैला है।

गुफा के मुख्‍य हिस्‍से में पोर्टिको के अलावा 3 ओर से खुले सिरे हैं और इसके पिछली ओर 27 मीटर का चौकोर स्‍थान है और इसे 6 खंभों की कतार से सहारा दिया जाता है। 'द्वारपाल' की विशाल मूर्तियां अत्‍यंत प्रभावशाली हैं। इस गुफा में शिल्‍पकला के कक्षों में अर्द्धनारीश्‍वर, कल्‍याण सुंदर शिव, रावण द्वारा कैलाश पर्वत को ले जाने, अंधकारी मूर्ति और नटराज शिव की उल्‍लेखनीय छवियां दिखाई गई हैं। इस गुफा संकुल को यूनेस्‍को द्वारा विश्‍व विरासत का दर्जा दिया गया है।

महाकाली और कन्हेरी की गुफाएं : मुंबई में कई गुफाएं हैं। उनमें से एलीफेंटा, महाकाली, कन्हेरी और जोगेश्‍वरी की गुफाएं प्रसि‍द्ध हैं। महाकाली की गुफा मुंबई के अंधेरी वेस्ट में बौद्ध मठ के पास है, जबकि कन्हेरी की गुफा मुंबई के पश्चिम में बसे बोरीवली क्षेत्र में स्थित है। इसके अलावा पुणे में पातालेश्वर या पांचालेश्वर गुफा मंदिर और लेनयाद्रि की बौद्ध गुफाएं देखने लायक हैं।

अगले पन्ने पर पांचवां गुफा मंदिर...
अजंता-एलोरा की गुफाएं : यह स्थान महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले में स्थित है। इसमें अजंता में 29 बौद्ध गुफाएं और कई हिन्दू मंदिर मौजूद हैं। ये गुफाएं अपनी चित्रकारी, गुफाएं और अद्भुत मंदिरों के लिए प्रसिद्ध हैं। ये गुफाएं कई हजार वर्ष पुरानी हैं, लेकिन बौद्ध गुफाएं होने के कारण इनको 2 सदी ईसा पूर्व से 7 शताब्दी ईसा तक का माना जाता रहा है, लेकिन अब नए शोध ने यह धारणा बदल दी है।

एलोरा की गुफाएं सबसे प्राचीन मानी जाती हैं। इसमें पत्थर को काटकर बनाई गईं 34 गुफाएं हैं और एक रहस्यमयी प्राचीन हिन्दू मंदिर है जिसके बारे में कहा जाता है कि इसे कोई मानव नहीं बना सकता और इसे आज की आधुनिक तकनीक से भी नहीं बनाया जा सकता। इस विशालकाय अद्भुत मंदिर को देखने सभी आते हैं। इसका नाम कैलाश मंदिर है। आर्कियोलॉजिस्टों के अनुसार इसे कम से कम 4 हजार वर्ष पूर्व बनाया गया था। 40 लाख टन की चट्टानों से बनाए गए इस मंदिर को किस तकनीक से बनाया गया होगा? यह आज की आधुनिक इंजीनियरिंग के बस की भी बात नहीं है।

माना जाता है कि एलोरा की गुफाओं के अंदर नीचे एक सीक्रेट शहर है। आर्कियोलॉजिकल और जियोलॉजिस्ट की रिसर्च से यह पता चला कि ये कोई सामान्य गुफाएं नहीं हैं। इन गुफाओं को कोई आम इंसान या आज की आधुनिक तकनीक नहीं बना सकती। यहां एक ऐसी सुरंग है, जो इसे अंडरग्राउंड शहर में ले जाती है।

औरंगाबाद में पीतलखोरा की गुफाएं भी प्रसिद्ध हैं।

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अमरनाथ गुफा : जम्मू और कश्मीर में तो अमरनाथ और वैष्णोदेवी की गुफा में हिन्दूजन दर्शन के लिए जाते ही हैं, लेकिन कश्मीर में ऐसी 4 गुफाएं हैं जिनके बारे में कहा जा रहा है कि उनका दूसरा सिरा 4,000 किलोमीटर दूर रूस तक जाता है। इतना ही नहीं, इन गुफाओं के बारे में और भी ऐसे रहस्य हैं जिनकी सच्चाई सदियों बाद भी सामने नहीं आईं।

पीर पंजाल की गुफा : जम्मू-कश्मीर के पीर पंजाल में एक गुफा है, जहां एक शिवलिंग रखा है। इसका नाम पीर पंजाल केव रखा गया है।

शिव खाड़ी : जम्मू में ही शिव खाड़ी नामक एक गुफा है।

अगले पन्ने पर सातवां गुफा मंदिर...

