84 लाख योनियों से क्यों गुजरती है आत्मा... अगले पन्ने पर...
कौन-कौन सी हैं 84 लाख योनियां...
84 लाख योनियां : हिन्दू धर्म के अनुसार 84 लाख योनियों के पश्चात यह मनुष्य जन्म प्राप्त होता है। 7 हजार वर्ष पूर्व लिखे गए पद्म पुराण में इसका उल्लेख मिलता है।
।।जलज नव लक्षाणी, स्थावर लक्ष विम्शति, कृमयो रुद्र संख्यकः।
पक्षिणाम दश लक्षणं, त्रिन्शल लक्षानी पशवः, चतुर लक्षाणी मानवः।।
* जलज अर्थात जलचर जीव : 9 लाख
* स्थावर अर्थात पेड़-पौधे : 20 लाख
* सरीसृप, कृमि, कीड़े-मकोड़े : 11 लाख
* नभचर : 10 लाख
* थलचर : 30 लाख
* मानवीय नस्ल के : 4 लाख
* कुल = 84 लाख।
आधुनिक जीव विज्ञानियों ने गणितीय तर्कों द्वारा धरती पर लगभग 87 लाख जीवों के होने की संभावना बताई है जिनमें से 13 लाख की जानकारी ऊपर-नीचे हो सकती है। लगभग 200 सालों की खोज के आधार पर फिलहाल लगभग 13 लाख उपस्थित जीवों तथा प्रजातियों का नाम-पता लगा चुके हैं।
यदि हिन्दू धर्म में उल्लेखित 84 लाख जीवों की संख्या में बढ़ोतरी अथवा कमी पाई जाए तो कोई बड़ी बात नहीं, क्योंकि यह उस काल की गणना थी। आज के काल में जलवायु के परिवर्तन और कई प्राकृतिक आपदाओं के चलते संख्या में बदलाव हो सकता है।
सर्वप्रथम जीवात्मा आध्यात्मिक अवस्था में होती है तथा वही जीवात्मा देह धारण करती है तथा उसी देह द्वारा किए गए उच्च अथवा नीच कर्मों के अनुसार गति को प्राप्त होती है, जैसे कोई जीव-जंतु पेड़-पौधा आदि तथा पूर्ण 84 लाख योनियों में भटकने के पश्चात पुनः मानव शरीर ग्रहण करती है और पुनर्जन्म की प्रक्रिया से बाहर निकलने का एक अवसर और प्राप्त करती है। इस प्रकार मोक्ष प्राप्ति तक इसी कालचक्र में फंसी रहती है। -(श्रीमद् भागवत 4.29.2)
पूर्वजन्म की अनुभूति का कारण और रहस्य अगले पन्ने पर...
वासांसि जीर्णानि यथा विहाय नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि।
तथा शरीराणि विहाय जीर्णा न्यन्यानि संयाति नवानि देही।।...गीता 2/2/2...।
अर्थात : जैसे मनुष्य पुराने वस्त्रों को त्यागकर दूसरे नए वस्त्रों को ग्रहण करता है, वैसे ही जीवात्मा पुराने शरीरों को त्यागकर दूसरे नए शरीरों को प्राप्त होती है।
शरीर के दो भेद हैं :-
1. सूक्ष्म शरीर : जिसमें बुद्धि, अहंकार और मन होता है।
2. स्थूल शरीर : जिसमें पांच ज्ञानेंद्रिय (आंख, कान, जीभ, नाक, त्वचा), पांच कर्मेन्द्रिय (वाक्, हस्त, पैर, उपस्थ, पायु), पंच तन्मात्र (धरती, अग्नि, जल, वायु, आकाश) होते हैं। एक तीसरा शरीर होता है जिसे कारण शरीर कहते हैं जिसमें आत्मा के संस्कार बीज रूप में रहते हैं।
शास्त्रों के अनुसार स्थूल शरीर की उम्र 120 वर्ष और सूक्ष्म शरीर की उम्र 4,32,00,00,000 वर्ष की होती है, लेकिन कारण शरीर अंडाकार में आत्मा के साथ अनंतकाल से है और अनंतकाल तक रहेगा। 4,32,00,00,000 वर्ष बाद प्रलयकाल में यह सुक्ष्म शरीर मूल कारण प्रकृति में लीन हो जाता है, क्योंकि सृष्टि के प्रारंभिक काल में उसे यह शरीर प्रकृति से मिला था।
