गुरुवार, 28 मार्च 2024
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क्या प्राचीन काल में अमेरिका में था हिन्दू धर्म का प्रचलन?

क्या प्राचीन काल में अमेरिका में था हिन्दू धर्म का प्रचलन? - ancient america hindu connection
उत्तर अमेरिका और दक्षिण अमेरिका में बंटा अमेरिका एक महाद्वीप है। इस संपूर्ण भू-भाग पर प्रमुख रूप से ये राष्ट्र हैं:- कनाडा, संयुक्त राज्य अमेरिका, ग्रीनलैण्ड, मेक्सिको, कोलंबिया, अर्जेन्टीना, ब्राजील, पनामा, सुरिनाम, पेरू, ट्रिनिडाड और टोबागो, वेनेजुएला, चिली आदि। प्रमुख रूप से माया और इंका सभ्यता यहां की प्राचीन सभ्यताएं हैं। रेड इंडियन नाम की आदिवासी जाति के लोग यहां के मूल निवासी हैं। अमेरिका की मुख्‍य धारा में सक्रिय अधिकतर लोग ब्रिटेन के उपनिवेश काल में योरप, अफ्रीका आदि जगहों से यहां आकर बसे हैं। जानिए अमेरिका के कुछ प्राचीन तथ्‍य।
 
ईसा से 2300-2150 वर्ष पूर्व सुमेरिया, 2000-400 वर्ष पूर्व बेबिलोनिया, 2000-250 ईसा पूर्व ईरान, 2000-150 ईसा पूर्व मिस्र (इजिप्ट), 1450-500 ईसा पूर्व असीरिया, 1450-150 ईसा पूर्व ग्रीस (यूनान), 800-500 ईसा पूर्व रोम की सभ्यताएं विद्यमान थीं। उक्त सभी से पूर्व महाभारत का युद्ध लड़ा गया था इसका मतलब कि 3500 ईसा पूर्व भारत में एक पूर्ण विकसित सभ्यता थी जिसका प्रभाव संपूर्ण विश्व पर था।
 
वानर सम्राज्य : वानर का शाब्दिक अर्थ होता है 'वन में रहने वाला नर।' वन में ऐसे भी नर रहते थे जिनको पूछ निकली हुई थी। नए शोधानुसार प्रभु श्रीराम का जन्म 10 जनवरी 5114 ईसा पूर्व अयोध्या में हुआ था। श्रीराम के जन्म के पूर्व हनुमानजी का जन्म हुआ था अर्थात आज (फरवरी 2015) से लगभग 7129 वर्ष पूर्व हनुमानजी का जन्म हुआ था। शोधकर्ता कहते हैं कि आज से 9 लाख वर्ष पूर्व एक ऐसी विलक्षण वानर जाति भारतवर्ष में विद्यमान थी, जो आज से 15 से 12 हजार वर्ष पूर्व लुप्त होने लगी थी और अंतत: लुप्त हो गई। इस जाति का नाम कपि था। हनुमान का जन्म कपि नामक वानर जाति में हुआ था। 
 
दरअसल, आज से 9 लाख वर्ष पूर्व मानवों की एक ऐसी जाति थी, जो मुख और पूंछ से वानर समान नजर आती थी, लेकिन उस जाति की बुद्धिमत्ता और शक्ति मानवों से कहीं ज्यादा थी। अब वह जाति भारत में तो दुर्भाग्यवश विनष्ट हो गई, परंतु बाली द्वीप में अब भी पुच्छधारी जंगली मनुष्यों का अस्तित्व विद्यमान है जिनकी पूछ प्राय: 6 इंच के लगभग अवशिष्ट रह गई है। ये सभी पुरातत्ववेत्ता अनुसंधायक एकमत से स्वीकार करते हैं कि पुराकालीन बहुत से प्राणियों की नस्ल अब सर्वथा समाप्त हो चुकी है।
 
वानरों के साम्राज्य की राजधानी किष्किंधा थी। सुग्रीव और बालि इस सम्राज्य के राजा थे। यहां पंपासरोवर नामक एक स्थान है जिसका रामायण में जिक्र मिलता है। 'पंपासरोवर' अथवा 'पंपासर' होस्पेट तालुका, मैसूर का एक पौराणिक स्थान है। हंपी के निकट बसे हुए ग्राम अनेगुंदी को रामायणकालीन किष्किंधा माना जाता है। तुंगभद्रा नदी को पार करने पर अनेगुंदी जाते समय मुख्य मार्ग से कुछ हटकर बाईं ओर पश्चिम दिशा में, पंपासरोवर स्थित है।  
 