बादामी गुफा : यह सुंदर और नक्काशीदार गुफा कर्नाटक के बादामी में स्थित है। बादामी की 4 गुफाओं में से 2 गुफाएं भगवान विष्णु, 1 भगवान शिव और 1 जैन धर्म से संबंधित बताई जाती हैं। पहाड़ों को काटकर लाल पत्थर से बनाई गई ये गुफाएं अपनी सुंदरता के लिए फेमस हैं। पत्थरों में की गई नक्काशी देखने लायक है।

बादामी चालुक्‍यों की राजधानी थी, जो 6-8वीं सदी ईसवी में इस स्‍थान से शासन करते थे। इसे मूलत: वातापी कहा जाता है। 1979 में बादामी में और इसके आसपास खोजी गई गुफाओं, मूर्तियों, अभिलेखों, बिखरे पड़े पुरातत्‍वीय अंशों का संग्रह और परिरक्षण करने के लिए एक मूर्तिशाला के रूप में स्‍थापित किया गया था। बाद में इसे वर्ष 1982 में एक पूर्णरूपेण स्‍थल संग्रहालय के रूप में परिवर्तित कर दिया गया।

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परशुराम महादेव गुफा मंदिर : अरावली की प्राचीन पहाड़ियों में स्थित एक गुफा मंदिर है जिसे महादेव गुफा मंदिर कहा जाता है। माना जाता है कि इसका निर्माण विष्णु के 6ठे अवतार स्वयं परशुराम ने अपने फरसे से चट्टान को काटकर किया था। इस गुफा मंदिर के अंदर एक स्वयंभू शिवलिंग है। कहते हैं यहां परशुराम के घोर तपस्या की थी। तपस्या के बल पर उन्होंने भगवान शिव से धनुष, अक्षय तूणीर एवं दिव्य फरसा प्राप्त किया था।

इस गुफा मंदिर तक जाने के लिए 500 सीढ़ियों का सफर तय करना पड़ता है, जहां पर विष्णु के 6ठे अवतार परशुराम ने भगवान शिव की कई वर्षों तक कठोर तपस्या की थी।

दुर्गम पहाड़ी, घुमावदार रास्ते, प्राकृतिक शिवलिंग, कल-कल करते झरने एवं प्राकृतिक सौंदर्य से ओत-प्रोत होने के कारण भक्तों ने इसे 'मेवाड़ के अमरनाथ' का नाम दे दिया है।

परशुराम महादेव का मंदिर राजस्थान के राजसमंद और पाली जिले की सीमा पर स्थित है। मुख्य गुफा मंदिर राजसमंद जिले में आता है जबकि कुण्ड धाम पाली जिले में आता है। पाली से इसकी दूरी करीब 100 किलोमीटर और विश्वप्रसिद्ध कुम्भलगढ़ दुर्ग से मात्र 10 किलोमीटर है।

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जोगीमारा गुफा : छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश भारत का सबसे घने जंगलों और नदियों वाला प्रदेश है। यह प्राचीनकाल में दंडकारण्य क्षेत्र का हिस्सा था। यहां भयानक जंगल, वन्यजीव, आदिवासी और प्राकृतिक सुंदरता तो देखने को मिलेगी ही, साथ ही प्राचीन मानव सभ्यता के अवशेष भी मिलेंगे।

गुफाएं तो छत्तीसगढ़ में बहुत हैं, लेकिन सीताबेंग गुफा सरगुजा जिले के अंबिकापुर की रामगढ़ पहाड़ियों में स्थित है। दरअसल, ये 2 गुफाएं हैं- एक सीताबेंग और दूसरी जोगीमारा। यहां तक पहुंचने के लिए आपको प्राकृतिक टनल हतिपल के रास्ते से जाना होगा। छत्तीसगढ़ के पहाड़ी इलाकों और घने जंगल से होते हुए ही आप कैलाश गुफा, दंडक गुफा और कुटुमसर गुफा तक पहुंच सकते हैं। यह कांगड़ वैली के नेशनल पार्क के पास है।

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बाराबर गुफाएं : ध्यान और तपस्या के लिए बनाई गई इन गुफाओं को देखने दूर-दूर से पर्यटक आते हैं। बाराबर गुफाएं बिहार के गया जिले में स्थित हैं। गया जिले में और भी कई हिन्दू, जैन और बौद्ध गुफाएं हैं।

