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Last Updated : शनिवार, 5 मार्च 2016 (18:02 IST)

क्या बु‍द्ध हिन्दुओं के अवतार हैं?

क्या बु‍द्ध हिन्दुओं के अवतार हैं? - gautam buddha vishnu avatar
ओशो रजनीश ने भगवान बुद्ध पर दुनिया के सबसे सुंदर प्रवचन दिए हैं। इस प्रवचन माला का नाम है- 'एस धम्मो सनंतनो'। लाखों देशी और विदेशी लोग हैं, जो बौद्ध नहीं है लेकिन वे भगवान बुद्ध से अथाह प्रेम करते हैं और उनकी विचारधारा अनुसार ही जीवनयापन कर रहे हैं।
 
बौद्ध धर्म किसी दूसरे धर्म के प्रति नफरत नहीं सिखाता और न ही वह किसी अन्य धर्म के सिद्धांतों का खंडन ही करता है। ऐसा माना जाता है कि बौद्ध धर्म न तो वेद विरोधी है और न हिन्दू विरोधी। गौतम बुद्ध ने तो सिर्फ जातिवाद, कर्मकांड, पाखंड, हिंसा और अनाचरण का विरोधी किया था। गौतम बुद्ध के शिष्यों में कई ब्राह्मण थे। आज भी ऐसे लाखों ब्राह्मण हैं जो बौद्ध बने बगैर ही भगवान बुद्ध से अथाह प्रेम करते हैं और उनकी विचारधारा को मानते हैं।
बुध ने अपने धर्म या समाज को नफरत या खंडन-मंडन के आधार पर खड़ा नहीं किया। किसी विचारधारा के प्रति नफरत फैलाना किसी राजनीतिज्ञ का काम हो सकता है और खंडन-मंडन करना दार्शनिकों का काम होता है। बुद्ध न तो दार्शनिक थे और न ही राजनीतिज्ञ। बुद्ध तो बस बुद्ध थे। हजारों वर्षों में कोई बुद्ध होता है। बुद्ध जैसा इस धरती पर दूसरा कोई नहीं। लेकिन दुख है कि कुछ लोग बुद्ध का नाम बदनाम कर रहे हैं।
 
क्या बु‍द्ध हिन्दुओं के अवतार हैं? : कुछ लोगों के अनुसार बुद्ध को हिन्दुओं का अवतार मानना उचित नहीं है। उनका तर्क यह है कि किसी भी पुराण में उनके विष्णु अवतार होने का कोई उल्लेख नहीं मिलता है और यह कुछ हद तक सही भी है।
 
बौद्ध पुराण ललितविस्तारपुराण में बुद्ध की विस्तृत जीवनी है। हिन्दुओं के अठारह महापुराणों तथा उपपुराणों में बुद्ध की गणना नहीं है। हालांकि कल्कि पुराण में उनके अवतार होने का उल्लेख मिलता है। अब सवाल यह उठता है कि कल्कि पुराण कब लिखा गया? यह विवाद का विषय हो सकता है। कल्याण के कई अंकों में बुद्ध को विष्णु के 24 अवतारों में से एक 23वें अवतार के रूप में चित्रित किया जाता रहा है। दाशावतार के क्रम में उनको 9वें अवतार के रूप में चित्रित किया गया है। हालांकि इस संबंध में पुराणों से इतर अन्य कई ग्रंथों में इसका उल्लेख मिलता है, कि बुद्ध हिन्दुओं के अवतारी पुरुष हैं, लेकिन मूल पुराणों में नहीं।
 
कल्किपुराण के पूर्व के अग्नि पुराण (49/8-9) में बुद्ध प्रतिमा का वर्णन मिलता है:- 'भगवान बुद्ध ऊंचे पद्ममय आसन पर बैठे हैं। उनके एक हाथ में वरद तथा दूसरे में अभय की मुद्रा है। वे शान्तस्वरूप हैं। उनके शरीर का रंग गोरा और कान लंबे हैं। वे सुंदर पीतवस्त्र से आवृत हैं।' वे धर्मोपदेश करके कुशीनगर पहुंचे और वहीं उनका देहान्त हो गया।- कल्याण पुराणकथांक (वर्ष 63) विक्रम संवत 2043 में प्रकाशित। पृष्ठ संख्या 340 से उद्धृत। इस वर्णन में यह कहीं नहीं कहा गया कि वे विष्णु अवतार हैं।
 
बुद्ध किस जाति या समाज के थे ये सवाल मायने नहीं रखता। गौतम बुद्ध ने खुद को न तो कभी क्षत्रिय कहा, न ब्राह्मण और न शाक्य। हालांकि शाक्यों का पक्ष लेने के कारण कुछ लोग उनको शाक्य मानकर शाक्य मुनि कहते हैं। क्या बुद्ध खुद को किसी जाति या समाज में सीमित कर सकते हैं? बुद्ध को इस तरह किसी जाति विशेष में सीमित करना या उन्हें महज मुनि मानना बुद्ध का अपमान ही होगा। बुद्ध से जो सचमुच ही प्रेम करता है वह बुद्ध को किसी सीमा में नहीं बांध सकता। भगवान बुद्ध को जो पढ़ता समझता हैं वह किसी भी दूसरे समाज के लोगों के प्रति नफरत का प्रचार नहीं कर सकता है। यदि वह ऐसा कर रहा है तो वह विश्‍व में बौद्ध धर्म की प्रतिष्ठा को ‍नीचे गिरा देगा। बुद्धम शरणं गच्छामी।
 
बुद्ध ऐसे हैं जैसे हिमाच्छादित हिमालय। पर्वत तो और भी हैं, हिमाच्छादित पर्वत और भी हैं, पर हिमालय अतुलनीय है। उसकी कोई उपमा नहीं है। हिमालय बस हिमालय जैसा है। गौतम बुद्ध बस गौतम बुद्ध जैसे। पूरी मनुष्य-जाति के इतिहास में वैसा महिमापूर्ण नाम दूसरा नहीं। गौतम बुद्ध ने जितने हृदयों की वीणा को बजाया है, उतना किसी और ने नहीं। गौतम बुद्ध के माध्यम से जितने लोग जागे और जितने लोगों ने परम- भगवत्ता उपलब्ध की है, उतनी किसी और के माध्यम से नहीं।- ओशो