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Last Updated : गुरुवार, 28 जुलाई 2016 (13:51 IST)

गोपियों के वस्त्र हरण, नासमझी में उठाते हैं लोग श्रीकृष्ण पर ऐसे सवाल

गोपियों के वस्त्र हरण, नासमझी में उठाते हैं लोग श्रीकृष्ण पर ऐसे सवाल - Lord Krishna
किसी विधर्मी ने यह सवाल पूछा है कि नहाती हुई निर्वस्त्र गोपियों को छुपकर देखने वाला भगवान कैसे हो सकता है?
 
उत्तर : किसने कहा कि भगवान छुपकर देखते थे? क्या वस्त्र हरण और युगल स्नान की घटना को किसी ने अच्छे से समझा है? वस्त्र हरण और स्नान करने की यह घटना तब घटी थी जब श्रीकृष्ण की उम्र मात्र  6 वर्ष की थी। 11 वर्ष की उम्र के बाद भगवान श्रीकृष्ण का जीवन हमेशा हमेशा के लिए बदल गया था। पलायन, संघर्ष, युद्ध और विनाश में ही बीत गया सारा जीवन।
यह जो चित्र देख रहे हो वह श्रीकृष्ण की आठ पत्नियों के साथ हैं जिन से विभिन्न कारणों से उन्होंने विवाह किया था। जहां तक सवाल राधा का है तो वह श्रीकृष्ण के वृंदावन से चले जाने के सालों बाद द्वारिका में मिली थी। बस वही उनकी अंतिम मुलाकात थी। बचपन की सखी को भक्तिकाल के कवियों ने प्रेमिका बना दिया।

वृंदावन : वृंदावन श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं का स्थल है। वृंदावन मथुरा से 14 किलोमीटर दूर है। मथुरा कंस का नगर है, जहां यमुना तट पर बनी जेल से मुक्त कराकर वासुदेवजी कृष्ण को नंदगांव ले गए थे। मथुरा से नंदगांव 42 किलोमीटर दूर है। प्राचीन वृंदावन गोवर्धन के निकट था।
 
बरसाना मथुरा से 50 किमी दूर उत्तर-पश्चिम में और गोवर्धन से 21 किमी दूर उत्तर में स्थित है। नंदगांव तो बरसाने के बिलकुल पास है लेकिन वृंदावन से दूर। राधा बरसाने में रहती थी और श्रीकृष्ण वृंदावन में। नंदगाव को छोड़कर श्रीकृष्ण के कुटुंब के लोग वृंदावन में बस गए थे।
 
रासलीला का सच : वृंदावन में ही श्रीकृष्‍ण और राधा एक घाट पर युगल स्नान करते थे। यहीं पर श्रीकृष्ण उनके अन्य मित्रों और गोपियों के साथ आंख-मिचौनी का खेल खेलते थे। यहीं पर श्रीकृष्ण और उनके सभी सखा और सखियां मिलकर रासलीला अर्थात तीज-त्योहारों पर नृत्य-उत्सव के आयोजन में भाग लेते थे। कृष्ण की शरारतों के कारण उन्हें बांकेबिहारी कहा जाता है। यहां पर यमुना घाट के प्रत्येक घाट से भगवान कृष्ण की कथा जुड़ी हुई है।
 
कृष्ण ने जो नंदगांव और वृंदावन में छोटा-सा समय गुजारा था, उसको लेकर भक्तिकाल के कवियों ने कविताएं लिखी हैं। उनमें कितनी सच्चाई है? इतिहासकार मानते हैं कि एक सच को इतना महिमामंडित किया गया कि अब वह कल्पनापूर्ण लगता है। श्रीकृष्ण जब मथुरा में कंस को मारने गए, तब उनका जीवन पूरी तरह से बदल गया। कंस को मारने के बाद उनके जीवन में उथल-पुथल शुरू हो गई।
 
दरअसल, श्रीमद्भागवत और विष्णु पुराण के अनुसार कंस के अत्याचार से बचने के लिए नंदजी कुटुंबियों और सजातीयों के साथ नंदगांव से वृंदावन में आकर बस गए थे। विष्णु पुराण में वृंदावन में कृष्ण की लीलाओं का वर्णन भी है। यहां श्रीकृष्‍ण ने कालिया का दमन किया था।
 