ये गुफाएं बाराबर की दो पहाड़ियों में हैं। यहां कुल 4 गुफाएं हैं और नागार्जुन की पहाड़ियों में 3 गुफाएं हैं। ये गुफाएं देश की सबसे प्राचीन गुफाओं में से हैं। यहां कलाकृतियां भी मिलती हैं। इन गुफाओं के अलावा सुदामा और सोनभद्रा भी बिहार की प्रसिद्ध गुफाओं में से एक हैं।

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बोरा गुफाएं : दक्षिणी राज्य आंध्रप्रदेश में बेलम व बोरा गुफाएं प्रसिद्ध हैं। बोरा गुफाएं विशाखापट्टनम से 90 किलोमीटर की दूरी पर हैं। 10 लाख साल पुरानी इन गुफाओं पर भू-वैज्ञानिकों के शोध कहते हैं कि लाइमस्टोन की ये स्टैलक्टाइट व स्टैलग्माइट गुफाएं गोस्थनी नदी के प्रवाह का परिणाम हैं।

गुफाएं अंदर से काफी विराट हैं। अंदर घुसकर वहां एक अलग ही दुनिया नजर आती है। कहीं आप रेंगते हुए मानो किसी सुरंग में घुस रहे होते हैं तो कहीं अचानक आप विशालकाय बीसियों फुट ऊंचे हॉल में आ खड़े होते हैं। विशाखापट्टनम में रुककर भी दिन में गुफाएं देखी जा सकती हैं। इन गुफाओं में आपको प्राचीनकालीन शिवलिंग के दर्शन होंगे जिनकी पूजा आज भी आदिवासी लोग करते हैं।

बेलम गुफाएं : आंध्र के कुरनूल से 106 किलोमीटर दूर बेलम गुफाएं स्थित हैं। मेघालय की गुफाओं के बाद ये भारतीय उपमहाद्वीप की दूसरी सबसे बड़ी प्राकृतिक गुफाएं हैं। इन्हें मूल रूप से तो 1854 में एचबी फुटे ने खोजा था लेकिन दुनिया के सामने 1982 में यूरोपीय गुफा विज्ञानियों की एक टीम ने इन्हें मौजूदा स्वरूप में पेश किया।

पहाड़ियों में स्थित बोरा गुफाओं के विपरीत बेलम गुफाएं एक बड़े से सपाट खेत के नीचे स्थित हैं। जमीन से गुफाओं तक 3 कुएं जैसे छेद हैं। इन्हीं में से बीच का छेद गुफा के प्रवेश द्वार के रूप में इस्तेमाल होता है। लगभग 20 मीटर तक सीधे नीचे उतरने के बाद गुफा जमीन के नीचे फैल जाती हैं। इनकी लंबाई 3,229 मीटर है।

अगले पन्ने पर बारहवां गुफा मंदिर...
मले‍शिया : मलेशिया भी पहले हिन्दू राष्ट्र हुआ करता था। वहां कई प्राचीन गुफा मंदिर हैं। उनमें से ही एक माता देवी पार्वती के बेटे और युद्ध के देवता मुरुगन का गुफा मंदिर भी है। उक्त देवता के जन्म अवसार पर थैपुसम नामक उत्सव मनाया जाता है।

300 से अधिक सीढ़ियां चढ़कर इस गुफा मंदिर में जाना होता है। थैपुसम त्योहार हिन्दू कैलेंडर के मुताबिक 10 महीने में एक बार मनाया जाता है। सामान्य कैलेंडर के अनुसार यह अवसर जनवरी के अंतिम या फरवरी की शुरुआत में आता है। भारत, सिंगापुर, मॉरिशस द्वीप समूह में भी यह उत्सव मनाया जाता है जबकि मलेशिया के उत्तरी राज्य पेनाग में यह उत्सव बड़े पैमाने पर मनाया जाता है।

यहां गुफा के सामने मुरुगन की विशालकाय मूर्ति लगी है। इस मूर्ति की ऊंचाई 42.7 मीटर ऊंची है।

इसके अलावा पाताल भुवनेश्वर (उत्तराखंड), थ्रिक्कुर महादेव मंदिर (केरल), बाघ गुफाएं (धार, मध्यप्रदेश), उदयगिरि गुफाएं (ओडिशा), बाराबर गुफाएं (बिहार), उंदावली, विजयवाड़ा की गुफा (आंध्रप्रदेश), डुंगेश्वरी गुफा (बिहार), अर्जुन गुफा (कुल्लू, हिमाचल), पीतलखोरा की गुफा (महाराष्ट्र), सोन भंडार गुफा (राजगीर, बिहार) आदि भी दर्शनीय हैं।