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Written By अनिरुद्ध जोशी 'शतायु'

'यमराज' के दंड से कोई नहीं बच सकता

''यमराज'' के दंड से कोई नहीं बच सकता - Yamaraj
व्यक्ति मरता है तो सबसे पहले यमदूतों के पल्ले पड़ता है, जो उसे 'यमराज' के समक्ष उपस्थित कर देते हैं। यमराज को दंड देने का अधिकार प्रदान है। वही आत्माओं को उनके कर्म अनुसार नरक, स्वर्ग, पितृलोक आदि लोकों में भेज देते हैं। उनमें से कुछ को पुन: धरती पर फेंक दिया जाता है। आओ जानते हैं- मृत्य के देवता 'यमराज' को...

विधाता (ईश्वर) लिखता है, चित्रगुप्त बांचता है, यमदूत पकड़कर लाते हैं और यमराज दंड देते हैं। मृत्य का समय ही नहीं, स्थान भी निश्चित है जिसे कोई टाल नहीं सकता।

पितृलोक के बारे में जानकारी


दस दिशाएं हैं- उनमें से एक दक्षिण दिशा में यमराजजी बैठे हैं। दस दिशाओं के दिकपाल ये हैं- इंद्र, अग्नि, यम, नऋति, वरुण, वायु, कुबेर, ईश्व, अनंत और ब्रह्मा।

मृत्यु के देवता यमराज को धर्मराज भी कहा जाता है। इनकी पत्नी का नाम यमी है। शस्त्र दंड और वाहन भैंसा है। चित्रगुप्त इनका सहयोगी है। इनके पिता का नाम सूर्य और बहन का नाम यमुना और भाई का नाम श्राद्धदेव मनु है।

 

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'मार्कण्डेय पुराण' अनुसार दक्षिण दिशा के दिकपाल और मृत्यु के देवता को यम कहते हैं। वेदों में 'यम' और 'यमी' दोनों देवता मंत्रदृष्टा ऋषि माने गए हैं। वेदों में वे पितरों के अधिपति माने गए हैं। यमराज जीवों के शुभाशुभ कर्मों के निर्णायक हैं। दक्षिण दिशा के इन लोकपाल की संयमनीपुरी समस्त प्राणियों के लिए, जो अशुभकर्मा है, बड़ी भयप्रद है।

नरक का स्थान : महाभारत में राजा परीक्षित इस संबंध में शुकदेवजी से प्रश्न पूछते हैं तो वे कहते हैं कि राजन! ये नरक त्रिलोक के भीतर ही है तथा दक्षिण की ओर पृथ्वी से नीचे जल के ऊपर स्थित है। उस लोक में सूर्य के पुत्र पितृराज भगवान यम हैं। वे अपने सेवकों सहित रहते हैं तथा भगवान की आज्ञा का उल्लंघन न करते हुए, अपने दूतों द्वारा वहां लाए हुए मृत प्राणियों को उनके दुष्कर्मों के अनुसार पाप का फल दंड देते हैं।

यमलोक : यमपुरी या यमलोक का उल्लेख गरूड़ पुराण और कठोपनिषद ग्रंथ में मिलता है। मृत्यु के बारह दिनों के बाद मानव की आत्मा यमलोक का सफर प्रारंभ कर देती है। पुराणों अनुसार यमलोक को 'मृत्युलोक' के ऊपर दक्षिण में 86,000 योजन दूरी पर माना गया है। एक योजन में करीब 4 किमी होते हैं।

आत्मा सत्रह दिन तक यात्रा करने के पश्चात अठारहवें दिन यमपुरी पहुंचती है।

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गरूड़ पुराण में यमलोक के इस रास्ते में वैतरणी नदी का उल्लेख मिलता है। वैतरणी नदी विष्ठा और रक्त से भरी हुई है। जिसने गाय को दान किया है वह इस वैतरणी नदी को आसानी से पार कर यमलोक पहुंच जाता है अन्यथा इस नदी में वे डूबते रहते हैं और यमदूत उन्हें निकालकर धक्का देते रहते हैं।