गोकुल और बरसाने के ग्वाले वृंदावन जाकर बस गए थे। इस नई जगह पर वे स्वतंत्रतापूर्वक रहने लगे। खासतौर पर युवाओं और बच्चों के लिए यहां खुला माहौल था। किसी भी प्रकार का कोई बंधन नहीं। यह समुदाय समृद्ध होने के साथ ही वर्तमान समाज से कहीं ज्यादा बुद्धि संपन्न भी था। उस दौरान श्रीकृष्ण मात्र 7 वर्ष के थे और राधा लगभग 12 वर्ष की। श्रीकृष्ण के साथ उन्हीं की उम्र के बच्चों की एक बड़ी टोली रहा करती थी, जो मौज-मस्ती करती थी। उस दौर में इंद्रोत्सव और होली का त्योहार प्रसिद्ध था। वृंदावन में होली का त्योहार आया। 
 
पूर्णिमा की एक विशेष शाम को लड़के और लड़कियों की ये टोलियां यमुना नदी के किनारे इकट्ठी हुईं। नई जगह के इस माहौल की वजह से कई पुरानी परंपराएं टूट गईं और पहली बार ये छोटे लड़के और लड़कियां नहाने के लिए नदी पर एकसाथ पहुंचे। यहां उन्होंने एकसाथ नृत्य-गान किया। लड़कियों की टोली की मुखियां जहां राधा थीं, वहीं लड़कों की टोली के मुखिया श्रीकृष्ण थे।
 
यहां रातभर ढोलक, मंजीरा, खेल, नाच, गान और धमा-चौकड़ी चलती रही और अंतत: जब सभी थककर चूर होकर नीचे गिर गए तब ऐसे में श्रीकृष्ण ने अपनी कमर से बांसुरी निकालकर मंत्रमुग्ध करने वाली धुन छेड़ दी। कृष्ण की बांसुरी की यह धुन अत्यंत मनमोहक थी जिसे सुनकर सभी उठ खड़े हुए और वे फिर से मस्ती में झूमने लगे। 
 
वे इस धुन में नाचते-नाचते इतने मगन हो गए कि वे अपने-आप ही कृष्ण के चारों ओर जमा हो गए। नाच का यह दौर लगभग आधी रात तक यूं ही चलता रहा। बच्चों का यह उत्सवमयी खेल परंपरा में बदल गया। उस काल में उत्सवी लड़कों की टोली को गोप और लड़कियों की टोली को गोपिका कहा जाता था। 
 
कवियों ने श्रृंगार किया इस घटना का : बस इतनी-सी घटना को ही मध्यकाल के कवियों ने बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया। 7 वर्ष की उम्र में श्रीकृष्ण द्वारा किए गए इस रास को कवियों ने प्रेमरास, महारास आदि न जाने क्या-क्या लिखा। क्या 7 वर्ष की उम्र में किसी बालक और बालिकाओं का साथ में नृत्य करना और नहाना किसी संदेह के घेरे में आता है? कृष्ण रास को शारीरिक धरातल पर लाकर उसमें मौज-मस्ती या भोग-विलास जैसा कुछ ढूंढना इंसान की खुद की फितरत पर निर्भर करता है। आजकल स्वीमिंग पुल में कई बच्चे साथ-साथ स्नान करते हैं और इस दौरान मस्ती करते हैं तो उसे हम क्या मानें? यदि यह मान भी लिया जाए कि वस्त्र हरण की घटना सच्ची थी तो इसके पीछे एक संदेश था कि सार्वजनीक स्थानों पर निर्वस्त्र होकर नहाया नहीं जाए क्योंकि कंस के आततायी और राक्षस लोग चारों और घुमते रहते थे। ऐसे में मर्यादा का पालन रखना जरूरी है कभी भी किसी भी तरह की घटना घट सकती है। श्रीकृष्ण ने अपनी बाल लीलाओं से समाज को कई तरह के संदेश दिए। 
 
युद्ध और संघर्ष ही जीवन था : श्रीकृष्ण ने 11 वर्ष की उम्र में गोकुल और वृंदावन छोड़ दिया था और वे मथुरा चले गए थे। इसके बाद का उनका जीवन सिर्फ संघर्ष और युद्ध में ही बित गया। श्रीकृष्ण की बाल-लीलाओं का जो भी वर्णन मिलता है, वह इन 11 वर्षों के पहले का ही है। मथुरा में उन्होंने कंस से लोहा लिया और कंस का अंत करने के बाद तो जरासंध उनकी जान का दुश्मन बन गया था, जो शक्तिशाली मगध का सम्राट था और जिसे कई जनपदों का सहयोग था। उससे दुश्मनी के चलते श्रीकृष्ण को कई वर्षों तक तो भागते रहना पड़ा था। जब परशुराम ने उनको सुदर्शन चक्र दिया तब कहीं जाकर आराम मिला।
 