नए सृष्टिक्रम में फिर से उसे सूक्ष्म शरीर मिल जाता है लेकिन मृत्यु और जन्म के बीच, प्रलय और नई सृष्टि के बीच आत्मा गहन सुषुप्ति की अवस्था में रहती है। जिन लोगों ने मानव जन्म के महत्व को समझा वही लोग ध्यान द्वारा आत्मा की उक्त तीनों अवस्थाओं से मुक्ति पाकर प्रकृति के जन्म-मरण या प्रलय-सृजन के चक्र से दूर होकर खुद का अस्तित्व बना लेते हैं।
बार-बार जन्म और मृत्यु का यह क्रम चलता रहता है। हर नए जन्म पर नया स्थूल शरीर जीवात्मा को मिलता रहता है लेकिन आत्मा से युक्त वह सूक्ष्म शरीर सदा वही रहता है, जो कि सृष्टि रचना के समय आत्मा को मिला था। इस सूक्ष्म शरीर में हजारों जन्म की स्मृतियां बसी हैं, क्योंकि सूक्ष्म शरीर का हिस्सा होता है मन, बुद्धि और अहंकार।
हर जन्म के कुछ न कुछ विषय या संस्कार हमारी सूक्ष्म बुद्धि में बसे रहते हैं और कोई न कोई किसी न किसी जन्म में कभी न कभी वे विषय पुनः जागृत हो जाते हैं जिस कारण वे लोग जिनको कि शरीर परिवर्तन का वह विज्ञान नहीं पता रहता, वे लोग इसको भूत बाधा या कोई शैतान आदि का साया समझकर भयभीत होते रहते हैं।
कभी किसी मानव की मृत्यु के बाद जब उसे दूसरा शरीर मिलता है तब कई बार किसी विषय की पुनरावृत्ति होने से पुरानी यादें जाग उठती हैं और उसका रूप एकदम बदल जाता है और आवाज भारी हो जाने के कारण लोग यह सोचने लगते हैं कि इसको किसी दूसरी आत्मा ने वश में कर लिया है या कोई भयानक प्रेत इसके शरीर में प्रवेश कर गया है।
हालांकि ऐसा हर बार नहीं होता। ऐसे कई लोग हैं जिनको अपने पिछले जन्म की याद आ गई है और वे फिर भी शांत और संयत स्वभाव लिए रहते हैं। यह उनकी बुद्धि पर निर्भर करता है। यह बात देखी जाती है कि जिस विषय का अनुभव उनको होता है उस विषय की पुनरावृत्ति का आभास जब उन्हें होता है, तब उनकी बुद्धि उस विषय में सतर्क रहती है।
कई लोगों को पिछले जीवन के कड़वे अनुभव रहते हैं और उनका मृत्यु का अनुभव भी काफी खतरनाक रहता है। ऐसे लोगों को जब अपने पूर्वजन्म का ज्ञान होता है तो उनमें संताप पैदा होता है या उन्हें ऐसा अनुभव होता है कि वे अभी भी पिछले जन्म में ही जी रहे हैं और अभी तक उन्होंने दुखों से छुटकारा नहीं पाया।
यहां समझने वाली बात यह है कि कौन पिछले जन्म में किस तरह की परिस्थिति में जिया और मरा। उसका उस जन्म में स्वभाव क्या था और वह कितना जाग्रत, शुद्ध विचार और शुद्ध कर्मों वाला था।
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अगले पन्ने पर सोनिया गांधी और राहुल गांधी का पिछला जन्म....
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इंदिरा गांधी : उनके मुताबिक बहादुर शाह जफर का जन्म जवाहरलाल नेहरू के रूप में हुआ था। वॉल्टर के अनुसार नेहरू की पुत्री और भारत की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी अपने पिछले जन्म में स्वतंत्रता सेनानी नाना साहेब थे।
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