गुरुवार, 28 मार्च 2024
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Written By अनिरुद्ध जोशी 'शतायु'

इन 20 चमत्कारिक मंदिरों पर जाने से होगी मुराद पूरी

इन 20 चमत्कारिक मंदिरों पर जाने से होगी मुराद पूरी - Wondrous temple
गुप्तकाल तक को बौद्धकाल माना जा सकता है। बौद्धकाल और गुप्तकाल में कई मंदिरों का निर्माण हुआ। मंदिर का अर्थ होता है- 'मन से दूर कोई स्थान'। मंदिर का शाब्दिक अर्थ 'घर' है। मंदिर को द्वारा या आलय नहीं कहते। यह ध्यान रखें कि मंदिर को अंग्रेजी में 'मंदिर' ही कहते हैं, 'टेम्पल' नहीं।
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आलय : शिवालय, जिनालय, देवालय आदि। 
द्वारा : द्वारा किसी भगवान या गुरु का होता है।
मंदिर : मंदिर या स्तूप सिर्फ ध्यान-प्रार्थना के लिए होते हैं।
पीठ : यह साधना स्थल होता है। वर्तमान में उक्त सभी को मंदिर कहा जाता है।
आश्रम : संतों के रहने का स्थान होता है, जहां वे शिक्षा, ध्यान और प्रवचन करते हैं।
 
हम आपको बताएंगे कि ऐसे कौन से मंदिर हैं जिन्हें चमत्कारिक, रहस्यमय या जाग्रत माना जाता है और जहां जाकर आप अपनी मुराद पूरी कर सकते हैं। उनमें से कुछ मंदिरों के बारे में वैज्ञानिक इनके चमत्कार और रहस्य को जानने का आज भी प्रयास कर रहे हैं। इन बीस में से हम आपको ऐसे मंदिरों के नाम बताएंगे जहां आप शायद ही गए हों।
 
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हिंगलाज माता मंदिर (बलूचिस्तान) : पाकिस्तान के जबरन कब्जे वाले बलूचिस्तान प्रांत के जिला लसबेला में हिंगोल नदी के किनारे पहाड़ी गुफा में स्थित माता पार्वती का हिंगलाज मंदिर अतिप्राचीन है। हिंगलाज माता का यह मंदिर माता पार्वती के 51 शक्तिपीठों में से एक है। इस मंदिर के महत्व का उल्लेख देवी भागवत पुराण सहित अन्य पुराणों में भी मिलता है।

भारत विभाजन के बाद पाकिस्तान के कई ऐतिहासिक और प्राचीन मंदिरों को नष्ट कर दिया गया, लेकिन यह मंदिर सुरक्षित रहा। इस मंदिर को कट्टरपंथियों ने तोड़ने का कई बार प्रयास किया लेकिन वे किसी चमत्कार के चलते मौत के मुंह में समा गए। वर्तमान में इस मंदिर की देखरेख मुसलमान लोग करते हैं। यहां वर्ष में एक बार भारत और पाकिस्तान के हिन्दू यात्रा करते हैं। इस मंदिर से कई तरह के चमत्कार जुड़े हुए हैं।
 
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कसारदेवी मंदिर, अल्मोड़ा (उत्तराखंड) : इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि यहां आने वालों की मुरादें तुरंत ही पूरी होती हैं। यहां कुदरत की खूबसूरती के दर्शन के साथ ही अद्भुत तरह की अनु‍भूति होती है। अल्मोड़ा से 10 किमी दूर अल्मोड़ा-बिंसर मार्ग पर स्थित कसारदेवी के आसपास पाषाण युग के अवशेष मिलते हैं। 
 
यहां आकर श्रद्धालु असीम मानसिक शांति का अनुभव करते हैं। ऐसा क्यों? क्योंकि यह अद्वितीय और चुंबकीय शक्ति का केंद्र भी है। अनूठी मानसिक शांति मिलने के कारण यहां देश-विदेश से कई पर्यटक आते हैं।
 