भारत के बाहर वानर साम्राज्य कहां? सेंट्रल अमेरिका के मोस्कुइटीए (Mosquitia) में शोधकर्ता चार्ल्स लिन्द्बेर्ग ने एक ऐसी जगह की खोज की है जिसका नाम उन्होंने ला स्यूदाद ब्लैंका (La Ciudad Blanca) दिया है जिसका स्पेनिश में मतलब व्हाइट सिटी (The White City) होता है, जहां के स्थानीय लोग बंदरों की मूर्तियों की पूजा करते हैं। चार्ल्स का मानना है कि यह वही खो चुकी जगह है जहां कभी हनुमान का साम्राज्य हुआ करता था।
 
एक अमेरिकन एडवेंचरर ने लिम्बर्ग की खोज के आधार पर गुम हो चुके ‘Lost City Of Monkey God’ की तलाश में निकले। 1940 में उन्हें इसमें सफलता भी मिली पर उसके बारे में मीडिया को बताने से एक दिन पहले ही एक कार दुर्घटना में उनकी मौत हो गई और यह राज एक राज ही बनकर रह गया।

माया सभ्यता (250 ईस्वी से 900 ईस्वी) : अमेरिका की प्राचीन माया सभ्यता ग्वाटेमाला, मैक्सिको, होंडुरास तथा यूकाटन प्रायद्वीप में स्थापित थी। यह एक कृषि पर आधारित सभ्यता थी। 250 ईस्वी से 900 ईस्वी के बीच माया सभ्यता अपने चरम पर थी। इस सभ्यता में खगोल शास्त्र, गणित और कालचक्र को काफी महत्व दिया जाता था। मैक्सिको इस सभ्यता का गढ़ था। आज भी यहां इस सभ्यता के अनुयायी रहते हैं।
यूं तो इस इलाके में ईसा से 10 हजार साल पहले से बसावट शुरू होने के प्रमाण मिले हैं और 1800 साल ईसा पूर्व से प्रशांत महासागर के तटीय इलाक़ों में गांव भी बसने शुरू हो चुके थे। लेकिन कुछ पुरातत्ववेत्ताओं का मानना है कि ईसा से कोई एक हजार साल पहले माया सभ्यता के लोगों ने आनुष्ठानिक इमारतें बनाना शुरू कर दिया था और 600 साल ईसा पूर्व तक बहुत से परिसर बना लिए थे। सन् 250 से 900 के बीच विशाल स्तर पर भवन निर्माण कार्य हुआ, शहर बसे। उनकी सबसे उल्लेखनीय इमारतें पिरामिड हैं, जो उन्होंने धार्मिक केंद्रों में बनाईं लेकिन फिर सन्  900 के बाद माया सभ्यता के इन नगरों का ह्रास होने लगा और नगर खाली हो गए।
 
माया सभ्यता का पंचांग 3114 ईसा पूर्व शुरू किया गया था। इस कैलेंडर में हर 394 वर्ष के बाद बाकतुन नाम के एक काल का अंत होता है। 21 दिसबंर, 2012 को उस कैलेंडर का 13वां बाकतुन खत्म हो जाएगा। हालांकि माया सभ्यता के बारे में कहा जाता है कि यह भी सिन्धु घाटी और मिस्र की सभ्यताओं की तरह सबसे रहस्यमयी सभ्यता है, जो अपने भीतर कई अनसुलझे रहस्य समेटे हुए है।
 
अमेरिकन इतिहासकार मानते हैं‍ कि भारतीय आर्यों ने ही अमेरिका महाद्वीप पर सबसे पहले बस्तियां बनाई थीं। अमेरिका के रेड इंडियन वहां के आदि निवासी माने जाते हैं और हिन्दू संस्कृति वहां पर आज से हजारों साल पहले पहुंच गई थी। माना जाता है कि यह बसाहट महाभारतकाल में हुई थी।
 
चिली, पेरू और बोलीविया में हिन्दू धर्म : अमेरिकन महाद्वीप के बोलीविया (वर्तमान में पेरू और चिली) में हिन्दुओं ने प्राचीनकाल में अपनी बस्तियां बनाईं और कृषि का भी विकास किया। यहां के प्राचीन मंदिरों के द्वार पर विरोचन, सूर्य द्वार, चन्द्र द्वार, नाग आदि सब कुछ हिन्दू धर्म समान हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका की आधिकारिक सेना ने नेटिव अमेरिकन की एक 45वीं मिलिट्री इन्फैंट्री डिवीजन का चिह्न एक पीले रंग का स्वास्तिक था। नाजियों की घटना के बाद इसे हटाकर उन्होंने गरूड़ का चिह्न अपनाया।