यमपुरी पहुंचने के बाद आत्मा 'पुष्पोदका' नामक एक और नदी के पास पहुंच जाती है जिसका जल स्वच्छ होता है और जिसमें कमल के फूल खिले रहते हैं। इसी नदी के किनारे छायादार बड़ का एक वृक्ष है, जहां आत्मा थोड़ी देर विश्राम करती है। यहीं पर उसे उसके पुत्रों या परिजनों द्वारा किए गए पिंडदान और तर्पण का भोजन मिलता है जिससे उसमें पुन: शक्ति का संचार हो जाता है।

पुराणों के अनुसार यमलोक एक लाख योजन क्षेत्र में फैला और इसके चार मुख्य द्वार हैं। इसमें से दक्षिण के द्वार से पापियों का प्रवेश होता है। यह घोर अंधकार और भयानक सांप और सिंह से घिरा रहता है। पश्चिम का द्वार रत्नों से जड़ित है। इस द्वार से ऐसे जीवों का प्रवेश होता है जिन्होंने तीर्थों में प्राण त्यागे हो।

उत्तर का द्वार भिन्न-भिन्न स्वर्ण जड़ित रत्नों से सजा होता है, जहां से वही आत्मा प्रवेश करती है जिसने जीवन में माता-पिता की खूब सेवा की हो और जो हमेशा सत्य बोलता रहा हो। पूर्व का द्वार हीरे, मोती, नीलम और पुखराज जैसे रत्नों से सजा होता है। इस द्वार से उस आत्मा का प्रवेश होता है, जो योगी, ऋषि, सिद्ध या संबुद्ध है।

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जब कोई व्यक्ति मरता है तो सबसे पहले वह गहरी नींद के हालात में ऊपर उठने लगता है। जब आंखें खुलती हैं तो वह स्वयं की स्थिति को समझ नहीं पाता है। कुछ जो होशवान हैं वे समझ जाते हैं। मरने के 12 दिन के बाद यमलोक के लिए उसकी यात्रा ‍शुरू होती है। वह हवा में स्वत: ही उठता जाता है, जहां रुकावट होती है वहीं उसे यमदूत नजर आते हैं, जो उसे ऊपर की ओर गमन कराते हैं।

आत्माओं के मरने की दिशा उसके कर्म और मरने की तिथि अनुसार तय होती है। जैसे कृष्ण पक्ष में देह छोड़ दी है तो उस काल में दक्षिण और उसके पास के द्वार खुले होते हैं, लेकिन यदि शुक्ल में देख छोड़ी है तो उत्तर और उसके आसपास के द्वार खुले होते हैं। लेकिन तब कोई नियम काम नहीं करता जबकि व्यक्ति पाप से भरा हो। शुक्ल में मरकर भी वह दक्षिण दिशा में गमन करता है। इसके अलावा उत्तरायण और दक्षिणायन सबसे ज्यादा महत्व होता है।

अगले पन्ने पर पढ़ें, उत्तरायण के शुक्ल पक्ष में देह छोड़ने वाली उत्तर दिशा में गमन करने वाली अच्छी आत्मा का सामना किससे होता है...


चार द्वारों, सात तोरणों तथा पुष्पोदका, वैवस्वती आदि सुरम्य नदियों से पूर्ण अपनी पुरी में पूर्व, पश्चिम तथा उत्तर के द्वार से प्रविष्ट होने वाले पुण्यात्मा को भगवान विष्णु के दर्शन होते हैं जो शंख, चक्र, गदा, पद्मधारी, चतुर्भुज, नीलाभ रूप में अपने महाप्रासाद में रत्नासन पर दर्शन देते हैं।

ऐसी शुभ आत्मा स्वर्ग का अनुभव करती है और उसे शांति व स्थिरता मिलती है। स्वर्ग में रहने के पश्चात वह किसी अच्छे समय में पुन: अच्छे कुल और स्थान में जन्म लेती है।

कहां है स्वर्ग लोक?