नासा के वैज्ञानिकों के अनुसार उत्तराखंड में अल्मोड़ा स्थित कसारदेवी शक्तिपीठ, दक्षिण अमेरिका के पेरू स्थित माचू-पिच्चू और इंग्लैंड के स्टोन हेंग अद्भुत चुंबकीय शक्ति के केंद्र हैं। इन तीनों जगहों पर चुंबकीय शक्ति का विशेष पुंज है। नासा के वैज्ञानिक चुम्बकीय रूप से इन तीनों जगहों के चार्ज होने के कारणों और प्रभावों पर शोध कर रहे हैं।
 
पर्यावरणविद डॉक्टर अजय रावत ने भी लंबे समय तक शोध करने के बाद बताया कि कसारदेवी मंदिर के आसपास वाला पूरा क्षेत्र वैन एलेन बेल्ट है, जहां धरती के भीतर विशाल भू-चुंबकीय पिंड है। इस पिंड में विद्युतीय चार्ज कणों की परत होती है जिसे रेडिएशन भी कह सकते हैं। 
 
पिछले 2 साल से नासा के वैज्ञानिक इस बेल्ट के बनने के कारणों को जानने में जुटे हैं। इस वैज्ञानिक अध्ययन में यह भी पता लगाया जा रहा है कि मानव मस्तिष्क या प्रकृति पर इस चुंबकीय पिंड का क्या असर पड़ता है?
 
कहते हैं कि स्वामी विवेकानंद 1890 में ध्यान के लिए कुछ महीनों के लिए आए थे। बताया जाता है कि अल्मोड़ा से करीब 22 किमी दूर काकड़ीघाट में उन्हें विशेष ज्ञान की अनुभूति हुई थी। इसी तरह बौद्ध गुरु लामा अंगरिका गोविंदा ने गुफा में रहकर विशेष साधना की थी। हर साल इंग्लैंड और अन्य देशों से अब भी शांति प्राप्ति के लिए सैलानी यहां आकर कुछ माह तक ठहरते हैं।
 
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जगन्नाथ मंदिर (ओडिशा) : हिन्दुओं की प्राचीन और पवित्र 7 नगरियों में पुरी ओडिशा राज्य के समुद्री तट पर बसा है। जगन्नाथ मंदिर विष्णु के 8वें अवतार श्रीकृष्ण को समर्पित है। पुराणों में इसे धरती का वैकुंठ कहा गया है। यह भगवान विष्णु के 4 धामों में से एक है। इसे श्रीक्षेत्र, श्रीपुरुषोत्तम क्षेत्र, शाक क्षेत्र, नीलांचल, नीलगिरि और श्री जगन्नाथ पुरी भी कहते हैं। यहां लक्ष्मीपति विष्णु ने तरह-तरह की लीलाएं की थीं। 
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यहां आकर श्रद्धालुओं और देश-विदेश के पर्यटकों को अपार शांति की अनुभूति तो होती ही है, साथ ही यहां जो भी सच्चे मन से मन्नत लेकर आता है उसकी मन्नत अवश्य पूरी होती है।
 
इस मंदिर के बारे में कई चमत्कार प्रसिद्ध हैं। यदि आप इस मंदिर के चमत्कार के बारे में जानना चाहते हैं तो आगे क्लिक करें... जगन्नाथ मंदिर के 10 चमत्कार
 
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महाकाली शक्तिपीठ, पावागढ़ (गुजरात) : गुजरात की ऊंची पहाड़ी पावागढ़ पर बसा मां कालिका का शक्तिपीठ सबसे जाग्रत माना जाता है। यहां स्थित काली मां को 'महाकाली' कहा जाता है। कालिका माता का यह प्रसिद्ध मंदिर मां के शक्तिपीठों में से एक है। ऐसा माना जाता है कि मां पार्वती के दाहिने पैर की अंगुलियां पावागढ़ पर्वत पर गिरी थीं। 
यह मंदिर गुजरात की प्राचीन राजधानी चंपारण्य के पास स्थित है, जो वडोदरा शहर से लगभग 50 किलोमीटर दूर है। पावागढ़ मंदिर ऊंची पहाड़ी की चोटी पर स्थित है। रोप-वे से उतरने के बाद आपको लगभग 250 सीढ़ियां चढ़ना होंगी, तब जाकर आप मंदिर के मुख्य द्वार तक पहुंचेंगे।
 