अनुनाकी : अनुनाकी को कुछ शोधकर्ता शिव मानते हैं। दरअस्ल यह सुमेरियन शब्द है जिसका प्रयोग स्वर्ग से निकाले गए लोगों के लिए होता था। अनुनाकी जिन्होंने दुनिया की पहली महान सुमेर सभ्यता को स्थापित और गतिशील किया। सुमेरियन भी मानते हैं कि अनुनाकी नाम का एक देवता धरती पर उतरा था और उसने यहां नगर बनाए और हमें सुरक्षा प्रदान की। हालांकि भारतीय धर्म के इतिहसकार मानते हैं कि यायाति के पांच पुत्रों में से एक अनु ने मध्य एशिया में सभ्यताओं का विकास किया था। प्राचीनकाल में हिन्दुकुश से लेकर अरुणाचल तक के हिमालयन क्षेत्र को स्वर्ग स्थान बाना जाता था।
 
अनुनाकी के बाद तिहूकानो की सभ्यता का अस्तित्व रहा। जब उन्होंने एक छोटा गांव (तिहूनाको) बनाया तो उन्होंने उसकी दीवारों पर अपने लोगों के चित्र भी बनाए और उनके बारे में भी लिखा। तिहूनाको में काफी तादाद में जो पत्थरों की दीवारें हैं उनमें अलग-अलग तरह के मात्र गर्दन तक के सिर-मुंह बने हैं। ये सिर या स्टेचू स्थानीय निवासियों के नहीं हैं। तिहूनाको के आदिवासी पुमा पुंकु में घटी असाधारण घटना की याद में आज भी गीत गाते हैं। पुमा पुंका में आकाश से देवता उतरे थे।
 
इंका सभ्यता : इंका सभ्यता सिंधु घाटी की सभ्यता की तरह ही एक रहस्यमयी सभ्यता है। वैज्ञानिक इसके रहस्यों को अभी भी खोज रहे हैं। 
 
इंका सभ्यता के लोग सूर्य देव को अपना अराध्य मानते थे। पेरू में स्थित माचू पिचू नामक स्थान यहां के प्रमुख स्थान है। माचू पिच्चू आधुनिक 
 
विश्व के सात आश्चर्यों में से एक है। दक्षिण अमरीका में एंडीज पर्वतों के बीच बसा माचू पिच्चू शहर पुरानी इंका सभ्यता का सबसे बढ़िया 
 
उदाहरण है।
 
एयरपोर्ट : शोधकर्ता मानते हैं कि ओरायन (मृगशिरा) तारामंडल के अनुसार ही धरती पर भारत, चीन, इजिप्ट, ग्रीस, मैक्सिको, उत्तर अमेरिका आदि जगहों पर शहर बने हैं और आश्चर्यजनक रूप से हैलीपैड और एयरपोर्ट भी। ऐसे हैलीपैड जिस पर शोध करते वक्त वैज्ञानिक हैरान रह गए कि आखिर इन्हें कौन-सी टेक्नोलॉजी से बनाया गया होगा, क्योंकि यह तो बस आज की आ‍धुनिक टेक्नोलॉजी से ही संभव हो सकता है।
 
इन्हें कैसे बनाया गया? यह विज्ञान के लिए आज भी एक अबूझ पहेली है, क्योंकि कोई ऐसी तकनीक नहीं थी, जो उस जमाने में इस 'एयरपोर्ट' को बना सकती थी। आज की आधुनिक टेकनोलॉजी को भी इसे बनाने में भारी मशक्कत करना पड़ेगी, तब उस काल के मानव के लिए यह बनाना असंभव था। इसे कोई एलियंस ही बना सकता है और वह भी रातोरात?
 