भक्तिकाल : माना जाता है कि मध्यकाल के भक्तिकाल में राधा और कृष्ण की प्रेमकथा को विस्तार मिला। अतिशयोक्तिपूर्ण वर्णन किया गया और कृष्ण के योद्धा चरित्र का नाश कर दिया गया। राधा-कृष्ण की भक्ति की शुरुआत निम्बार्क संप्रदाय, वल्लभ संप्रदाय, राधावल्लभ संप्रदाय, सखीभाव संप्रदाय आदि ने की। निम्बार्क, चैतन्य, वल्लभ, राधावल्लभ, स्वामी हरिदास का सखी- ये संप्रदाय राधा-कृष्ण भक्ति के 5 स्तंभ बनकर खड़े हैं। निम्बार्क का जन्म 1250 ईस्वी में हुआ। इसका मतलब कि कृष्ण की भक्ति के साथ राधा की भक्ति की शुरुआत मध्यकाल में हुई। उसके पूर्व यह प्रचलन में नहीं थी?
 
इन दोनों संप्रदायों में राधाष्टमी के उत्सव का विशेष महत्व है। निम्बार्क व राधावल्लभ संप्रदाय का प्रमुख गढ़ वृंदावन है। निम्बार्क संप्रदाय के विद्वान व वृंदावन शोध संस्थान से जुड़े छीपी गली निवासी वृंदावन बिहारी कहते हैं कि कृष्ण सर्वोच्च प्रेमी थे। उनका व्यक्तित्व बहुआयामी था। वैष्णवाचार्यों ने भी अपने-अपने तरीकों से उनकी आराधना की है।
 
निम्बार्क संप्रदाय कहता है कि श्याम और श्यामा का एक ही स्वरूप है। भगवान कृष्ण ने अपनी लीलाओं के लिए स्वयं से राधा का प्राकट्य किया और दो शरीर धारण कर लिए। लेकिन यह तो भक्तिभाव में कही गई बाते हैं, इनमें तथ्‍य कहां है? इतिहास अलौकिक बातों से नहीं बनता। ऐसी बातें करने वालों को झूठा माना जाता है और ऐसे ही लोग तो धर्म की प्रतिष्ठा गिराते हैं।
 
बरसाना और नंदगांव : राधा का जिक्र पद्म पुराण और ब्रह्मवैवर्त पुराण में मिलता है। पद्म पुराण के अनुसार राधा वृषभानु नामक गोप की पुत्री थीं। वृषभानु वैश्य थे। ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार राधा कृष्ण की मित्र थीं और उसका विवाह रापाण, रायाण अथवा अयनघोष नामक व्यक्ति के साथ हुआ था। उस जमाने में स्त्री का विवाह किशोर अवस्था में ही कर दिया जाता था। बरसाना और नंदगाव के बीच 4 मील का फासला है। 
 
महाभारत के सभी प्रमुख पात्र भीष्म, द्रोण, व्यास, कर्ण, अर्जुन, युधिष्ठिर आदि श्रीकृष्ण के महान चरित्र की प्रशंसा करते थे। उस काल में भी परस्त्री से अवैध संबंध रखना दुराचार माना जाता था। यदि श्रीकृष्ण का भी राधा नामक किसी औरत से संबंध हुआ होता तो श्रीकृष्ण पर भी अंगुली उठाई जाती?
 
कहते हैं कि बरसाना राधा के पिता वृषभानु का निवास स्थान था। बरसाने से लगभग 4 मील पर नंदगांव है, जहां श्रीकृष्ण के पालक पिता नंदजी का घर था। होली के दिन यहां इतनी धूम होती है कि दोनों गांव एक हो जाते हैं। बरसाने से नंदगाव टोली आती है और नंदगांव से भी टोली जाती है।
 
कुछ विद्वान मानते हैं कि राधाजी का जन्म यमुना के निकट स्थित रावल ग्राम में हुआ था और बाद में उनके पिता बरसाने में बस गए, लेकिन अधिकतर मानते हैं कि उनका जन्म बरसाना में हुआ था। राधारानी का विश्वप्रसिद्ध मंदिर बरसाना ग्राम की पहाड़ी पर स्थित है। बरसाने में राधा को 'लाड़ली' कहा जाता है।
 
बरसाना गांव के पास दो पहाड़ियां मिलती हैं। उनकी घाटी बहुत ही कम चौड़ी है। मान्यता है कि गोपियां इसी मार्ग से दही-मक्खन बेचने जाया करती थीं। यहीं पर कभी-कभी कृष्ण उनकी मक्खन वाली मटकी छीन लिया करते थे।
 