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बालाजी हनुमान मंदिर, मेहंदीपुर (राजस्थान) : राजस्थान के दौसा जिले के पास दो पहाड़ियों के बीच बसा हुआ घाटा मेहंदीपुर नामक स्थान है, जहां पर बहुत बड़ी चट्टान में हनुमानजी की आकृति स्वत: ही उभर आई है जिसे 'श्रीबालाजी महाराज' कहते हैं। इसे हनुमानजी का बाल स्वरूप माना जाता है। इनके चरणों में छोटी-सी कुंडी है जिसका जल कभी समाप्त नहीं होता।
यहां के हनुमानजी का विग्रह काफी शक्तिशाली एवं चमत्कारिक माना जाता है तथा इसी वजह से यह स्थान न केवल राजस्थान में बल्कि पूरे देश में विख्यात है। यहां हनुमानजी के साथ ही शिवजी और भैरवजी की भी पूजा की जाती है।
 
जनश्रुति है कि यह मंदिर करीब 1,000 साल पुराना है। यहां पर एक बहुत विशाल चट्टान में हनुमानजी की आकृति स्वयं ही उभर आई थी। इसे ही श्री हनुमानजी का स्वरूप माना जाता है।
 
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शनि शिंगणापुर (महाराष्ट्र) : महाराष्ट्र के एक गांव शिंगणापुर में स्थित है शनि भगवान का प्राचीन स्थान। शिंगणापुर गांव में शनिदेव का अद्‍भुत चमत्कार है। इस गांव के बारे में कहा जाता है कि यहां रहने वाले लोग अपने घरों में ताला नहीं लगाते हैं और आज तक के इतिहास में यहां किसी ने चोरी नहीं की है।
ऐसी मान्यता है कि बाहरी या स्थानीय लोगों ने यदि यहां किसी के भी घर से चोरी करने का प्रयास किया तो वह गांव की सीमा से पार नहीं जा पाता है और उससे पूर्व ही शनिदेव का प्रकोप उस पर हावी हो जाता है। उक्त चोर को अपनी चोरी कबूल भी करना पड़ती है और शनि भगवान के समक्ष उसे माफी भी मांगना होती है अन्यथा उसका जीवन नर्क बन जाता है।
 
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कैलाश मानसरोवर मंदिर और पर्वत (तिब्बत, चीन) : कैलाश मानसरोवर दुनिया की सबसे दुर्गम और सुंदर तथा अद्‍भुत यात्रा है। कैलाश मानसरोवर वही पवित्र जगह है जिसे शिव का धाम माना जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार मानसरोवर के पास स्थित कैलाश पर्वत पर शिव-शंभू का धाम है। यही वह पावन जगह है, जहां शिव-शंभू विराजते हैं। कैलाश पर्वत 22,028 फीट ऊंचा एक पत्थर का पिरामिड है जिस पर सालभर बर्फ की सफेद चादर लिपटी रहती है। 
कैलाश पर्वत की तलछटी में कल्पवृक्ष लगा हुआ है। कैलाश पर्वत के दक्षिण भाग को नीलम, पूर्व भाग को क्रिस्टल, पश्चिम को रूबी और उत्तर को स्वर्ण रूप में माना जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार यह जगह कुबेर की नगरी है। यहीं से महाविष्णु के कर-कमलों से निकलकर गंगा कैलाश पर्वत की चोटी पर गिरती है, जहां प्रभु शिव उन्हें अपनी जटाओं में भर धरती में निर्मल धारा के रूप में प्रवाहित करते हैं। 
 