इंका सभ्यता के राजा से जब यह पूछा गया कि यह विशालकाय और इतनी सुंदर तरीके से तराशी गई चट्टानें कहां से आईं और इन्हें स्मारक जैसा रूप किसने दिया तो राजा ने कहा कि यह मैंने नहीं बनवाई। आकाश से कोई आया था जिसने ये बनाए और हमारे लिए छोड़कर चले गए।
 
रातोरात पूरी सभ्यता कैसे खड़ी की जा सकती है? दक्षिण अमेरिका के इस गुमनाम शहर का नाम है- 'पुम्मा पुंकु'। इस शहर को 'एलियंस' ने बसाया और इसके पास महज 7 मील की दूरी पर उन्होंने एक 'एयरपोर्ट' भी बनाया और वह भी रातोरात।
 
रातोरात खड़े किए गए इस विशालकाय ढांचे का एक-एक पत्थर 26 फीट ऊंचा और 100 टन वजनी है। ग्रेनाइट पत्थर से बने यह एच (H) शैप के पत्थर 13 हजार फीट की ऊंचाई पर आखिर कैसे ले जाए गए। एक या दो पत्थर नहीं, बल्कि सैकड़ों एच ब्लॉक। वैज्ञानिकों ने जब इन पत्थरों पर शोध किया तो पाया कि इतनी सफाई से बने ये पत्थर के ब्लॉक हाथों से तो कतई नहीं बनाए जा सकते। यह तो भौतिकी का बेहतर उदाहरण है। उनके होल्स और इनके किनारे बिल्कुल सटीक बने हैं। यह किसी मशीनी टूल्स, डायमंड टूल्स या लेजर से ही बन सकते हैं।
 
खोजकर्ताओं ने इसके कार्बन टेस्ट से पाया कि ये पत्थर करीब 27 हजार वर्ष पुराने हैं। इन एच ब्लॉक के पत्थरों का ग्राफ बनाकर उसका डाटा कंप्यूटर में फिट किया गया और फिर से कंप्यूटर पर उसी तरह जोड़ा गया जबकि उन्हें उस काल में जोड़ा गया था तो एक विशाल प्लेटफॉर्म या कहें एयर ट्रैक बनता है, जो विशालकाय जायंट एयरशटल के उतरने के लिए था। लेकिन 1100 ई. पूर्व यह इलाका पूरी तरह से तबाह हो गया। कैसे? बाढ़ से, युद्ध से, उल्का से या फिर अन्य किसी कारण से।
 
सबसे खास बात जो शोध से पता चली कि इन्हें सात मील दूर बनाकर यहां असेम्बल किया गया। कई शोधकर्ता इसे मानते हैं कि इसे सुपर टेक्नोलॉजी के ‍जरिए यहां लाया गया और ऐसा तो कोई एलियंस ही कर सकते हैं, इंका सभ्यता के लोग या वहां के आदिवासी नहीं।
 
आखिर उन्हें रातोरात बनाने की जरूरत क्यों हुई? दरअसल उनकी उड़नतश्तरी को उन्हें कहीं सुरक्षित लैंड करना था और लैंड करने के बाद फिर से उन्हें वहां से निकलना था। इसलिए उन्होंने एक लांच पैड के साथ ही अपने लोगों के रहने के लिए एक स्थान (तिहूनाको) भी बनाया। अंत में वे उन्हें ऐसा का ऐसा ही छोड़कर चले गए।
 
जब उन्होंने एक छोटा गांव (तिहूनाको) बनाया तो उन्होंने उसकी दीवारों पर अपने लोगों के चित्र भी बनाए और उनके बारे में भी लिखा। तिहूनाको में काफी तादाद में जो पत्‍थरों की दीवारें हैं उनमें अलग-अलग तरह के मात्र गर्दन तक के सिर-मुंह बने हैं। ये सिर या स्टेचू स्थानीय निवासियों ने नहीं हैं।
 
तिहूनाको के आदिवासी पुमा पुंकु में घटी असाधरण घटना की याद में आज भी गीत गाते हैं। पुमा पुंका में आकाश से देवता उतरे थे।
 
1549 में इंका सभ्यता के खंडहर पाए गए। पुमा पुंकु से आधा किलोमीटर दूर एक नई सभ्यता मिली जिसे तिहूनाको (Tiwanaku, Bolivia) कहा गया। तिहूनाको को जिन्होंने बसाया उन्होंने ही पुमा पुंकु को बनाया।
 
सुमेरियन सभ्यता के टैक्स में भी इस जगह का जिक्र है, जबकि सुमेरियन सभ्यता यहां से 13 हजार किलोमीटर दूर है। सुमेरियन भी मानते हैं कि 'अनुनाकी' नाम का एक देवता धरती पर उतरा था। यह अनुनाकी एलियंस 'ग्रे एलियंस' की श्रेणी का एलियंस था।