गौरतलब है कि मथुरा में कृष्ण के जन्म के बाद कंस के सभी सैनिकों को नींद आ गई थी और वासुदेव की बेड़ियां किसी चमत्कार से खुल गई थीं, तब वासुदेवजी भगवान कृष्ण को नंदगांव में नंदराय के यहां आधी रात को छोड़ आए थे। कुछ मानते हैं कि वे मथुरा के पास गोकुल में यशोदा के मायके छोड़ आए थे, जहां से यशोदा उन्हें नंदगांव ले गईं।
 
नंद के घर लाला का जन्म हुआ है, ऐसी खबर धीरे-धीरे गांव में फैल गई। यह सुनकर सभी नंदगांववासी खुशियां मनाने लगे। कृष्ण ने नंदगांव में रहते हुए पूतना, शकटासुर, तृणावर्त आदि असुरों का वध किया। यहां के घाट और उसके पास अन्य मनोरम स्थल हैं, जैसे गोविंद घाट, गोकुलनाथजी का बाग, बाजनटीला, सिंहपौड़ी, यशोदा घाट, रमण रेती आदि।
 
गोकुल क्या है : गोकुल यमुना के तट पर बसा एक गांव है, जहां सभी नंदों की गायों का निवास स्थान था। यहीं पर रोहिणी ने बलराम को जन्म दिया था। बलराम देवकी के 7वें गर्भ में थे जिन्हें योगमाया ने आकर्षित करके रोहिणी के गर्भ में डाल दिया था। यह स्थान गोप लोगों का था। मथुरा से गोकुल की दूरी महज 12 किलोमीटर है।
 
श्रीचैतन्य महाप्रभु के ब्रज आगमन के पश्चात श्रीवल्लभाचार्य ने यमुना के इस मनोहर तट पर श्रीमद्भागवत का पारायण किया था। इनके पुत्र श्रीविट्ठलाचार्य और उनके पुत्र श्रीगोकुलनाथजी की बैठकें भी यहां पर हैं। असल में श्रीविट्ठलनाथजी ने औरंगजेब को चमत्कार दिखलाकर इस स्थान का अपने नाम पर पट्टा लिया था। उन्होंने ही इस गोकुल को बसाया था। यह नंद का रहने का स्थान नहीं था। गोकुल के पास काम्य वन से कृष्ण का नाता जरूर है। 
 
संकेत तीर्थ : मान्यता के आधार पर राधा की कृष्ण से पहली मुलाकात नंदगांव और बरसाने के बीच हुई। इस स्थान पर आज एक मंदिर है। इसे संकेत स्थान कहा जाता है। मान्यता है कि पिछले जन्म में ही दोनों ने यह तय कर लिया था कि हमें इस स्थान पर मिलना है। इस मान्यता के आधार पर यहां हर साल राधा के जन्मदिन यानी राधाष्टमी से लेकर अनंत चतुर्दशी के दिन तक मेला लगता है।
 
हालांकि संकेत तीर्थ का निर्माण और यहां होने वाले उत्सव की परंपरा की शुरुआत कब और किसने की यह शोध का विषय है। श्रीकृष्ण के नाम पर मथुरा, वृंदावन, गोकुल, गोवर्धन और बरसाने की हर जगह को तीर्थ बना दिया गया है। उनमें से कुछ का ऐतिहासिक महत्व है और कुछ का नहीं भी हो सकता है।

वस्त्र हरण का किस्सा : हेमं‍त ऋतु में कात्यायनी देवी की पूजा का विधान था। माना जाता है कि वृंदावन की सभी कुमारियां यमुना की एक विशेष जगह पर निर्वस्त्र स्नान करती थीं। स्नान के बाद माता की पूजा कर उत्तम वर की कामना करती थी। भगवान जानते थे कि गोपियां ऐसी परंपरा को निभाती है जोकि अनुचित है।
 
तब श्रीकृष्ण उनके वस्त्र उठाकर कदंब के वृक्ष पर बैठ जाते हैं। गोपियां कहती हैं कि यदि तुम वस्त्र नहीं दोगे तो हम तुम्हारी नंदबाबा से शिकायत कर देंगे। श्रीकृष्ण कहते हैं कि ठीक है कर देना।  
 