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अमरनाथ (जम्मू और कश्मीर) : केदारनाथ से आगे है अमरनाथ और उससे आगे है कैलाश पर्वत। कैलाश पर्वत शिवजी का मुख्‍य समाधिस्थ होने का स्थान है, तो केदारनाथ विश्राम भवन। हिमालय का कण-कण शिव-शंकर का स्थान है। अमरनाथ में प्राकृतिक रूप से बर्फ का शिवलिंग निर्मित होता है।
शिवलिंग का निर्मित होना समझ में आता है, लेकिन इस पवित्र गुफा में हिम शिवलिंग के साथ ही एक गणेश पीठ व एक पार्वती पीठ भी हिम से प्राकृतिक रूप में निर्मित होता है। पार्वती पीठ ही शक्तिपीठ स्थल है। यहां माता सती के कंठ का निपात हुआ था। पार्वती पीठ 51 शक्तिपीठों में से एक है। इसके अलावा यहां अजर और अमरता प्राप्त कबूतर के जोड़े रहते हैं, जो किसी भाग्यशाली को ही दिखाई देते हैं।
 
इस पवित्र गुफा में भगवान शंकर ने भगवती पार्वती को मोक्ष का मार्ग दिखाया था। इस तत्वज्ञान को 'अमरकथा' के नाम से जाना जाता है इसीलिए इस स्थान का नाम 'अमरनाथ' पड़ा। यह कथा भगवती पार्वती तथा भगवान शंकर के बीच हुआ संवाद है। यह उसी तरह है जिस तरह कृष्ण और अर्जुन के बीच संवाद हुआ था।
 
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शिर्डी साईं मंदिर (महाराष्ट्र) : शिर्डी के साई बाबा (shirdi sai baba) का मंदिर विश्वभर में प्रसिद्ध तीर्थस्थल है। शिर्डी अहमदनगर जिले के कोपरगांव तालुका में है। गोदावरी नदी पार करने के पश्चात मार्ग सीधा शिर्डी को जाता है। 8 मील चलने पर जब आप नीमगांव पहुंचेंगे तो वहां से शिर्डी दृष्टिगोचर होने लगती है। श्री सांईंनाथ ने शिर्डी में अवतीर्ण होकर उसे पावन बनाया।
आज 'सांईं बाबा की शिर्डी' के नाम से इसे दुनियाभर में जाना जाता है। सांईं बाबा पर यह विश्वास जाति-धर्म व राज्यों से परे देशों की सीमा लांघ चुका है। यही वजह है कि 'बाबा की शिर्डी' में भक्तों का मेला हमेशा लगा रहता है जिसकी तादाद प्रतिदिन जहां 30 हजार के करीब होती है, वहीं गुरुवार व रविवार को यह संख्या दुगनी हो जाती है। इसी तरह सांईं बाबा के प्रति आस्था और विश्वास के चलते रामनवमी, गुरुपूर्णिमा और विजयादशमी पर जहां 2-3 लाख लोग दर्शन को आते हैं, वहीं सालभर में लगभग 1 करोड़ से अधिक भक्त यहां हाजिरी लगा जाते हैं।
 
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कालभैरव (उज्जैन, मध्यप्रदेश) : तीर्थ नगरी उज्जैन में कालभैरव का अतिप्राचीन और चमत्कारिक मंदिर है, जहां मूर्ति मदिरापान करती है। यहां उनको मदिरा का ही प्रसाद चढ़ता है। ‍यहां आने से शनि की पीड़ा का तुरंत ही निदान हो जाता है।
वाम मार्गी संप्रदाय के इस मंदिर में कालभैरव की मूर्ति को न सिर्फ मदिरा चढ़ाई जाती है, बल्कि बाबा भी मदिरापान करते हैं। यहां देश-विदेश से हजारों श्रद्धालु मन्नत मांगने आते हैं। 
 