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जो लोग पापी और अधर्मी हैं जिन्होंने जीवनभर शराब, मांस और स्त्रीगमन के अलावा कुछ नहीं किया, जिन्होंने धर्म का अपमान ‍किया और जिन्होंने कभी भी धर्म के लिए पुण्य का कोई कार्य नहीं किया वे मरने के बाद स्वत: ही दक्षिण दिशा की ओर खींच लिए जाते हैं। ऐसे पापियों को सबसे पहले तप्त लौहद्वार तथा पूय, शोणित एवं क्रूर पशुओं से पूर्ण वैतरणी नदी पार करना होती है।

नदी पार करने के बाद दक्षिण द्वार से भीतर आने पर वे अत्यंत विस्तीर्ण सरोवरों के समान नेत्र वाले, धूम्र वर्ण, प्रलय-मेघ के समान गर्जन करने वाले, ज्वालामय रोमधारी, बड़े तीक्ष्ण प्रज्वलित दंतयुक्त, संडसी जैसे नखों वाले, चर्म वस्त्रधारी, कुटिल-भृकुटि भयंकरतम वेश में यमराज को देखते हैं। वहां घोरतर पशु तथा यमदूत उपस्थित मिलते हैं।

यमराज हमसे सदा शुभ कर्म की आशा करते हैं लेकिन जब कोई ऐसा नहीं कर पाता है तो भयानक दंड द्वारा जीव को शुद्ध करना ही इनके लोक का मुख्य कार्य है। ऐसी आत्माओं को यमराज नरक में भेज देते हैं।

जानिए कितने और कहां होते हैं 'नरक'

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मृत्यु के देवता यम पृथ्वीलोक पर रहने वाले प्राणियों के कर्मों के अनुसार स्वर्ग या नरक भेजने का काम करते हैं। यम इस प्रकार के फैसले लेने में बहुत उलझन और दुविधा में पड़ जाते थे। उन्होंने अपनी यह समस्या ब्रह्मा और शिवजी को बताई, तब ब्रह्माजी ध्यानलीन हो गए और एक हजार वर्ष की तपस्या के बाद एक पुरुष उत्पन्न हुआ।

विस्तार से चित्रगुप्त की कथा

इस पुरुष का जन्म ब्रह्माजी की काया से हुआ था अत: ये कायस्थ कहलाए और इनका नाम चित्रगुप्त पड़ा। भगवान चित्रगुप्तजी के हाथों में कर्म की किताब, कलम, दवात और करवाल हैं। ये कुशल लेखक हैं और इनकी लेखनी से जीवों को उनके कर्मों के अनुसार न्याय मिलता है।

चित्रगुप्तजी के गुणों यथा सतर्कता, सहजता, यथार्थता, सटीकता और व्यावसायिकता आदि के कारण उन्हें यम के अधिकारी के रूप में नियुक्त किया गया। उक्त गुणों के आधार पर चित्रगुप्त पृथ्वी पर रहने वाले जीवों का लेखा-जोखा व अच्छे-बुरे कार्यों का हिसाब पूरी परिपूर्णता के साथ करते हैं। फिर मृत्यु के देवता यम, जीवों के कार्यों के अनुसार उन्हें स्वर्ग व नरक में भेजने का फैसला करते हैं। इन्हीं के आधार पर मृत्यु के बाद जीव फिर किस योनि में जाएगा, का निर्धारण भी होता है।

चेतावनी : कुछ वर्षों में देखा गया है कि कविता, चुट‍कुलों और हास्य शो के द्वारा चित्रगुप्त और यमराज का मजाक बनाया जाता है। ऐसा करने और ऐसा सुनने वाले अंतकाल में पछताएंगे। जिन्होंने वेद-पुराण पढ़े हैं निश्चित ही वे यमराज के संबंध में सम्मानजनक शब्दों का इस्तेमाल करेंगे, क्योंकि वे जानते हैं कि यम के अपमान का परिणाम क्या होता है।