तब श्रीकृष्ण गोपियों से कहते हैं कि जल के देवता वरुण हैं और आपने नग्न स्नान करके उनका अपमान किया है। इसलिए तुम सभी वरुणदेव से क्षमा मांगों। गोपियां उनसे अपने इस अपराध की क्षमा मांगती है और उन्हें वस्त्र देने को कहती है। भगवान उनके वस्त्र लौटा देते हैं। इस घटना को भक्तिकाल के कवियों ने प्रेम और कामलीला में बदल दिया।
 
पुन:श्च : श्रीमदभागवद्भत के दशम स्कंध में वस्त्र हरण प्रकरण आता है। भगवान का हर कार्य दिव्य होता है। इसे समझने के लिए दृष्टि चाहिए। लीला के अर्थ का समझने की बुद्धि चाहिए। उस वक्त श्रीकृष्ण की उम्र छ: वर्ष थी। सबसे बड़ी गोपी दस बरस की थी। इसके अलावा भगवान के सखाओं में से सभी गोपियां किसी की बुआ किसी की बहन थी। किसी की भाभी।
 
भगवान के प्रेम में विभोर होकर संकीर्तन करती हुई गोपियां मां कात्यायनिनी की पूजा हेतु अपने घरों से यमुना स्नान के लिए निकलतीं थीं। इसी भाव समाधि की अवस्था में वे यमुना में प्रवेश करतीं थीं। उन्हें ये होश ही नहीं रहता था उन्होंने कितने वस्त्र उतार दिए हैं।
 
क्योंकि गोपियों ने निर्वस्त्र होकर यमुना में स्नान किया है जो शास्त्र विरुद्ध है इसलिए भगवान उनका अपराध निवारण करने के लिए चीर हरण करते हैं। उनके वस्त्र चुरा कर छिपा लेते हैं। भगवान उनसे कहते हैं तुमने अपराध किया है अब बाहर आकर सूर्य को नमस्कार करो। प्रण करो कि आगे से ऐसा नहीं करोगी। इस प्रकार गोपियों के अविद्या के आवरण को भगवान ने इस प्रकरण में हटाया है यही है भगवान की चीर हरण लीला।
 
अगले पन्ने पर अन्य पौराणिक कथा...

शिव द्वारा भस्म हो जाने के बाद जब पुन: जीवित हो गए कामदेव तो उन्हें अपनी सफलता पर गर्व और घमंड आ गया था। इसी घमंड के चलते उन्होंने एक बार श्रीकृष्ण से कहा कि वे उन्हें वासना के बंधन से बांधकर ही रहेंगे। श्रीकृष्ण ने भी उनकी चुनौती स्वीकार कर ली।
इसके लिए कामदेव ने एक शर्त रखी कि आश्विन माह की पूर्णिमा की रात वृंदावन के खूबसूरत जंगलों में आकर उन्हें स्वर्ग की अप्सराओं से भी सुंदर गोपियों के साथ आना होगा। जहां कामदेव के अनुकूल वातावरण भी हो और वहां उनके पिता भी उपस्थित नहीं होने चाहिए। 
 
कृष्ण ने कामदेव की यह शर्त मान ली और शरद पूर्णिमा की रात वृंदावन के रमणीय जंगल में पहुंचकर बांसुरी बजाने लगे। उनकी बांसुरी की सुरीली धुन सुनकर सभी गोपियां अपनी सुध-बुध होकर कृष्ण के पास पहुंच गईं। उन सभी गोपियों के मन में कृष्ण के नजदीक जाने, उनसे प्रेम करने का भाव तो जागा लेकिन यह पूरी तरह वासनारहित था। 
 
सामान्य भाषा में काम-क्रोध जैसे भाव जीवन के लिए सही नहीं माने जाते लेकिन जब बात अपने आराध्य के नजदीक जाने की हो तब कोई भी भाव गलत नहीं समझा जाता। श्रीकृष्ण ने अपने हजारों रूप धरकर वहां मौजूद सभी गोपियों के साथ महारास रचाया लेकिन एक क्षण के लिए भी उनके मन में वासना का प्रवेश नहीं हुआ। इस तरह भगवान कृष्ण ने अपनी सभी गोपियों के साथ रास भी रचाया, उन्हें अपने समीप भी रखा और कामदेव से लगी शर्त भी जीत गए।
 
कृष्ण ने राधा और गोपियों के साथ यमुना किनारे जब पहली रासलीला रचाई, तो उस दिन सारी पुरानी परंपराएं टूट गईं। यह रासलीला ग्वालों और गोपियों के बीच एक खेल के रूप में शुरू हुई और कृष्ण की बांसुरी की मनमोहक धुन के साथ अपने चरम पर पहुंची…!