कालभैरव का यह मंदिर लगभग 6,000 साल पुराना माना जाता है। यह एक वाम मार्गी तांत्रिक मंदिर है। वाम मार्ग के मंदिरों में मांस, मदिरा, बलि, मुद्रा जैसे प्रसाद चढ़ाए जाते हैं। प्राचीन समय में यहां सिर्फ तांत्रिकों को ही आने की अनुमति थी। वे ही यहां तांत्रिक क्रियाएं करते थे और कुछ विशेष अवसरों पर कालभैरव को मदिरा का भोग भी चढ़ाया जाता था। कालांतर में यह मंदिर आम लोगों के लिए खोल दिया गया, लेकिन बाबा ने भोग स्वीकारना यूं ही जारी रखा। 
 
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वैष्णोदेवी (जम्मू और कश्मीर) : यह मंदिर जम्मू और कश्मीर राज्य के जम्मू में स्थित है। मंदिरों की नगरी के नाम से प्रसिद्ध जम्मू शहर के उत्तर-पूर्व में 70 किमी की दूरी तय करके पवित्र त्रिकुटा पहाड़ियों पर स्थित वैष्णोदेवी की पावन गुफा के दर्शनार्थ भक्त आते हैं।
हालांकि इस धर्मस्थल की उत्पत्ति के सही दिन व वर्ष की जानकारी किसी को नहीं है, फिर भी सदियों से यह गुफा लोगों के लिए धार्मिक तथा मानसिक शांति प्राप्ति का एक मुख्य स्थान रही है। आरंभ में तो इसे जम्मू क्षेत्र के कुछ इलाकों में ही लोग जानते थे जबकि अब तो माता का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए विदेशों से भी लोग आते हैं।
 
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शबरीमाला मंदिर...प्रभु अयप्पा (केरल) : प्रभु अयप्पा का निवास स्थान माना जाता है। इस विश्वविख्यात मंदिर की महिमा का जितना गुणगान किया जाए, कम ही है। यह मंदिर करोड़ों श्रद्धालुओं के लिए आस्था का केंद्र है। माना जाता है की मक्का-मदीना के बाद यह विश्व का दूसरा बड़ा तीर्थ स्थान है, जहाँ करोड़ों की संख्या में तीर्थयात्री दर्शन के लिए आते हैं।
भगवान अयप्पा का यह धाम केरल और तमिलनाडु की सीमा पर पश्चिमी घाट की पहाड़ियों पर स्थित है। इस मंदिर को दक्षिण भारत के प्रमुख तीर्थ स्थान का दर्जा मिला हुआ है। पूणकवन के नाम से प्रसिद्ध १८ पहाड़ियों के बीच स्थित यह पवित्र धाम चारों ओर से घने वन और छोटी-बड़ी पहाडि़यों से घिरा हुआ है। माना जाता है कि महर्षि परशुराम ने शबरीमाला पर भगवान अयप्पा की साधना के लिए उनकी मूर्ति स्थापित की थी। 
 
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रामेश्वरम : चार धामों में से एक रामेश्वरम तमिलनाडु के रामनाथपुरम जिले में स्थित है। यहां स्थापित शिवलिंग बारह द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक माना जाता है। यह शिवलिंग स्वयं भगवान राम ने स्थापित किया था। इस चमत्कारिक शिवलिंग के दर्शनमात्र से मनोकामना पूर्ण हो जाती है।
 
रामेश्वरम् शहर से करीब डेढ़ मील उत्तर-पूर्व में गंधमादन पर्वत नाम की एक छोटी-सी पहाड़ी है। हनुमानजी ने इसी पर्वत से समुद्र को लांघने के लिए छलांग मारी थी। बाद में राम ने लंका पर चढ़ाई करने के लिए यहीं पर विशाल सेना संगठित की थी। इस पर्वत पर एक सुंदर मंदिर बना हुआ है, जहां श्रीराम के चरण-चिन्हों की पूजा की जाती है। इसे पादुका मंदिर कहते हैं।
 
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तिरुपति बालाजी मंदिर : तिरुमाला पर्वत पर स्थित भगवान बालाजी के मंदिर की महत्ता कौन नहीं जानता।  हर साल करोड़ों लोग इस मंदिर के दर्शन के लिए आते हैं।
 
प्रभु वेंकटेश्वर या बालाजी को भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि प्रभु विष्णु ने कुछ समय के लिए स्वामी पुष्करणी नामक तालाब के किनारे निवास किया था। यह तालाब तिरुमाला के पास स्थित है।
 
तिरुमाला- तिरुपति के चारों ओर स्थित पहाड़ियां, शेषनाग के सात फनों के आधार पर बनीं सप्तगिरी कहलाती हैं। श्री वेंकटेश्वरैया का यह मंदिर सप्तगिरी की सातवीं पहाड़ी पर स्थित है, जो वेंकटाद्री नाम से प्रसिद्ध है।
 
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कामाख्या मंदिर (गुवाहाटी, असम) : कामाख्या देवी शक्तिपीठ को 51 शक्तिपीठों में से एक माना जाता है। यह शक्तिपीठ तंत्र साधना के लिए प्रसिद्ध है। कामाख्या शक्तिपीठ असम की राजधानी दिसपुर के पास गुवाहाटी से 8 किलोमीटर दूर कामाख्या में है। यह 51 शक्तिपीठों में सबसे उच्च स्थान रखता है। यहां आने वाले की हर मनोकामना पूर्ण होती है यदि वह खुद को पवित्र समझता है तो। माता सती के जितने भी मंदिर है वहां पवित्रता और सच बोलना जरूरी है।
 
कामाख्या से 10 किलोमीटर दूर नीलांचल पर्वत पर स्थित है। यहीं भगवती की महामुद्रा (योनि-कुण्ड) स्थित है।यह मंदिर शक्ति की देवी सती का मंदिर है। यह मंदिर एक पहाड़ी पर बना है व इसका तांत्रिक महत्व है। यहां देवी की योनि का पूजन होता है। जो मनुष्य इस शिला का पूजन, दर्शन स्पर्श करते हैं, वे दैवी कृपा तथा मोक्ष के साथ भगवती का सान्निध्य प्राप्त करते हैं।
 
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गजानन महाराज (शेगांव, महाराष्ट्र) : समस्त जग का कल्याण करने के लिए समय-समय पर संतों के अवतार होते हैं और वे परोपकार में ही अपनी देह खपाते रहते हैं। ऐसे ही एक संत है- श्री गजानन महाराज शेगांव वाले। उनका समाधि स्थल शेगांव में ही है।
 
श्री गजानन महाराज दिगंबर वृत्ति के सिद्ध कोटि के साधु थे। जो भी मिले वह खाना, कहीं भी रहना, कहीं भी भ्रमण करना ऐसी उनकी दिनचर्या थी। मुख से हमेशा परमेश्वर का भजन करते रहते थे। 
 
भक्तों के संकट दूर करके परमेश्वर दर्शन करवाने के सैकड़ों उदाहरण उनके चरित्र में हैं। शेगांव स्थित गजानन महाराज के मंदिर में हमेशा भक्‍तों की भीड़ लगी रहती है। शेगांव महाराष्‍ट्र के प्रमुख तीर्थस्‍थानों में शामिल है। शेगांव महाराष्ट्र में बुलढाना जिले में सेंट्रल रेलवे के मुंबई-नागपुर मार्ग पर है।
 
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श्रीबाबा रामदेव मंदिर, रुणिचा धाम रामदेवरा (राजस्थान) : यह हाल हुजूर और चमत्कारिक मंदिर विश्‍व प्रसिद्ध है। यहां एक बार जिसने माथा टेक दिया समझों उसकी हर मनोकामना पूर्ण हुई। 
 
'पीरों के पीर रामापीर, बाबाओं के बाबा रामदेव बाबा' को सभी भक्त बाबारी कहते हैं। जहां भारत ने परमाणु विस्फोट किया था, वे वहां के शासक थे। हिन्दू उन्हें रामदेवजी और मुस्लिम उन्हें रामसा पीर कहते हैं। 
 
बाबा रामदेव को द्वारिका‍धीश (श्रीकृष्ण) का अवतार माना जाता है। इन्हें पीरों का पीर 'रामसा पीर' कहा जाता है। सबसे ज्यादा चमत्कारिक और सिद्ध पुरुषों में इनकी गणना की जाती है। हिन्दू-मुस्लिम एकता के प्रतीक बाबा रामदेव के समाधि स्थल रुणिचा में मेला लगता है, जहां भारत और पाकिस्तान से लाखों की तादाद में लोग आते हैं।
 
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नाथद्वारा मंदिर : श्रीवल्लभाचार्य के सम्प्रदाय का श्रीनाथ द्वारा मंदिर वैष्णव और वल्लभ सम्प्रदाय ही नहीं समूचे हिंदू समाज के लिए महत्व रखता है। राजस्थान के उदयपुर शहर से 30 मील की दूरी पर स्थित प्रसिद्ध एकलिंगजी स्थान से मात्र 17 मील उत्तर में स्थित है यह विश्व प्रसिद्ध मंदिर।
 
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गोरखनाथ मंदिर : गोरखनाथ अथवा गोरक्षनाथ मंदिर नाथ संप्रदाय का प्रमुख केन्द्र है। गुरु गोरखनाथ एक चमत्कारिक सिद्ध संत थे। उनके बारें में हजारों किस्से प्रचलित है। शिरडक्ष के साई बाबा, कनिफनाथ, गजानन महाराज और तमाम नाथ संप्रदाय के संत उन्हीं की सिद्ध धारा से है। 
 
गोरखनाथ का यह मंदिर उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में स्थित है। यहां स्थित मंदिर में गुरु गोरखनाथजी महाराज की श्वेत संगमरमर की दिव्य मूर्ति, ध्यानावस्थित रूप में प्रतिष्ठित है। यहां गुरु गोरखनाथ की समाधि है। ज्वालादेवी के स्थान से परिभ्रमण करते हुए 'गोरक्षनाथ जी' ने आकर भगवती राप्ती के तटवर्ती क्षेत्र में तपस्या की थी और इसी स्थान पर अपनी दिव्य समाधि लगाई थी।
 
नाथ सम्प्रदाय की मान्यता के अनुसार भगवान शिव के साक्षात् स्वरूप 'श्री गोरक्षनाथ जी' सतयुग में पेशावर में, त्रेता युग में गोरखपुर, द्वापर युग में हरमुज, द्वारिका के पास तथा कलियुग में गोरखमधी सौराष्ट्र में अवतरित हुए थे।
 
गुरु गोरखनाथ जी के प्रतिनिधि के रूप में सम्मानित संत को महंत की उपाधि से विभूषित किया जाता है। इस मंदिर के वर्तमान महंत आदित्यनाथ है। गोरक्षनाथ के जन्मकाल पर विद्वानों में मतभेद हैं। अधिकतर विद्वान इनका जन्मकाल 845 ईस्वी मानते हैं।
 
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अकाशीगंगा पीठ (अरुणाचल प्रदेश) : यहां भी पौराणिक कथा का महत्व है। जब भगवान शिव गुस्से में अपनी पत्नी पार्वती के शव को लेकर घूम रहे थे तब भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से उनके शव को टुकड़ों में काट दिया था। उस शव का एक टुकड़ा इस इलाके में भी गिरा था। इस जगह से दूर से ब्रहम्पुत्र नदी का विहंगम दृश्य भी दिखाई देता है। 
 
पुराणों के अनुसार भगवान कृष्ण अपनी कई पत्नियों में से एक रुक्मणी को अरुणाचल पर राज करने वाले उनके पिता से दूर भगा ले गए थे। खुदाई से यहां आर्यों की बहुत पुरानी बस्ती का भी पता चला है।
 
एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार भगवान परशुराम ने अपने मातृहत्या के पाप को यहां की ही लोहित नदी में धोया था। बाद में इसका नाम परशुराम कुंड पड़ा। जनवरी के महीने में लगने वाले परशुराम मेले में भाग लेने दूर-दूर से लोग आते हैं।